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बुंदेलखंड की हैंडपंप वाली चाचियां, दूर दराज़ इलाकों में ट्यूबवेल ठीक कर बन गई हैं मिसाल

जानकारी के मुताबिक ये महिलाएं हैंडपंप ठीक करने का काम ये पिछले 8-9 साल से कर रहीं हैं।

Updated on: 24 Jun 2018, 03:23 PM

नई दिल्ली:

बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहा सूखाग्रस्त इलाका बुंदेलखंड इस बार कुछ आदिवासी महिलाओं के अदम्य साहस की वजह से सुर्ख़ियों में है। इन महिलाओं ने पानी की कमी पर रोने की बजाए इससे निपटने के लिए जमीनी स्तर पर काम करने का निर्णय लिया। 

पानी की किल्लत दूर करने के लिए यह महिलाएं बुंदेलखंड क्षेत्र के अलग-अलग हिस्सों में जाती है और खराब पड़े नलकूपों को ठीक करती हैं।

15 महिलाओं के इस समूह को लोग 'हैंडपंप वाली चाचियां' के नाम से बुलाते हैं। वहीं कुछ जगहों पर ये महिलाएं 'ट्यूबवेल वाली चाची' के नाम से भी जानी जाती हैं।

जानकारी के मुताबिक ये महिलाएं हैंडपंप ठीक करने का काम करीब 8-9 साल से कर रहीं हैं।

इतना ही नहीं इस ग्रुप की महिलाओं ने भोपाल, राजस्थान और दिल्ली में भी जाकर काम किया। 

एक सदस्या ने अपने संगठन के बारे में बताते हुए कहा कि हमें प्रशासन की ओर से कोई मदद नहीं दी जाती है हम लोद स्वंय ही पैदल यात्रा करते हुए गांव-गांव तक पहुंचते है।

बता दें कि महिलाओं का यह समूह मध्यप्रदेश में बुंदेलखंड इलाके के छतरपुर जिले में झिरियाझोर गांव से ताल्लुक रखता है। इन महिलाओं के पास कई किलोमीटर दूर मौजूद गांवों से हैंडपंप ठीक करने के लिए फोन कॉल आते है।

हैंडपंप से संबंधित किसी भी तरह की शिकायत मिलने पर ये लोगों की मदद के लिए निकल पड़ती है। 

बताया जाता है कि कई बार सरकार और प्रशासन की तरफ से हैंडपंप की खराबी को दूर करने में काफी देरी होती है। इसलिए लोग सरकारी मैकेनिक को बुलाने के बजाय हैंडपंप वाली चाची को प्रथामिकता देते है। 

यह महिलाएं केवल इस सीजन में 100 से ज्यादा हैंडपंपों की मरम्मत कर चुकी हैं। 

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