logo-image

किसान क्रांति यात्रा के बाद अब 25 हजार भूमिहीनों ने भरी हुंकार, दिल्ली के लिए हुए पैदल रवाना

पहले दिन सत्याग्रही 19 किलोमीटर चले और मुरैना जिले की सीमा में पहुंच गए. देशभर के भूमिहीन गांधी जयंती पर मेला मैदान में जमा हुए थे और दो दिन तक वहीं डेरा डाले रहे.

Updated on: 04 Oct 2018, 11:15 PM

ग्वालियर:

भूमि अधिकार की मांग को लेकर 25 हजार से ज्यादा भूमिहीन सत्याग्रही गुरुवार को मध्यप्रदेश के ग्वालियर से दिल्ली की ओर कूच कर गए. आगरा-मुंबई मार्ग पर बढ़ते सत्याग्रही के हाथ में झंडा और कंधे पर थैला टंगा हुआ है, उनमें अपना हक पाने का जज्बा साफ पढ़ा जा सकता है. पहले दिन सत्याग्रही 19 किलोमीटर चले और मुरैना जिले की सीमा में पहुंच गए. देशभर के भूमिहीन गांधी जयंती पर मेला मैदान में जमा हुए थे और दो दिन तक वहीं डेरा डाले रहे. उसके बाद गुरुवार को उन्होंने दिल्ली की ओर रुख किया.

पहले दिन के मार्च में पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, चिंतक और विचारक गोविंदाचार्य के अलावा एकता परिषद के संस्थापक पी.वी. राजगोपाल, गांधीवादी सुब्बा राव सहित अनेक प्रमुख लोगों ने हिस्सेदारी निभाई। सभी ने सत्याग्रहियों के साथ कदमताल कर अपने लक्ष्य और इरादों को जाहिर किया.

एकता परिषद और सहयोगी संगठनों के आह्वान पर हजारों भूमिहीनों ने जनांदोलन-2018 पांच सूत्रीय मांगों को लेकर शुरू किया है. उनकी मांग है कि आवासीय कृषिभूमि अधिकार कानून, महिला कृषक हकदारी कानून (बूमन फॉर्मर राइट एक्ट), जमीन के लंबित प्रकरणों के निराकरण के लिए न्यायालयों का गठन किया जाए, राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति की घोषणा और उसका क्रियान्वयन, वनाधिकार कानून 2006 व पंचायत अधिनियम 1996 के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए राष्ट्रीय और राज्यस्तर पर निगरानी समिति बनाई जाए.

एकता परिषद की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, पहले दिन सत्याग्रही 19 किलोमीटर चले और यात्रा मुरैना जिले में सुसेराकोठी और बुरवां गांव के बीच पहुंच गई है.

यशवंत सिन्हा सरकार की नीतियों पर हमलावर हुए, उन्होंने गुरुवार को यहां भी सरकार की कार्यशैली और उसके उद्योगपति-परस्त होने को लेकर हमला बोला.

आंदोलन की अगुवाई पी.वी. राजगोपाल, जलपुरुष राजेंद्र सिंह, गांधीवादी सुब्बा राव व अन्य कर रहे हैं. मेला मैदान में जमा हुए सामाजिक कार्यकर्ता और समाज का वंचित तबका जल, जंगल और जमीन की लड़ाई को लेकर सड़क पर उतरे हैं और दिल्ली की ओर बढ़ चले हैं, इन सामाजिक कार्यकर्ताओं के आंदोलन से आने वाले दिनों में राज्य और केंद्र सरकार की मुसीबतें बढ़ सकती हैं.

वहीं इस सत्याग्रह का समर्थन करने 6 अक्टूबर को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी मुरैना पहुंचने वाले हैं. एक तरफ बीजेपी के खिलाफ समाजसेवियों की लामबंदी तो दूसरी ओर कांग्रेस का साथ नए राजनीतिक समीकरणों को जन्म देने वाला है.