महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती आधुनिक भारत के महान चिन्तक, समाज-सुधारक थे जिन्होंने भारत को जोड़ने का काम किया. उन्होंने अपने ज्ञान से लोगों को सही राह दिखाकर लोगों को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ देश को एकजुट किया. आज महर्षि दयानंद सरस्वती (Maharshi Dayanand Saraswati) की जयंती है.
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स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 1824 में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके बचपन का नाम 'मूलशंकर' था. वे महान ईश्वर भक्त थे, उन्होंने वेदों के प्रचार और आर्यावर्त(भारत) को स्वतंत्रता दिलाने के लिए मुम्बई में आर्यसमाज की स्थापना की थी. वे एक संन्यासी तथा एक चिंतक थे. उन्होंने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना. वेदों की ओर लौटो यह उनका प्रमुख नारा था. स्वामी दयानंद ने वेदों का भाष्य किया इसलिए उन्हें ऋषि कहा जाता है क्योंकि 'ऋषयो मन्त्र दृष्टारः वेदमन्त्रों के अर्थ का दृष्टा ऋषि होता है.स्वामी दयानंद सरस्वती ने कर्म सिद्धान्त, पुनर्जन्म, ब्रह्मचर्य तथा सन्यास को अपने दर्शन के चार स्तम्भ बनाया. उन्होंने ही सबसे पहले 1876 में 'स्वराज्य' का नारा दिया जिसे बाद में लोकमान्य तिलक ने आगे बढ़ाया. महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती की जयंती पर आज हम आपको बताने जा रहे हैं उनके द्वारा दिए गए कुछ खास विचार जिन्हें आपको जरूर जानना चाहिए-
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- नुक्सान से निपटने में सबसे ज़रूरी चीज है उससे मिलने वाले सबक को ना भूलना. वो आपको सही मायने में विजेता बनाता है.
- इंसान को दिया गया सबसे बड़ा संगीत यंत्र आवाज है.
- लोग कहते हैं कि वे समझते हैं कि मैं क्या कहता हूं और मैं सरल हूं. मैं सरल नहीं हूँ, मैं स्पष्ट हूं.
- कोई मूल्य तब मूल्यवान है जब मूल्य का मूल्य स्वंय के लिए मूल्यवान हो
- सबसे उच्च कोटि की सेवा ऐसे व्यक्ति की मदद करना है जो बदले में आपको धन्यवाद कहने में असमर्थ हो
- आप दूसरों को बदलना चाहते हैं ताकि आप आज़ाद रह सकें. लेकिन, ये कभी ऐसे काम नहीं करता. दूसरों को स्वीकार करिए और आप मुक्त हैं.