भले ही मलिहाबाद (लखनऊ) के दशहरी, पश्चिम उत्तर प्रदेश के चौसा, वाराणसी के लंगड़ा और मुंबई के अलफांसो खुद में नामचीन आम हों, पर गोरखपुर और बस्ती मंडल के किसी भी व्यक्ति से पूछेंगे कि आमों का राजा कौन है? तो वह यही कहेगा गवरजीत। बात चाहे खुशबू की हो या स्वाद और रंग की, नाम के अनुरूप यह लोगों का दिल जीत लेता है। पूर्वांचल के गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती और संतकबीरनगर जिलों के लाखों लोगों को आम के सीजन में इसका इंतजार रहता है।
अगर इसकी अन्य खूबियों की बात करें तो यह आम की अर्ली प्रजाति है। इसकी आवक दशहरी के पहले शुरू होती है। और जब तक डाल की दशहरी आती है तब तक यह खत्म हो जाता है। मौसम ठीक-ठाक रहे तो डाल के गवरजीत की आवक जून के दूसरे हफ्ते में शुरू हो जाती है।
अमूमन यह डाल पर ही पकता है और पत्तियों के साथ बिकता है। मांग इतनी कि इसका सौदा पेड़ में बौर आने के साथ ही हो जाता है। फुटकर खरीददार बाग से ही इसे खरीद लेते हैं। मंडी में यह कम ही आता है। फुटकर दुकानों से ही ग्राहक इसे हाथों-हाथ ले लेते हैं। सीजन में सबसे अच्छे भाव गवरजीत के ही मिलते हैं। इस समय फुटकर में प्रति किलोग्राम बेहतर गुणवत्ता वाले गवरजीत के भाव 200 रुपये तक हैं। अपनी इन्हीं खूबियों के नाते जून 2016 में लखनऊ के लोहिया पार्क में आयोजित प्रदेश स्तरीय आम महोत्सव में इसे प्रथम पुरस्कार मिला था।
मालूम हो कि गोरखपुर-बस्ती मंडल के करीब 6000 हेक्टेयर में गवरजीत के बागान है। बिहार के कुछ जिलों में भी गवरजीत के आम हैं, पर इनको वहां जर्दालु और मिठुआ नाम से भी जाना जाता है।
यहां के प्रतिष्ठित लोग सीजन में अपने चाहने वालों को बतौर गिफ्ट यह आम भी देते हैं। एक तरह से यहां के लोगो के लिए यह स्टेट्स सिंबल है। चूंकि पूर्वांचल के लोग हर जगह हैं लिहाजा इस रूप में यह मुंबई, कोलकाता और अन्य महानगरों में भी पहुंचता है।
गवरजीत तेजी से पकता है। सामान्य स्थितियों में इसे बहुत दिन तक रखा नहीं जा सकता। अगर भंडारण की उचित व्यवस्था हो तो इसके निर्यात की संभवनाएं बढ़ जाती हैं। गोरखपुर पहले ही देश के प्रमुख महानगरों से हवाई सेवा से जुड़ा है। कुशीनगर में इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनकर तैयार है। अयोध्या में निर्माणाधीन है। पूर्वोत्तर रेलवे का मुख्यालय होने की वजह से गोरखपुर पहले ही रेल के जरिए पूरे देश से जुड़ा है। पूर्वाचल एक्सप्रेस वे के नाते रोड कनेक्टिविटी भी अच्छी हो जाएगी। इसको जोड़ने वाला गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस वे इस कनेक्टिविटी को और बेहतर बनाएगा। ऐसे में गवरजीत की संभावनाएं और बढ़ जाती हैं।
इस बाबत निदेशक हॉर्टिकल्चर आर के तोमर और ज्वाइंट डायरेक्टर हॉर्टिकल्चर (बस्ती) अतुल सिंह का कहना है कि खुशबू और स्वाद में गवरजीत का कोई जवाब नहीं है। आप कह सकते हैं कि चूस कर खाने वाली यह सबसे अच्छी प्रजाति है। मई के लास्ट या जून के पहले हफ्ते में यह बाजार में आ जाती है। 90 फीसद खपत पूर्वांचल में ही हो जाती है।
हालांकि दसहरी, लगड़ा और चौसा के मुकाबले यह कम लोकप्रिय हो पाया, पर विभाग इजरायल की मदद से इसे लोकप्रिय बनाने का प्रयास जारी है। इसकी लोकप्रियता बढ़ भी रही है। अब अगर कोई आम के 500 पौध खरीदता है तो उसमें 50 गवरजीत के होते हैं। खरीदने वालों में लखनऊ और अंबेडकर नगर आदि जिलों के भी लोग हैं।
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Source : IANS