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ममता के कई नेताओं ने अपनाए बगावती तेवर, परिवारवाद और पीके बने जड़

शुभेंद्रु अधिकारी और सिद्धिकुला चौधरी के बगावती तेवर टीएमसी की जीत की राह में बड़ा रोड़ा अटका सकते हैं. दूसरी बड़ी बात यह है कि टीएमसी में प्रशांत किशोर को लेकर भी एक राय नहीं है.

Updated on: 25 Nov 2020, 11:07 AM

नई दिल्ली:

पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में इस बार तृणमूल कांग्रेस को भारतीय जनता पार्टी से कड़ी टक्कर मिलने के संकेत सियासी पंडित दे रहे हैं. गृह मंत्री अमित शाह तो पहले ही सक्रिय हो चुके हैं. बीजेपी की चुनावी तैयारियों को देखते हुए ममता बनर्जी भी 600 रैलियों के आयोजन की बात करती दिख रही हैं. हालांकि यह अलग बात है कि दीदी के लिए अपनी ही पार्टी में विद्रोह सत्ता पर तीसरी बार पहुंचने की मुहिम को कड़ी चोट दे सकता है. परिवहन मंत्री शुभेंद्रु अधिकारी और सिद्धिकुला चौधरी के बगावती तेवर टीएमसी की जीत की राह में बड़ा रोड़ा अटका सकते हैं. दूसरी बड़ी बात यह है कि टीएमसी में प्रशांत किशोर को लेकर भी एक राय नहीं है. टीएमसी के कई दिग्गज नेता खुलेआम प्रशांत किशोर और ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी को लेकर तीखी टिप्पणी कर चुके है. टीएमसी के एक धड़े का मानना है कि दीदी अपने भतीजे को बतौर उत्तराधिकारी पेश कर दिग्गज नेताओं की अनदेखी कर रही हैं.

मुकुल रॉय के नक्श-ए-कदम पर शुभेंदु 
गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में करीब दस साल से सत्ता में बैठी टीएमसी को बीते दो साल के भीतर दूसरी बार बग़ावत का सामना करना पड़ रहा है. वह भी पूर्व मेदिनीपुर के जनाधार वाले नेता और परिवहन मंत्री शुभेंदु अधिकारी की ओर से. दो साल पहले ममता का दाहिना हाथ कहे जाने वाले मुकुल रॉय ने भी बग़ावत कर बीजेपी का दामन थाम लिया था. शुभेंदु ने हालांकि अब तक किसी का नाम लेकर सार्वजनिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन बीते कुछ महीनों से उन्होंने खुद को जिस तरह सरकार और पार्टी के कार्यक्रमों से काट लिया है वह उनकी नाराजगी की कहानी खुद कहता है. बीते तीन महीनों से उन्होंने न तो कैबिनेट की किसी बैठक में हिस्सा लिया है और न ही अपने जिले में तृणमूल की ओर से आयोजित किसी कार्यक्रम में. इसके उलट वे दादार अनुगामी यानी दादा के समर्थक नामक एक संगठन के बैनर तले लगातार रैलियां और सभाएं कर रहे हैं. ऐसे में शुभेंदु की बग़ावत टीएमसी के लिए भारी पड़ सकती है. वे जिले की उस नंदीग्राम सीट से विधायक हैं जिसने वर्ष 2007 में जमीन अधिग्रहण के ख़िलाफ़ हिंसक आंदोलन के जरिए सुर्खियां बटोरी थीं और टीएमसी के सत्ता में पहुंचने का रास्ता साफ किया था.

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प्रशांत किशोर से नाराज़गी
आखिर कभी दीदी यानी ममता बनर्जी के सबसे करीबी नेताओं में शुमार शुभेंदु के साथ ऐसा क्या हुआ कि अचानक उनके सुर बदल गए हैं? इसके लिए कम से कम छह महीने पीछे लौटना होगा. टीएमसी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, 'दरअसल अधिकारी बीते कुछ महीनों से पार्टी में अपनी उपेक्षा से नाराज चल रहे थे. पार्टी का शीर्ष नेतृत्व चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सलाह पर चल रहा है. खासकर पूर्व मेदिनीपुर जिले के मामलों में अधिकारी से राय लेने तक की ज़रूरत नहीं समझी गई.' वह कहते हैं कि इसके साथ ही ममता जिस तरह अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को उत्तराधिकारी के तौर पर पेश कर रही हैं उससे भी अधिकारी बंधुओं में भारी नाराजगी है.

शुभेंदु की उपेक्षा 
सरकारी सूत्रों का कहना है कि शुभेंदु के परिवहन मंत्री होने के बावजूद हाल के महीनों में मंत्रालय से संबंधित ज्यादातर फ़ैसले ममता और उनके क़रीबी लोग ही करते रहे हैं. इसके अलावा शुभेंदु की पहल पर पार्टी में शामिल होने वाले लोगों को उनके मुकाबले ज्यादा तरजीह दी जा रही थी. शुभेंदु ने बीते सप्ताह एक जनसभा में किसी का नाम लिए बिना कहा था, 'मैं किसी की मदद या पैराशूट के जरिए ऊपर नहीं आया हूं, लेकिन मैं जिन नेताओं को पार्टी में लाया था आज वही मेरे ख़िलाफ़ साजिश रच रहे हैं.' बीते 10 नवंबर को नंदीग्राम में भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी के बैनर तले आयोजित एक रैली में शुभेंदु ने कहा, 'मैं 13 वर्षों से इलाके के लोगों के सुख-दुख में साथ हूं. यहां जो आंदोलन हुआ वह किसी एक व्यक्ति का नहीं था, लेकिन अब चुनाव नजदीक आने पर तमाम नेता सियासी रोटियां सेकने का प्रयास कर रहे हैं.'

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पीके को लेकर भी विरोध
इधर प्रशांत किशोर को लेकर भी विरोध अब सार्वजनिक स्तर पर फूटने लगा है. टीएमसी में प्रशांत किशोर का कितना विरोध है, यह पार्टी के विधायकों के बयानों से समझा जा सकता है. मुर्शीदाबाद जिले के तृणमूल विधायक नियामत शेख ने रविवार को एक जनसभा के दौरान कहा था कि क्या हमें प्रशांत किशोर से राजनीति समझने की जरूरत है? कौन हैं पीके? यदि बंगाल में टीएमसी को नुकसान पहुंचता है तो यह पीके की गलती होगी.
 वहीं कूचबिहार के तृणमूल विधायक मिहिर गोस्वामी ने भी प्रशांत किशोर को लेकर आपत्ति दर्ज कराई थी. उन्होंने छह हफ्ते पहले पार्टी के सभी संगठनात्मक पदों से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने सोशल मीडिया पर कई सवाल पोस्ट किए. इसमें से एक में उन्होंने पूछा कि क्या- टीएमसी अभी भी वाकई ममता बनर्जी की पार्टी है? उनका कहना है कि ऐसा लगता है कि पार्टी को किसी कॉन्ट्रैक्टर को दे दिया गया है।है.

सिद्धिकुला चौधरी भी सख्त
इन बगावती तेवरों के बीच पश्चिम बंगाल सरकार में मंत्री सिद्दिकुला चौधरी न अपने ही पार्टी के नेता के खिलाफ बगावत शुरू कर दी है. सिद्दिकुला चौधरी को टीएमसी की ओर से उन्हें चुनाव की तैयारियों को लेकर मंगलकोट की जिम्मेदारी लेने को कहा गया है. सिद्धिकुला ने कहा कि मै किसी के अंडर काम करने को तैयार नहीं हुं, मुझे जिम्मेदारी देने पर पूरी तरह से आजादी देनी होगी. उन्होंने कहा कि मैं वहां काम करने जाऊंगा तो लोग भी आयेंगे, लेकिन कुछ लोग वहां झमेला करने की कोशिश करेंगे जो अच्छा नही होगा.