तीन तलाक पर सुनवाई खत्म, सभी पक्षों की दलीले सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट फैसला रखा सुरक्षित
तीन तलाक पर आज छठे और आखिरी दिन सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा।
highlights
- तीन तलाक पर आज छठे और आखिरी दिन सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
- बुधवार को SC ने कहा, तीन तलाक मुद्दे के समाधान के लिए सरकार कानून लाए
- अटॉर्नी जनरल ने कहा, हम मुद्दे पर फैसला कर भी सकते हैं और नहीं भी, लेकिन आप (SC) तो कीजिए
नई दिल्ली:
तीन तलाक पर आज छठे और आखिरी दिन सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है। सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ गुरुवार (11 मई) से तीन तलाक पर दोनों पक्षों को सुन रहा है।
कोर्ट ने कहा था कि दोनों पक्षों को मामले में अपने तर्क रखने के लिए दो-दो दिन दिए जाएंगे। उसके बाद दोनों पक्षों को प्रत्युत्तर देने के लिए एक-एक दिन दिया जाएगा।
संवैधानिक पीठ में चीफ जस्टिस केहर के अलावा जस्टिस कुरियन जोसफ, जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन, जस्टिस उदय उमेश ललित और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर भी शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार से मुसलमानों में तीन तलाक के रिवाज की वैधता को चुनौती देती याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है।
LIVE UPDATES:
तीन तलाक पर सुनवाई पूरी, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित
Supreme Court reserves order in triple talaq case pic.twitter.com/YMIOy0eIzl
— ANI (@ANI_news) May 18, 2017
अमित चड्ढा ने कहा कि तीन तलाक पाप है।
Lawyer Amit Chadha,appearing for main petitioner,Saira Bano tells SC 'In my opinion,#TripleTalaq is a sin and is between me & my maker'
— ANI (@ANI_news) May 18, 2017
तीन तलाक के मुद्दे पर मुख्य याचिकाकर्ता शायरा बानो के वकील अमित चड्ढा अपना पक्ष रखेंगे
Lawyer Amit Chadha,appearing for main petitioner,Saira Bano arguing before the five judge Constitution bench of SC #TripleTalaq
— ANI (@ANI_news) May 18, 2017
'तीन तलाक मुद्दे के समाधान के लिए सरकार कानून लाए'
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार को सुझाव दिया कि तीन तलाक के मुद्दे पर वह कोर्ट के फैसले का इंतजार करने के बजाय मुस्लिमों में तीन तलाक सहित शादी व तलाक से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए एक कानून लाए।
चीफ जस्टिस जगदीश सिंह केहर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से कहा, 'हम मुद्दे पर फैसला कर भी सकते हैं और नहीं भी, लेकिन आप तो कीजिए।'
किसी भी कानून की गैर मौजूदगी में कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा करने को लेकर शीर्ष कोर्ट द्वारा तैयार विशाखा दिशा-निर्देशों का जब रोहतगी ने संदर्भ दिया, तो जस्टिस कुरियन ने कहा कि यह कानून का मामला है न कि संविधान का।
रोहतगी ने जब हिदू धर्म में सती प्रथा, भ्रूणहत्या तथा देवदासी प्रथा सहित कई सुधारों का हवाला दिया, तो जस्टिस जोसेफ ने कहा कि इन सबों पर विधायी फैसले लिए गए हैं।
जस्टिस केहर ने कहा, 'क्या इसे कोर्ट ने किया? नहीं, इन सबसे विधायिका ने निजात दिलाई।'
रोहतगी ने तीन तलाक को 'दुखदायी' प्रथा करार देते हुए कोर्ट से अनुरोध किया कि वह इस मामले में 'मौलिक अधिकारों के अभिभावक के रूप में कदम उठाए।'
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देश के बंटवारे के वक्त के आतंक तथा आघात को याद करते हुए उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 को संविधान में इसलिए शामिल किया गया था, ताकि सबके लिए यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी धार्मिक भावनाओं के बुनियादी मूल्यों पर राज्य कोई हस्तक्षेप न कर सके।
तीन तलाक की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले एक याचिकाकर्ता की तरफ से कोर्ट में पेश हुईं वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि कोर्ट मामले पर पिछले 67 वर्षो के संदर्भ में गौर कर रहा है, जब मौलिक अधिकार अस्तित्व में आया था न कि 1,400 साल पहले जब इस्लाम अस्तित्व में आया था।
उन्होंने कहा कि कोर्ट को तलाक के सामाजिक नतीजों का समाधान करना चाहिए, जिसमें महिलाओं का सबकुछ लुट जाता है।
संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष बराबर तथा कानून के समान संरक्षण का हवाला देते हुए जयसिंह ने कहा कि धार्मिक आस्था तथा प्रथाओं के आधार पर देश महिलाओं व पुरुषों के बीच किसी भी तरह के मतभेद को मान्यता न देने को बाध्य है।
इससे पहले, सुबह में पीठ ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) से पूछा कि क्या यह संभव है कि निकाह की सहमति देने से पहले महिला को विकल्प मुहैया कराया जाए कि उसकी शादी तीन तलाक से नहीं टूटेगी और क्या काजी उनके (एआईएमपीएलबी) निर्देशों का पालन करेंगे।
जस्टिस केहर ने एआईएमपीएलबी से कहा, 'आप इस विकल्प को निकाहनामे में शामिल कर सकते हैं कि निकाह के लिए सहमति देने से पहले वह तीन तलाक को ना कह सके।'
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सुझाव पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए वरिष्ठ वकील यूसुफ हातिम मुच्चाला ने कहा कि काजी एआईएमपीएलबी के निर्देश से बंधे नहीं हैं।
एआईएमपीएलबी की कार्यकारिणी समिति के सदस्य मुच्चाला ने हालांकि एआईएमपीएलबी द्वारा लखनऊ में अप्रैल महीने में पारित उस प्रस्ताव की ओर इशारा किया, जिसमें उसने समुदाय से वैसे लोगों का बहिष्कार करने की अपील की है, जो तीन तलाक का सहारा लेते हैं।
उन्होंने कहा कि वह विनम्रता पूर्वक सुझाव पर विचार करेंगे और उसे देखेंगे।
तीन तलाक की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान एआईएमपीएलबी को कोर्ट का सुझाव सामने आया।
एआईएमपीएलबी हालांकि ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि तीन तलाक एक 'गुनाह और आपत्तिजनक' प्रथा है, फिर भी इसे जायज ठहराया गया है और इसके दुरुपयोग के खिलाफ समुदाय को जागरूक करने का प्रयास जारी है।
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(इनपुट IANS से भी)
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