सैन्य बलों को धार्मिक अपीलों से खुद को अछूता रखने की जरुरत है: मनमोहन सिंह
मनमोहन ने कहा कि यह काम पहले से कहीं अधिक आवश्यक हो गया है, क्योंकि राजनीतिक विवादों और चुनावी लड़ाइयों को धार्मिक रंगों, प्रतीकों, मिथों और पूर्वाग्रहों के साथ व्यापक रूप से घालमेल किया जा रहा है.
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट के दिवंगत न्यायाधीश, न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा द्वारा 1990 के दशक में दिए गए प्रसिद्ध मगर विवादास्पद फैसले 'हिंदुत्व जीने का तरीका' को दोषयुक्त बताते हुए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंगलवार को कहा कि 'सर्वप्रथम, एक संस्था के रूप में न्यायपालिका के लिये यह बेहद जरूरी है कि वह संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता के स्वरूप का संरक्षण करने की अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी को नजरंदाज न करे.'
डॉ. सिंह ने मंगलवार को कॉमरेड एबी वर्धन स्मृति व्याखान को संबोधित करते हुये कहा 'संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप का संरक्षण करने के मकसद को पूरा करने की मांग पहले के मुकाबले मौजूदा दौर में और भी अधिक जरूरी हो गयी है. राजनीतिक विरोध और चुनावी मुकाबलों में धर्मिक तत्वों, प्रतीकों, मिथकों और पूर्वाग्रहों की मौजूदगी भी काफी अधिक बढ़ गयी है.'
डॉ. सिंह ने कहा कि सैन्य बलों को भी धार्मिक अपीलों से खुद को अछूता रखने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि भारतीय सशस्त्र बल देश के शानदार धर्मनिरपेक्ष स्वरूप का अभिन्न हिस्सा हैं. इसलिये यह बेहद जरूरी है कि सशस्त्र बल स्वयं को सांप्रदायिक अपीलों से अछूता रखें.
डॉ. सिंह ने भाकपा द्वारा 'धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की रक्षा' विषय पर आयोजित दूसरे एबी बर्धन व्याख्यान को संबोधित करते हुये कहा 'हमें निसंदेह यह समझना चाहिये कि अपने गणतंत्र के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को कमजोर करने कोई भी कोशिश व्यापक रूप से समान अधिकारवादी सोच को बहाल के प्रयासों को नष्ट करेगी.' उन्होंने कहा कि इन प्रयासों की कामयाबी सभी संवैधानिक संस्थाओं में निहित है.
पूर्व प्रधानमंत्री ने बाबरी मस्जिद मामले का जिक्र करते हुये कहा कि 1990 के दशक के शुरुआती दौर में राजनीतिक दलों और राजनेताओं के बीच बहुसंख्यक और अल्पसंख्यकों के सह अस्तित्व को लेकर शुरु हुआ झगड़ा असंयत स्तर पर पहुंच गया. उन्होंने कहा 'बाबरी मस्जिद पर राजनेताओं का झगड़े का अंत सुप्रीम कोर्ट में हुआ और न्यायाधीशों को संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को पुन: परिभाषित कर बहाल करना पड़ा.'
टिप्पणियां मनमोहन सिंह ने बाबरी मस्जिद ध्वंस को दर्दनाक घटना बताते हुये कहा 'छह दिसंबर 1992 का दिन हमारे धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र के लिये दुखदायी दिन था और इससे हमारी धर्मनिरपेक्ष प्रतिबद्धताओं को आघात पहुंचा.'
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एस आर बोम्मई मामले में धर्मनिरपेक्षता को संविधान के मौलिक स्वरूप का हिस्सा बताया. उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यवश यह संतोषजनक स्थिति कम समय के लिये ही कायम रही, क्योंकि बोम्मई मामले के कुछ समय बाद ही 'हिंदुत्व को जीवनशैली' बताते वाला न्यायमूर्ति जे एस वर्मा का मशहूर किंतु विवादित फैसला आ गया.
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इससे गणतांत्रिक व्यवस्था में धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के बारे में राजनीतिक दलों के बीच चल रही बहस पर निर्णायक असर हुआ. उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की सजगता और बौद्धिक क्षमताओं के बावजूद कोई भी संवैधानिक व्यवस्था सिर्फ न्यायपालिका द्वारा संरक्षित नहीं की जा सकती है.
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