मालेगांव ब्लास्ट केस : सुप्रीम कोर्ट ने ले. कर्नल पुरोहित की SIT जांच अनुरोध को ठुकराया
याचिका में 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में अपने कथित अपहरण, गैरकानूनी नजरबंदी और यातनायें दिये जाने के आरोपों की न्यायालय की निगरानी में विशेष जांच दल से जांच कराने का अनुरोध किया था।
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ले. कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित की उस याचिका पर विचार करने से इंकार कर दिया जिसमें 2008 के मालेगांव मामले में उनका कथित अपहरण, गैरकानूनी तरीके से हिरासत में रखने और यातना देने के आरोपों की न्यायालय की निगरानी वाली एसआईटी से जांच का अनुरोध किया गया था। जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस के एम जोसेफ की बेंच ने कहा कि पुरोहित की याचिका पर इस समय विचार करने से मालेगांव मामले में चल रहे मुकदमे की सुनवाई पर असर पड़ सकता है।
बेंच ने हालांकि पुरोहित को निचली अदालत में उनकी दलीलें रखने की छूट प्रदान करते हुए कहा कि उनकी याचिका पर वह कोई राय व्यक्त नहीं कर रही है। बेंच ने कहा, 'हमें इस समय इसमें क्यों हस्तक्षेप करना चाहिए। इससे सुनवाई पर असर पड़ सकता है।'
पुरोहित की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि इस याचिका में उठाये गये मुद्दों पर गौर करने की आवश्यकता है। परंतु बेंच ने उनसे कहा कि इन्हें निचली अदालत के समक्ष उठाया जाये। पुरोहित इस समय जमानत पर हैं। उन्हें पिछले साल शीर्ष अदालत ने जमानत प्रदान की थी।
पुरोहित ने 27 अगस्त को दायर अपनी याचिका में 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में अपने कथित अपहरण, गैरकानूनी नजरबंदी और यातनायें दिये जाने के आरोपों की न्यायालय की निगरानी में विशेष जांच दल से जांच कराने का अनुरोध किया था।
इसके अलावा, पुरोहित ने महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधक दस्ते के अधिकारियों द्वारा उनकी गैरकानूनी नजरबंदी और फिर उन्हें यातनायें दिये जाने के मामले में समुचित मुआवजा दिलाने का भी अनुरोध किया था।
उन्होंने कहा कि इस बारे में सभी प्राधिकारियों के पास अनेक शिकायतें की गयी और उनसे इनका समाधान करने का अनुरोध किया गया।
पुरोहित ने गृह मंत्रालय के पूर्व संयुक्त सचिव आरवीएस मणि के हालिया इंटरव्यू और 'द हिन्दू टेरर-इनसाइडर एकाउण्ट आफ मिनिस्ट्री आफ होम अफेयर्स 2006-2010' नाम की पुस्तक का भी हवाला दिया था। उन्होंने इंटरव्यू का जिक्र करते हुये याचिका में कहा था कि इसमें बताया गया कि याचिकाकर्ता को पिछली सरकार में कुछ घटकों ने राजनीतिक वजहों से फंसाया था।
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पुरोहित ने याचिका में दावा किया कि उसे अदालत में पेश करने से पहले आठ दिन तक आतंकवाद निरोधक दस्ते के अधिकारियों ने बुरी तरह यातनायें दी थीं। मालेगांव में 29 सितंबर, 2008 को हुये बम विस्फोट में 7 व्यक्ति मारे गये थे।
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