वह कवि जिसकी कविता मन को आंदोलित कर देती है। वह कवि जिसकी कविता की गूंज मीलों दूर तक जाती है। वह कवि जो जनकवि के साथ राष्ट्रकवि भी था उस कवि का नाम मैथिलीशरण गुप्त था। मैथिलीशरण गुप्त (Maithili Sharan Gupt) का जन्म 3 अगस्त, 1886 को झाँसी में हुआ। वह खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। गुप्त जी कबीर दास के भक्त थे।
मैथली शरण गुप्त ने कविता का सही अर्थ अपने इस वाक्य में बताया है-'केवल मनोरंजन न कवि का कर्म होना चाहिए, उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए'।
किसी की जाति जन्म-जात नहीं होती। मैथली शरण गुप्त ने अपनी कविताओं में यह बात स्पष्ट रूप से कही। उन्होंने कहा मनुष्य स्वयं बनाता है। राक्षसी होकर भी (जन्म से) हिडम्बा स्वयं को मनुष्य जाति में –एक नारी के रूप में- भीम के समक्ष प्रस्तुत करती है और अपने जन्म से ऊपर उठ जाती है।
होकर भी राक्षसी मैं, अंत में तो नारी हूं
जन्म से मैं जो भी रहूं जाति से तुम्हारी हूं
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आज उनके जन्मदिन पर आपको उनके बारे में 5 दिलचस्प बाते बताने जा रहे हैं।
1- मैथिली शरण गुप्त खड़ी बोली कविता के मार्ग निर्माता थे।
2-उन्हें तीसरे उच्चतम सम्मान, 'पद्मभूषण' से भी नवाज़ा गया।
3-उन्हें राष्ट्र कवि की उपाधि राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी ने दी थी।
4-उन्हें राष्ट्र कवि की उपाधि उनकी कविता टभारत भारतीट के लिए दी गयी।
5-महावीर प्रसाद द्विवेदी इनके साहित्य गुरु थे।
Source : News Nation Bureau