logo-image

राज्यपाल के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर- गुरुवार को ही होगा फ्लोर टेस्ट

महाराष्ट्र संकट में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार की रात को फ्लोर टेस्ट को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. SC ने फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. कोर्ट के फैसले सीएम उद्धव ठाकरे को बड़ा झटका लगा है.

Updated on: 29 Jun 2022, 09:30 PM

highlights

  • महाराष्ट्र की सियासी संकट के बीच सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
  • मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को सुप्रीम कोर्ट से लगा बड़ा झटका
  • उद्धव सरकार को महाराष्ट्र विधानसभा में साबित करना होगा बहुमत

नई दिल्ली:

महाराष्ट्र संकट में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार की रात को फ्लोर टेस्ट को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. SC ने फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. कोर्ट के फैसले सीएम उद्धव ठाकरे को बड़ा झटका लगा है. राज्यपाल के फैसले पर मुहर लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि महाराष्ट्र की विधानसभा में गुरुवार को ही फ्लोर टेस्ट होगा. कोर्ट में 11 जुलाई को अन्य मामलों पर सुनवाई होगी. अब उद्धव सरकार की अग्निपरीक्षा होगी. सीएम उद्धव ठाकरे को 30 जून को विधानसभा में बहुमत साबित करना होगा.

यह भी पढ़ें : दिल्ली सरकारी स्कूल के शिक्षक और बच्चों ने गुजरात भाजपा टीम को दिया न्यौता

सुनवाई के दौरान शिवसेना की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट से फ्लोर टेस्ट टालने की मांग की. उन्होंने कहा कि इस वक्त 2 विधायक कोरोना पॉजिटिव हैं और 2 विदेश में हैं. ऐसे में अचानक फ्लोर टेस्ट का औचित्य नहीं है. साथ ही सिंघवी ने दलील दी कि एक बार को उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि अगर आगे चलकर बागी विधायक अयोग्य करार हो जाते हैं तो फ्लोर टेस्ट में उनके वोट का क्या महत्व रह जाएगा. उन्होंने कोर्ट को बताया कि बागी विधायक उस समय से अयोग्य श्रेणी में हैं, जबसे इनके खिलाफ डिप्टी स्पीकर के समक्ष अयोग्य करार देने की एप्लीकेशन दाखिल है.

अयोग्यता के निपटारे से पहले न हो फ्लोर टेस्ट
वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि अयोग्यता के निपटारे से पहले इन विधायकों को वोट डालने की इजाजत नहीं देनी चाहिए, ये संविधान के मूल भावना के खिलाफ है. उन्होंने कोर्ट से मांग की कि दलबदल कानून के संबंध में दसवीं अनुसूची के प्रावधान और स्पष्ट और सख्त होने चाहिए. उन्होंने कहा कि पिछली सुनवाई पर ही हमने फ्लोर टेस्ट की आशंका जताई थी, जो सही साबित हुई और हमें कोर्ट आना पड़ा. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि राज्यपाल ने सत्र बुलाने से पहले CM या मंत्रिमंडल से सलाह तक नहीं ली, जबकि उन्हें पूछना चाहिए था.

कोर्ट ने पूछे ये सवाल
सिंघवी की दलील सुनने के बाद जज ने पूछा, क्या एक बार फ्लोर टेस्ट होने के बाद दोबारा फ्लोर टेस्ट कराए जाने की कोई समय सीमा है. इसके जवाब में सिंघवी ने कोर्ट को बताया कि 6 महीने तक दोबारा फ्लोर टेस्ट नहीं हो सकता है. इसके बाद कोर्ट ने कहा कि बागी विधायकों को अयोग्य करार दिए जाने का मसला हमारे सामने पेंडिंग है, लेकिन फ्लोर टेस्ट से उसका क्या संबंध है, साफ करें. इसके जवाब में सिंघवी ने कहा कि एक तरफ कोर्ट ने अयोग्यता की कार्रवाई को रोक दिया है, दूसरी ओर विधायक कल होने वाले फ्लोर टेस्ट में वोट करने जा रहे हैं, ये सीधे-सीधे विरोधाभास है. उन्होंने कोर्ट को बताया कि बागी विधायक उस समय से अयोग्य की श्रेणी में हैं, जब से इनके खिलाफ डिप्टी स्पीकर के समक्ष अयोग्य करार देने की एप्लीकेशन दाखिल है.

राज्यपाल की भूमिका पर उठाए सवाल
इसके साथ ही शिवसेना के वकील सिंघवी ने कोर्ट से कहा कि राज्यपाल ने सत्र बुलाने से पहले CM या मंत्रिमंडल से सलाह तक नहीं ली, जबकि उन्हें पूछना चाहिए था. इस पर कोर्ट ने उनसे सवालिया लहजे में पूछा कि राज्यपाल के विवेक पर हम शक क्यों करें. इसके जवाब में सिंघवी ने कहा कि राज्यपाल का फैसला भी न्यायिक समीक्षा से अलग नहीं है. उन्होंने कहा कि अभी जो हो रहा है, पहले नहीं हुआ. ऐसा नहीं हुआ कि कोर्ट ने अयोग्यता की कार्रवाई पर रोक लगाई हो और राज्यपाल फ्लोर टेस्ट का आदेश दे दें. 

कुछ दिन फ्लोर टेस्ट नहीं होगा तो क्या आसमान फट पड़ेगा
इस दौरान सिंघवी ने गवर्नर पर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें अब तक प्राप्त हुए लेटर की तथ्यपरकता को चेक करने की जहमत भी नहीं उठाई. दो दिन पहले वो कोविड से मुक्त होकर लौटे हैं और विपक्ष के नेता से मुलाकात करके फ्लोर टेस्ट की मांग कर देते हैं. सिंघवी ने कोर्ट को बताया कि राज्यपाल के फैसले की समीक्षा करने के अधिकार पर रोक नहीं है. राज्यपाल की शक्ति के संबंध में अनुच्छेद 361 की प्रतिरक्षा के दायरे का अर्थ है कि न्यायालय राज्यपाल को पक्षकार नहीं बनाया और उन्हें नोटिस जारी नहीं करेगा. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अगर कुछ दिन फ्लोर टेस्ट नहीं होगा तो क्या आसमान फट पड़ेगा. 

स्पीकर को हटाने का प्रस्ताव लंबित है, अयोग्य करार देने की कार्रवाई नहीं हो सकती
अभिषेक मनु सिंघवी की दलीलों को खारिज करते हुए शिंदे ग्रुप के वकील नीरज किशन कौल ने अरुणाचल के केस का हवाला देते हुए दलील दी कि जब तक स्पीकर को हटाने का प्रस्ताव लंबित है, वो अयोग्य करार दिए जाने की करवाई पर आगे नहीं बढ़ सकते  हैं. उन्होंने कहा कि कोर्ट खुद पहले की सुनवाई में कह चुका है कि अयोग्यता की करवाई के पेंडिंग रहते फ्लोर टेस्ट को टाला नहीं जा सकता है. उन्होंने कहा कि यहां हालात थोड़े अलग है. इसलिए कि डिप्टी स्पीकर ने खुद से अयोग्यता की करवाई को पेंडिंग नहीं रखा है, कोर्ट के दखल से कार्यवाही रोकी गई है. उन्होंने कहा कि खुद दूसरे पक्ष ने भी यही दलील दी है.

CM फ्लोर टेस्ट से कतराता है, इसका मतलब वो अपना बहुमत खो चुका है
आज तक कभी भी फ्लोर टेस्ट पर न रोक लगी है और न ही टाली गई है. Court पहले ही कह चुका है कि लोकतंत्र में बहुमत साबित करने के लिए फ्लोर टेस्ट से बेहतर कुछ नहीं है. लिहाजा, अयोग्यता की करवाई के चलते इसे रोका नहीं जा सकता. अगर कोई CM फ्लोर टेस्ट से कतराता है तो जाहिर है वो अपना बहुमत खो चुका है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि राज्यपाल के फैसले को पलटने के लिए जरूरी है कि उनकी बदनीयती साबित हो.

यह भी पढ़ें : 'महा-संकट में संजय राउत और शिवसेना सरकार'

शिंदे गुट ने डिप्टी स्पीकर की भूमिका पर उठाए सवाल
शिंदे ग्रुप के वकील नीरज कौल ने कोर्ट में कहा कि आम तौर पर पार्टियां फ्लोर टेस्ट कराने के लिए कोर्ट में दौड़ती हैं, क्योंकि कोई और पार्टी को हाईजैक कर रहा होता है, लेकिन इधर इसका उल्टा हो रहा है. पार्टी कोई फ्लोर टेस्ट नहीं चाहती है. उन्होंने कहा कि रेबिया बनाम अरुणाचल मामले में कोर्ट ने उन विधायकों को स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की वोटिंग में हिस्सा लेने से नहीं रोका था, जिनके खिलाफ अयोग्यता का फैसला लंबित था. अतः राज्य सरकार के बहुमत परीक्षण से रोकना लोकतंत्र के खिलाफ होगा. उन्होंने दलील दी कि सरकार को जब लगा कि वो अल्पमत में आ गई तो डिप्टी स्पीकर का इस्तेमाल करके अयोग्यता का नोटिस भेजना शुरू कर दिया. इस आधार पर फ्लोर टेस्ट कैसे रोका जाएगा. कौल ने कहा कि गवर्नर फ्लोर टेस्ट के लिए इसलिए जल्दी में हैं, क्योंकि उनके पास विधायकों का लेटर है. सरकार के प्रति असंतोष को जाहिर करते हुए. इसके अलावा और क्या चाहिए और फिर डिप्टी स्पीकर ने जो किया, वो SC के पुराने फैसलो में दी गई व्यवस्था के खिलाफ है. उन्हें हटाने का प्रस्ताव भेजा गया और उन्होंने अयोग्यता के नोटिस भेज दिए. सुप्रीम कोर्ट उन विधायकों के लिए राहत का सबब बना.

अल्पमत में है सरकार, इसलिए फ्लोर टेस्ट से हैं घबराहट
शिंदे के वकील नीरज कौल ने कहा कि दलील दी जा रही है कि राज्यपाल ने मीडिया रिपोर्ट के आधार पर तय कर लिया कि सरकार अल्पमत में आ गई है, इसलिए फ्लोर टेस्ट का निर्देश दिया. अगर ऐसा हुआ है तो इसमें गलत क्या है. मीडिया इस लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा है. राज्यपाल का भी एक संवैधानिक अधिकार है. कोर्ट को उस स्थिति को देखना होगा, जिसमें राज्यपाल ने कार्यवाही की है. इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने उनसे पूछा कि तथ्यों के आधार पर बताइए कि बागी दल में कितने विधायक हैं? इसके जवाब में शिंदे के वकील कौल ने कहा कि शिवसेना के 55 में से 39 बागी हैं. इसलिए फ्लोर टेस्ट का सामना करने में याची को घबराहट है. इस जस्टिस सूर्यकांत ने पूछा कि उनमें से कितनों को अयोग्यता के नोटिस दिए? इसके जवाब में कौल ने कहा कि 16 विधायकों को अयोग्यता का नोटिस दिया गया है.