SC में केंद्र सरकार ने कहा ट्रिपल तलाक अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक का मामला नहीं, महिलाओं के हित के लिए लड़ाई
मुस्लिम पर्सनल लॉ आस्था का विषय है और न्यायालय को इस पर सवाल उठाने से बचना चाहिए।
नई दिल्ली:
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि तीन तलाक एक 'गुनाह और आपत्तिजनक' प्रथा है, फिर भी इसे जायज ठहराया गया है और इसके दुरुपयोग के खिलाफ समुदाय को जागरूक करने का प्रयास जारी है।
वरिष्ठ वकील यूसुफ हातिम मनचंदा ने न्यायालय से तीन तलाक के मामले में हस्तक्षेप न करने के लिए कहा, क्योंकि यह आस्था का मसला है और इसका पालन मुस्लिम समुदाय 1,400 साल पहले से करते आ रहा है, जब इस्लाम अस्तित्व में आया था।
LIVE UPDATES:
ट्रिपल तलाक पर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि ये अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक का मामला नहीं है।
AG Mukul Rohatgi told the Supreme Court that this is not an issue of majority & minority community #TripleTalaq
— ANI (@ANI_news) May 17, 2017
मुस्लिम महिलाएं भी दे सकती है तीन तलाक: बोर्ड
Women can pronounce #TripleTalaq too: Muslim Board tells #SupremeCourtofIndia
— ANI Digital (@ani_digital) May 17, 2017
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AIMPLB ने सुप्रीम कोर्ट को अप्रैल में एक प्रस्ताव दिखाया जिसमें कहा गया है कि तीन तलाक पाप है और जो लोग ऐसा करते हैं उनका बहिष्कार किया जाना चाहिये
AIMPLB also showed SC a resolution passed on 14 Apr 2017 which says triple talaq is a sin and community should boycott person doing it
— ANI (@ANI_news) May 17, 2017
AIMPLB के वकील ने कहा कि बोर्ड सलाहों पर विचार संजीदगी से विचार करेगा
The AIMPLB lawyer also said that the board accepts the suggestions in all humility and will look into it
— ANI (@ANI_news) May 17, 2017
सुप्रीम कोर्ट के इस सवाल के जवाब में AIMPLB के वकील यूसुफ मुछाला ने कहा कि ज़रूरी नहीं कि काज़ी बोर्ड के सलाह को माने
One of AIMPLB's lawyers Yousuf Muchala told SC that board's advisory is not mandatory for all Qazis to follow
— ANI (@ANI_news) May 17, 2017
सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही यह भी पूछा, क्या काज़ी बोर्ड की सलाहों को मानेगा?
SC also wanted to know from AIMPLB that whether the board's advisory will be followed by the Qazi at the ground level.
— ANI (@ANI_news) May 17, 2017
सुप्रीम कोर्ट ने AIMPLB से पूछा, क्या मुस्लिम महिला तीन तलाक को मानने से इनकार करने का अधिकार है?
CJI Khehar asks Kapil Sibal(lawyer for AIMPLB) that is it possible to give bride the right that she will not accept instant triple talaq?
— ANI (@ANI_news) May 17, 2017
उन्होंने कहा कि तीन तलाक एक 'गुनाह और आपत्तिजनक' प्रथा है, फिर भी इसे जायज ठहराया गया है और इसके दुरुपयोग के खिलाफ समुदाय को जागरूक करने का प्रयास जारी है।
एआईएमपीएलबी की कार्यकारिणी समिति के सदस्य मनचंदा ने यह सुझाव पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ को तब दिया, जब पीठ ने उनसे पूछा कि तीन तलाक को निकाह नामा से अलग क्यों किया गया और तलाक अहसान तथा हसन को अकेले क्यों शामिल किया गया।
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एआईएमपीएलबी की तरफ से ही पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि कुछ लोगों का मानना है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था और यह आस्था का मामला है और इस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। उसी तरह, मुस्लिम पर्सनल लॉ भी आस्था का विषय है और न्यायालय को इस पर सवाल उठाने से बचना चाहिए।
सिब्बल पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ के समक्ष अपनी दलील पेश कर रहे थे, जिसमें प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह केहर, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित तथा न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर शामिल हैं, जो तीन तलाक की संवैधानिक मान्यता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं की सुनवाई कर रही है।
जब सिब्बल ने जोर दिया कि पर्सनल लॉ आस्था का मामला है और न्यायालय को इसमें दखल नहीं देना चाहिए, तो न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा, 'हो सकता है। लेकिन फिलहाल 1,400 वर्षो बाद कुछ महिलाएं हमारे पास इंसाफ मांगने के लिए आई हैं।'
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सिब्बल ने कहा, 'पर्सनल लॉ कुरान व हदीस से लिया गया है और तीन तलाक 1,400 साल पुरानी प्रथा है। हम यह कहने वाले कौन होते हैं कि यह गैर-इस्लामिक है। यह विवेक या नैतिकता का सवाल नहीं, बल्कि आस्था का सवाल है। यह संवैधानिक नैतिकता का सवाल नहीं है।'
सिब्बल ने महान्यायवादी मुकुल रोहतगी द्वारा न्यायालय के समक्ष सोमवार को की गई उस टिप्पणी पर चुटकी ली, जिसमें उन्होंने कहा था कि न्यायालय मुस्लिमों में तलाक के तीनों रूपों को अमान्य करार दे और केंद्र सरकार तलाक के लिए नया कानून लाएगी।
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जब सिब्बल ने कहा कि सरकार सर्वोच्च न्यायालय से नहीं कह सकती कि आप पहले तलाके के तीनों रूपों को अमान्य करार दीजिए, उसके बाद हम एक नया कानून लाएंगे, तब प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति केहर ने कहा, 'पहली बार आप हमारे साथ हैं।'
सिब्बल ने कहा, 'आस्था को कानून की कसौटी पर नहीं कसा जा सकता।' उन्होंने कहा, 'हम बेहद बेहद जटिल दुनिया में प्रवेश कर चुके हैं, जहां क्या गलत है और क्या सही इसकी खोज करने के लिए हमें 1,400 साल पहले इतिहास में जाना होगा।'
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