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भगवान श्रीराम के पैरों के निशान मिले इराक की पहाड़ियों पर, साथ में हैं हनुमानजी भी

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स भगवान श्रीराम के भित्तिचित्र इराक में पाए जाने का दावा करती हैं. यह दावा अयोध्या शोध संस्थान के एक प्रतिनिधिमंडल ने किया है, जो इसी साल इराक दौरे पर गया था.

Updated on: 26 Jun 2019, 01:47 PM

highlights

  • इराक की दरबंद-ई-बेलूला चट्टान पर मिले भागवान श्रीराम और हनुमान के निशान.
  • पहाड़ी पर मिले भित्तिचित्र में एक राजा और उसके सेवक को दिखाया गया.
  • अयोध्या शोध संस्थान का दावा व्यापक शोध-अनुसंधान से हो जाएगा खुलासा.

नई दिल्ली.:

सिंधु घाटी सभ्यता के प्राचीन अवशेष बताते हैं कि वहां अपने समय की बेहद उन्नत सभ्यता वास करती थी. सरस्वती नदी की प्रामाणिकता भी किसी और ने नहीं, बल्कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने मानी है. यानी कह सकते हैं कि भारतीय सभ्यता का विस्तार प्राचीन मिस्र से लेकर मेसोपोटामिया और सुदूर देशों तक था. ऐसे में कतई आश्चर्य नहीं होता है, जब कुछ मीडिया रिपोर्ट्स भगवान श्रीराम के भित्तिचित्र इराक में पाए जाने का दावा करती हैं. यह दावा अयोध्या शोध संस्थान के एक प्रतिनिधिमंडल ने किया है, जो इसी साल इराक दौरे पर गया था.

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2000 ईसा पूर्व का है भित्तिचित्र
इस प्रतिनिधिमंडल का दावा है कि उन्हें इराक की दरबंद-ई-बेलूला चट्टान में लगभग 2000 ईसा पूर्व के भित्तिचित्र देखने को मिले. उनका दावा है कि वास्तव में यह भित्तिचित्र भगवान राम की ही छवि हैं. भौगोलिक लिहाज से इराक का यह इलाका होरेन शेखान क्षेत्र में एक संकरे मार्ग से गुजरता है. भित्तिचित्र में एक नंगी छाती वाले राजा को दिखाया गया है, जो धनुष पर तीर ताने हैं. इस राजा के पास एक तरकश और उसकी कमर के पट्टे में एक खंजर या छोटी तलवार भी लगी है. इस छवि में प्रार्थना के अंदाज में मुड़ी हुई हथेलियों के साथ एक दूसरी छवि भी नजर आती है, जो हनुमानजी की है.

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भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने इराक दौरे पर खोजा
इसके बारे में अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक योगेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं कि यह हनुमान की छवि है. इराकी विद्वानों का कहना है कि यह भित्तिचित्र पहाड़ी जनजाति के प्रमुख टार्डुनी को दर्शाती है. अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस बारे में विस्तार से एक रिपोर्ट जारी की है. इसके मुताबिक इराक में भारतीय राजदूत प्रदीप सिंह राजपुरोहित की अगुआई में एक प्रतिनिधिमंडल इराक गया. इस दौरे के लिए संस्कृति विभाग के अंतर्गत आने वाले अयोध्या शोध संस्थान ने खासतौर पर अनुरोध किया था. इसमें एब्रिल वाणिज्य दूतावास में तैनात एक भारतीय राजनयिक, चंद्रमौली कर्ण, सुलेमानिया विश्वविद्यालय के इतिहासकार और कुर्दिस्तान के इराकी गवर्नर भी शामिल थे.

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भगवान राम सिर्फ कहानियों में नहीं
अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक योगेंद्र प्रताप सिंह ने दावा किया कि बेलुला दर्रे में भगवान राम के ये निशान प्रत्यक्ष प्रमाण है कि राम सिर्फ कहानियों में नहीं हैं. इस प्रतिनिधिमंडल ने भारतीय और मेसोपोटामिया संस्कृतियों के बीच संबंध का विस्तृत अध्ययन करने के लिए चित्रमय प्रमाण एकत्र किया है. भारतीय प्रतिनिधिमंडल का दावा है कि चित्र में बने राजा और बंदर वास्तव में भगवान राम और हनुमान हैं. यह अलग बात है कि इराक के पुरातत्वविद और इतिहासकार इसे भगवान राम से नहीं जोड़ते हैं.

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व्यापक शोध के लिए इराक सरकार से अनुमति मांगी
जाहिर है अब इसे स्थापित करने के लिए व्यापक शोध-अनुसंधान की जरूरत है. योगेंद्र प्रताप सिंह के मुताबिक भगवान श्रीराम और इराक का लिंक खोजने की जरूरत है. इसके लिए जरूरी शोध कार्य के लिए अयोध्या शोध संस्थान ने शोध के लिए इराक सरकार से अनुमति मांगी है. अनुमति मिलने के बाद कड़ियों को जोड़ने पर काम होगा. प्राचीन इतिहास में कई संदर्भ इस ओर पुख्ता इशारा करते हैं लोअर मेसोपोटामिया पर 4500 और 1900 ईसा पूर्व के बीच सुमेरियों का शासन था. साक्ष्य बताते हैं कि वे भारत से आए थे और आनुवांशिक रूप से सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़े थे. जाहिर है अगर यह कड़ियां मिल जाती हैं, तो न सिर्फ भगवान श्रीराम के अस्तित्व पर अंगुलियां उठाने वालों को करारा जवाब मिलेगा, बल्कि भारतीय दंतकथाओं को प्रमाणमिकता भी मिल जाएगी.