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नाथूराम गोडसे ने तीसरी कोशिश में बापू को मारा था, दो बार और कर चुका था कोशिश

बापू आभा और मनु के कंधों पर हाथ रखकर प्रार्थना सभा में शामिल होने जा रहे थे, तभी अचानक उनके सामने नाथूराम विनायक गोडसे आ गया. गोडसे ने मनु को धक्‍का दे दिया और बैरेटा पिस्टल गांधीजी के सामने तान दी. बापू के सीने पर गोडसे ने एक के बाद एक तीन गोलियां दाग दीं.

Updated on: 02 Oct 2019, 10:06 AM

नई दिल्‍ली:

नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को बापू को मारने से पहले मई 1934 और सितंबर 1944 में भी नाकाम कोशिश की थी. साजिश में नाकाम होने पर अपने दोस्त नारायण आप्टे के साथ वह मुंबई चला गया. गोडसे और आप्‍टे ने दत्तात्रय परचुरे और गंगाधर दंडवते के साथ मिलकर बैरेटा नामक पिस्टल खरीदी थी. 29 जनवरी 1948 को वापस दोनों फिर दिल्ली पहुंचे और रेलवे स्टेशन के रिटायरिंग रूम नंबर 6 में ठहरे थे. अगले दिन नाथूराम गोडसे ने महात्‍मा गांधी को मार दिया था. महात्‍मा गांधी की 150वीं जयंती पर आज पूरा देश उन्‍हें याद कर रहा है. 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में जन्‍मे बापू ने पूरा जीवन लोगों को अहिंसा का पाठ पढ़ाया. उनकी अहिंसा के पाठ के आगे अंग्रेज भी झुक गए और 15 अगस्‍त 1947 को देश आजाद हो गया. आजादी की खुमारी अभी उतरी भी नहीं थी कि 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली के बिड़ला भवन में गांधीजी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

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30 जनवरी 1948 को गांधीजी ने सरदार पटेल को शाम 4 बजे मिलने के लिए बुलाया था. पटेल अपनी बेटी मणिबेन के साथ तय समय पर गांधीजी से मिलने पहुंचे थे. बिड़ला भवन में हर शाम 5 बजे प्रार्थना सभा होती थी. गांधीजी जब भी दिल्ली में होते तो इस सभा में जरूर शामिल होते थे. शाम के 5 बजे गांधीजी सरदार पटेल के साथ बैठक कर रहे थे. अचानक उनकी नजर घड़ी पर गई, तब सवा 5 बज रहे थे. इसके बाद गांधीजी प्रार्थनासभा के लिए निकले.

बापू आभा और मनु के कंधों पर हाथ रखकर प्रार्थना सभा में शामिल होने जा रहे थे, तभी अचानक उनके सामने नाथूराम विनायक गोडसे आ गया. गोडसे ने 'नमस्ते बापू' कहा. तभी मनु ने कहा, भैया, बापू को जाने दो, पहले से ही देर हो चुकी है. इस बीच गोडसे ने मनु को धक्‍का दे दिया और बैरेटा पिस्टल गांधीजी के सामने तान दी. बापू के सीने पर गोडसे ने एक के बाद एक तीन गोलियां दाग दीं. गांधीजी वहीं पर गिर पड़े.

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नाथूराम ने अपने बयानों में माना था कि गांधी की हत्या केवल हमने की है. हालांकि दूसरे आरोपी के तौर पर बापू ने अपने छोटे भाई गोपाल गोडसे का नाम लिया था. गोडसे ने कहा था, 'शुक्रवार शाम 4.50 बजे मैं बिड़ला भवन के गेट पर पहुंच गया, मैं चार-पांच लोगों के झुंड के बीच में घुसकर सिक्योरिटी को झांसा देते हुए अंदर जाने में सफल रहा. मैंने भीड़ में अपने आप को छिपाए रखा, ताकि किसी को मुझ पर शक न हो.'

गोडसे ने कबूल किया था कि शाम 5.10 बजे मैंने गांधीजी को प्रार्थना सभा की ओर जाते देखा. गांधीजी के अगल-बगल दो लड़कियां थीं, जिसके कंधे पर वो हाथ रखकर चल रहे थे. गांधी को सामने से आते आते देख उनके महान कामों के लिए मैंने हाथ जोड़कर उन्‍हें प्रणाम किया और गोलियां चली दीं. मैं दो ही गोली चलाने वाला था. लेकिन तीसरी भी चल गई और गांधी जी वहीं पर गिर पड़े.'

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नाथूराम गोडसे ने सरेंडर के लिए दोनों हाथ ऊपर कर दिए. उसके बाद कोई हिम्मत करके मेरे पास नहीं आ रहा था. पुलिसवाले भी दूर से ही देख रहे थे. मैं खुद पुलिस-पुलिस चिल्लाया. करीब 5-6 मिनट के बाद भीड़ जमा हो गई और लोग मुझे पीटने लगे. बापू की हत्‍या की खबर देश भर में आग की तरह फैल गई. बिड़ला हाउस में ही गांधी के पार्थिव शरीर को ढककर रखा गया था. इस बीच उनके सबसे छोटे बेटे देवदास गांधी पहुंचे और बापू के पार्थिव शरीर पर से कपड़े को हटा दिया. उन्‍होंने कहा, अहिंसा के पुजारी के साथ हुई हिंसा को दुनिया देखे.

30 जनवरी को दिल्ली के तुगलक रोड थाने में बापू की हत्या की एफआईआर दर्ज की गई थी. एफआईआर की कॉपी उर्दू में लिखी गई थी, जिसमें पूरी वारदात के बारे में बताया गया था. दिल्ली के तुगलक रोड के रिकॉर्ड रूम में आज भी वो FIR के पन्ने संभाल कर रखी गई है. एफआईआर में 8 लोगों को हत्‍या का आरोपी बनाया गया था.

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दिगम्बर बड़गे को सरकारी गवाह बनने के कारण बरी कर दिया गया. शंकर किस्तैया को उच्च न्यायालय ने माफी दे दी, जबकि वीर सावरकर के खिलाफ कोई सबूत न मिलने से बरी कर दिया गया. बाकी 5 अभियुक्तों में से गोपाल गोडसे, मदनलाल पाहवा और विष्णु रामकृष्ण करकरे को आजीवन कारावास हुआ था. जबकि नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को 15 नवंबर 1949 को फांसी पर लटका दिया गया.