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सार्वजनिक बैंकों ने 3 सालों में 2.4 लाख करोड़ रु किए राइट ऑफ, ममता ने साधा मोदी सरकार पर निशाना

देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने वित्तवर्ष 2014-15 से सितंबर, 2017 तक 2.47 लाख करोड़ का एनपीए लोन राईट ऑफ कर दिया है।

Updated on: 04 Apr 2018, 01:08 PM

नई दिल्ली:

देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने वित्तवर्ष 2014-15 से सितंबर, 2017 तक 2.47 लाख करोड़ का एनपीए लोन राईट ऑफ कर दिया है। वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ल ने यह जानकारी क्रोनी कैपिटलिस्ट कर्ज-माफी के सवाल पर एक लिखित जवाब में दी।

बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी ने सोशल मीडिया पर इस जवाब को पोस्‍ट करते हुए लिखा कि मैं हैरान हूं कि जब देश का किसान रो रहा है, अपने कर्ज के बोझ के चलते आत्‍महत्‍या कर रहा है और सरकार उस पर ध्‍यान देने के बजाय कारोबारियों को फायदा पहुंचाने में लगी है।

वहीं शिव प्रताप शुक्ला ने निर्दलीय राज्यसभा सांसद रिताब्रता बनर्जी की ओर से पूछे गए सवाल के जवाब में बताया कि बैंकिंग सेक्टर में एनपीए को राईट ऑफ किया जाना एक सामान्य प्रक्रिया है।

2.47 लाख करोड़ का यह एनपीए बैंकों की ओर से अपने बही-खातों को साफ-सुथरा करने के लिए किया गया है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ओर से बैंकों की ग्लोबल मॉनीटरिंग रिपोर्ट के हवाले से यह आंकड़ा जारी किया गया है।

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शुक्ला ने अपनी बात रखते हुए कहा कि ऐसे कर्ज़ों को राइट ऑफ करने के बाद भी कर्ज़दारों पर देनदारी बनी रहती है और उन्हें इसे अदा करना होता है। वसूली की प्रक्रिया कानूनी व्यवस्था के तहत चलती रहती है।

वित्त राज्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि लोन राइट ऑफ करने का मतलब कर्जदार को फायदा पहुंचाना बिल्कुल भी नहीं है।

गौरतलब है कि निर्दलीय राज्यसभा सांसद रिताब्रता बनर्जी ने क्रोनी कैपिटलिस्ट कर्ज-माफी संबंध में सवाल पूछा था कि क्या यह सच है कि सितंबर 2017 तक क्रोनी कॉरेपोरेट पर बकाया सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का 2.4 लाख करोड़ कर्ज मौजूदा केंद्र सरकार ने माफ कर दिया है? और अगर ऐसा है तो उन कॉरपोरेट घरानों के नाम बताए जाएं और कर्ज-माफी का कारण बताया जाए?

शुक्ला ने नाम बताए जाने के सवाल पर जवाब दिया कि भारतीय रिज़र्व बैंक कानून, 1934 की धारा 45 ई के तहत हर कर्ज़दार के आधार पर कर्ज संबंधी सूचना का खुलासा नहीं किया जा सकता।

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