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सर्जिकल स्ट्राइक पर मेजर ने खोला राज, कहा- लौटना सबसे मुश्किल था, कान के पास से निकल रही थी गोली

भारतीय सेना ने सीमा पार स्थित आतंकियों के लॉन्च पैड्स को ध्वस्त करने के लिए पिछले साल 28-29 सितंबर को सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया था।

Updated on: 10 Sep 2017, 09:55 PM

highlights

  • सर्जिकल स्ट्राइक के एक साल पूरे होने के मौके पर आई किताब में ऑपरेशन की जानकारी
  • ऑपरेशन को लीड करने वाले ऑफिसर को किताब में दिया 'मेजर टैंगो' नाम
  • मेजर टैंगो ने बताया, कैसे हुई सर्जिकल स्ट्राइक की तैयारी और दुश्मन को मारने के बाद लौटना क्यों था मुश्किल

नई दिल्ली:

पिछले साल सितंबर में पाकिस्तान की सीमा में किए गए सर्जिकल स्ट्राइक की अगुवाई करने वाले मेजर ने कहा है कि यह ऑपरेशन बेहद और योजना के मुताबिक था लेकिन कार्रवाई के बाद लौटना सबसे मुश्किल था।

मेजर के मुताबिक तब दुश्मन सेना की ओर से चलाई जा रही गोलियां कान के पास से निकल रही थीं।

सर्जिकल स्ट्राइक के एक साल होने के मौके पर आई एक नई किताब 'इंडिया मोस्ट फियरलेस: ट्रू स्टोरिज ऑफ मॉडर्न मिलिट्री हिरोज' में सर्जिकल स्ट्राइक का नेतृत्व करने वाले ऑफिसर के हवाले से उस ऑपरेशन के बारे में कई जानकारियां दी गई हैं।

इस किताब में उस ऑफिसर को मेजर माइक टैंगो का नाम दिया गया है। भारतीय सेना ने सीमा पार स्थित आतंकियों के लॉन्च पैड्स को ध्वस्त करने के लिए पिछले साल 28-29 सितंबर को सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया था।

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आर्मी ने सर्जिकल स्ट्राइक के लिए उड़ी हमले में नुकसान उठाने वाले यूनिट से ही सैनिक चुने थे।

सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक के लिए उड़ी हमले में नुकसान झेलने वाले दो यूनिटों के सैनिकों को मिलाकर 'घटक टुकड़ी' बनाया और फिर मिशन को सफल बनाने के लिए उन्हें सभी जरूरी जानकारी और सपोर्ट दिए गए।

किताब के मुताबिक, 'रणनीतिक रूप से यह बेहतरीन कदम था। उसके आसपास और सीमांत के आसपास की जानकारी उनसे बेहतर शायद ही किसी को थी। लेकिन एक और भी कारण था। उनको मिशन में शामिल करने का मकसद उड़ी हमलों का बदला लेना था।

'विकल्पों के बारे में इंटेलिजेंस ब्यूरो और रिसर्च और एनालिसिस विंग के सीनियर ऑफिसर्स ने विचार किया और फिर सरकार के पास इसे भेजा गया।'

मेजर टैंगो को इस सर्जिकल स्ट्राइक के नेतृत्व की जिम्मेदारी दी गई।

किताब में कहा गया है, 'टीम लीडर मेजर टेंगो ने खुद ही ऑपरेशन के लिए हर जवान को चुना था। वह यह अच्छी तरह जानते थे कि 19 लोगों की जान एक तरह से उनके हाथ में थी।'

मेजर टेंगो ने अपने हिसाब से सबसे बेस्ट टीम चुनी थी। उनके हवाले से किताब में कहा गया है, 'एक चीज मुझे परेशान कर रही थी और वह था लौटना। मुझे मालूम था कि यही हम अपने जवान खो सकते थे।'

मेजर के अनुसार, 'कमांडोज घबराए नहीं थे, लेकिन एलओसी पर चढ़ाई वाले रास्ते को पार करना कठिन था। जिस ओर सैनिकों का पीठ था वहां से पाकिस्तानी सैनिक गोलीबारी कर रहे थे। सैनिक उनके टारगेट पर थे।'

सर्जिकल स्ट्राइक के लिए आईएसआई की मदद से संचालित और पाकिस्तानी सेना से संरक्षित प्राप्त आंतकियों के 4 लॉन्चिंग पैड्स को चुना गया था। इस किताब को शिव अरूर और राहुल सिंह ने लिखा है। इसे पेंगविन इंडिया ने प्रकाशित किया है।

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किताब के मुताबिक ऑपरेशन से पहले मेजर के साथियों ने सीमा पार 4 लोगों से संपर्क साधा था। इसमें पाक अधिकृत कश्मीर के 2 ग्रामीण और 2 उस इलाके में सक्रिय पाकिस्तानी नागरिक थे।

दोनों गुप्तचर खूंखार आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से थे, जिन्हें कुछ साल पहले भारतीय एजेंसियों ने वापस भेज दिया था।

किताब में कहा गया है कि चार ठिकानों पर हुए इस ऑपरेशन में 38 से 40 आतंकी और दो पाकिस्तानी जवान मारे गए थे।

सर्जिकल स्ट्राइक के बाद मेजर ने उस रास्ते से नहीं लौटने का फैसला किया जिस रास्ते से भारतीय सेना पाक सीमा में दाखिल हुई थी।

किताब के मुताबिक इसके बावजूद लौटते हुए उनके पीछे लगातार गोलियां चल रही थीं। पूरी टीम को जमीन पर अपने पेट के बल लेटकर लौटना पड़ा। आखिरकार मेजर टैंगो की टीम सुबह होने से पहले सुबह 4.30 के करीब एलओसी पार करने में कामयाब हो गई।

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