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Chandrayaan-3: चंद्रयान-3 के मुकाबले लूना-25 में कितना दम? दोनों की लैंडिंग में ये है फर्क   

Chandrayaan-3: चंद्रयान के लिए 23-24 अगस्त लैंडिंग तारीख रखी गई है. ये तिथि लूना-25 के बिल्कुल आसपास की है, दुनिया भर की निगाहें दोनों अभियानों पर  टिकीं

Updated on: 17 Aug 2023, 08:58 AM

highlights

  • चंद्रयान के लिए 23-24 अगस्त लैंडिंग तारीख रखी गई है
  • लूना-25 का भार मात्र 1,750 किलोग्राम है
  • चंद्रयान-3 के 3,800 किलोग्राम से काफी हल्का है

 

नई दिल्ली:

भारत का चंद्रयान-3 अपने आखिरी पड़ाव में है. यह चांद के बिल्कुल करीब पहुंच चुका है. बताया जा रहा है कि अब लैंडर और रोवर के अलग होने की प्र​क्रिया तेज होगी. इसके लिए गति को नियंत्रित करने की तैयारी हो रही है ताकि चांद पर साफ्ट लैंडिंग कराई जा सके. वहीं दूसरी तरफ रूस का लूना-25 भी तेजी से आगे बढ़ रहा है. इसकी लैंडिंग तारीख की बात करें तो यह 21-23 अगस्त तय की गई. वहीं चंद्रयान के लिए 23-24 अगस्त लैंडिंग तारीख रखी गई है. ये तिथि बिल्कुल आसपास की है. दुनिया भर की निगाहें दोनों अभियानों पर  टिकीं हुई हैं. 

आपको बता दें कि चंद्रयान-3, भारत का चंद्रमा के लिए तीसरा मिशन है. इसकी यात्रा 14 जुलाई से शुरू हुई. इसने 5 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में  सफलतापूर्वक इंटर किया. इसरो 40 दिनों के अंदर सॉफ्ट लैंडिंग को तैयार है.  वहीं लूना-25 को 10 अगस्त को अंतरिक्ष में भेजा गया. इसने चंद्रमा के लिए सीधे रास्ते को अपनाया है. इसकी लैंडिंग करीब 11 दिन में कराई जा रही है. पहली बार पांच दशक पहले यानि 1976 में सोवियत युग के समय लूना-24 मिशन को भेजा गया है. लूना-25 मिशन में उपयोग यान काफी हल्का है. इसके साथ ईंधन की बात करें तो इसमें भंडारण क्षमता भी ज्यादा है. इस वजह सेअपने गंतव्य तक छोटा रास्ता तय करने में वह सक्षम है. 

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दोनों मिशन में क्या है अंतर?

दोनों मिशनों के अलग-अलग पहुंचने के समय का प्रमुख कारण ईंधन दक्षता है. लूना-25 का भार मात्र 1,750 किलोग्राम है. यह चंद्रयान-3 के 3,800 किलोग्राम से काफी हल्का है. भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के अनुसार, यह कम द्रव्यमान लूना-25 को अधिक बेहतर तरीके से आगे बढ़ने में सुगम बनाता है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष डॉ के.सिवन के अनुसार, लूना-25 का अधिशेष ईंधन भंडारण, ईंधन दक्षता से जुड़ी परेशानियों को दूर करता है. इस कारण वह अधिक सीधा मार्ग अपना पाया. इसकी तुलना में  चंद्रयान-3 की ईंधन वहन क्षमता में रुकावट के कारण चंद्रमा तक अधिक घुमावदार मार्ग तय करने की जरूरत पड़ी है. डॉ के सिवन का कहना है कि लूना-25 की लैंडिंग से सामूहिक प्रतिबद्धता को बल मिलेगा. दोनों ही मिशनों का लक्ष्य दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचना है. दोनों की भागीदारी इस खोज को और अहम बनाएगी.