हाईकोर्ट ने पूछा - जनसंख्या नियंत्रित ना करने वाले राज्यों को संसद में अधिक सीटें क्यों?
मद्रास उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक आदेश पारित कर केंद्र सरकार से पूछा है कि जनसंख्या नियंत्रित नहीं कर सकने वाले राज्यों को संसद में अधिक सीटें क्यों मिली हुई हैं.
highlights
- तमिलनाडु में लोकसभा के दो सांसद हुए कम
- कोर्ट ने तमिलनाडु को मुआवजा देने को भी कहा
- कोर्ट बोला - जनसंख्या से ना तय हो लोकसभा की सीटें
चेन्नई:
मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) ने जनसंख्या नियंत्रित करने वाले राज्यों की संसद में सीटें कम करने को लेकर सख्त टिप्पणी की है. कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि जिन राज्यों ने जनसंख्या (Population) पर नियंत्रण नहीं किया है, उन्हें संसद में अधिक सीटें क्यों दी हुई हैं. कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु (Tamilnadu) और आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों सफलतापूर्वक जनसंख्या को नियंत्रित किया और उनके पास यूपी, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे ज्यादा जनसंख्या वाले राज्यों की तुलना में संसद में सीटों की संख्या कम है.
तमिलनाडु को मुआवजा देने को कहा
बार और बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक न्यायमूर्ति एन किरुबाकरण और बी पुगलेंधी की पीठ ने 17 अगस्त को आदेश पारित किया. इस फैसले को सुनाने के बाद न्यायमूर्ति एन किरुबाकरण सेवानिवृत्त हो गए. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जिन राज्यों ने अपने यहां योजना बनाकर जनसंख्या पर नियंत्रण किया है उनके बारे में सकारात्मक सोच रखनी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु को पिछले 14 चुनावों के लिए मुआवजा मिलना चाहिए. अदालत के अनुमान के मुताबिक यह राशि करीब 5,600 करोड़ रुपये होगी.
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क्यों सुनाया फैसला
दरअसल कोर्ट ने अपने फैसला तमिलनाडु में लोकसभा की कम हुई सीटों के मामलों में एक मामले की सुनवाई के बाद सुनाया. कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु में 1962 तक लोकसभा में 41 सांसद थे. हालांकि बाद में जनसंख्या में कमी के चलते तमिलनाडु लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या घटकर 39 हो गई. यानि जनसंख्या में कमी के कारण राज्य में दो लोकसभा के सांसद कम हो गए.
एनडीए सरकार के अविश्वास प्रस्ताव का जिक्र
कोर्ट ने अपने फैसले में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के खिलाफ 1999 के अविश्वास प्रस्ताव का जिक्र भी किया. यह फैसला दो सीटों के बारे में नहीं है. हर एक वोट मायने रखता है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि संसद में राज्यों के जन प्रतिनिधियों की संख्या तय करने में जनसंख्या नियंत्रण को कारण नहीं बनाया जा सकता है.
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