गुजरात दंगा: जाकिया जाफरी की याचिका पर HC का फैसला आज, जानिए कब क्या हुआ
आज गुजरात हाईकोर्ट जाकिया जाफरी के उस याचिका पर फैसला सुनाएगी जो उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और अन्य को SIT और निचली अदालत से क्लीनचीट मिलने के खिलाफ दाखिल की थी।
highlights
- नरेंद्र मोदी के खिलाफ दाखिल जाकिया जाफरी की याचिका पर आज गुजरात हाई कोर्ट सुनाएगी फैसला
- 2002 में हुए दंगे में एहसान जाफरी की मौत के बाद जाकिया जाफरी ने मोदी को जांच के दायरे में लाने के लिए दाखिल की थी याचिका
नई दिल्ली:
गुजरात में साल 2002 में हुए सांप्रदायिक दंगे में कांग्रेस नेता एहसान जाफरी के मारे जाने के बाद 76 साल की उनकी पत्नी जाकिया जाफरी पति को इंसाफ दिलाने के लिए 15 सालों से कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं।
आज गुजरात हाईकोर्ट जाकिया जाफरी की उस याचिका पर फैसला सुनाएगी जो उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और अन्य को SIT और निचली अदालत से क्लीनचीट मिलने के खिलाफ दाखिल की थी।
जाकिया जाफरी चाहती हैं कि साल 2002 के दंगे और गुलबर्ग सोसायटी में हुई हिंसा में उनकी पति की जो मौत हुई थी उसमें उस वक्त सीएम रहे नरेंद्र मोदी की जिम्मेदारी सुनिश्चत कर उनके खिलाफ जांच फिर से शुरू की जाए।
जाकिया ने केस को लेकर कहा था, 'मेरी लड़ाई उनके खिलाफ है जिन्होंने दंगों को अंजाम देने के लिए साधन और मौका दिया। आज हम आपको बता रहे है।' आखिर क्या है पूरा मामला और जाकिया जाफरी क्यों लड़ रही हैं उस वक्त गुजरात के सीएम रहे नरेंद्र मोदी के खिलाफ केस ?
28 फरवरी 2002 - गोधरा में सांप्रदायिक दंगे के बाद भीड़ मुस्लिम बहुत गुलबर्ग सोसायटी में दीवार तोड़कर घुस गई थी। उसी सोसायटी में हिंसा के दौरान जाकिया जाफरी के पति और कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी भी मारे गए थे।
8 जून 2006 - एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी ने हिंसा को लेकर स्थानीय पुलिस, प्रशासन के उच्च अधिकारी, उस वक्त राज्य के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी समेत 62 मंत्री और अन्य लोगों के खिलाफ केस दर्ज कराना चाहा लेकिन पुलिस ने इससे इनकार कर दिया।
3 नवंबर 2007 - जाकिया जाफरी ने गुजरात हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की लेकिन उनकी याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने पहले उन्हें मजिस्ट्रेट कोर्ट में जाकर अपनी अर्जी देने का आदेश दिया।
26 मार्च 2008 - सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की मोदी सरकार को 2002 में हुए दंगे के 9 अलग-अलग केसों में फिर से जांच कराने का आदेश दिया। इसमें गुलबर्ग सोसायटी हिंसा भी शामिल था। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के लिए पूर्व सीबीआई निदेशक आरके राघवन की अगुवाई में एसआईटी (विशेष जांच समिति) का गठन कर दिया।
मार्च 2009 - सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी को जाकिया जाफरी की शिकायत पर दंगे में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका की जांच करने का आदेश दे दिया।
सितंबर 2009 - सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले में ट्रायल पर लगी रोक को हटा दिया। इसमें गुलबर्ग सोसायटी केस भी शामिल था।
27 मार्च 2010 - मामले की जांच के दौरान एसआईटी ने उस वक्त राज्य के सीएम रहे नरेंद्र मोदी को नोटिस भेजकर तलब किया और उनसे कई घंटों तक पूछताछ की।
14 मई 2010 - एसआईटी ने सर्वोच्च न्यायालय में अपनी रिपोर्ट सौंप दी जिसमें कहा गया कि जो भी आरोप लगाए गए हैं उसको साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं मिला।
11 मार्च 2011 - सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी को मामले की जांच में कोर्ट की मदद कर रहे वकील राजू रामचंद्रन के उठाए गए संदेहों पर ध्यान देने का आदेश दिया।
18 जून 2011 - एसआईटी की रिपोर्ट पर अपना रिपोर्ट देने के लिए वकील राजू रामचंद्रन अहमदाबाद गए और वहां उन्होंने गवाहों से मुलाकात की।
25 जुलाई 2011 - राजू रामचंद्रन ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी जिसमें उन्हेंने एसआईटी रिपोर्ट से अलग जाकर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ केस चलाने की सिफारिश कर दी।
28 जुलाई 2011 - सुप्रीम कोर्ट ने राजू रामचंद्रन की रिपोर्ट को गुप्त रखा और उसे एसआईटी और गुजरात सरकार को भी देने से इनकार कर दिया।
12 सितंबर 2011 - सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी के फाइनल रिपोर्ट से पहले स्थानीय मजिस्टेट कोर्ट को इस पर फैसला लेने को कहा कि क्या सीएम मोदी और अन्य के खिलाफ जांच हो सकती है।
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8 फरवरी 2012 - एसआईटी ने अहमदाबाद के मजिस्ट्रेट कोर्ट से पहले एक संक्षिप्त रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में सौंप दी।
9 फरवरी 2012 - जाकिया जाफरी और सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने रिपोर्ट तक अपनी पहुंच के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। एसआईटी ने पूरी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जमा हो जाने से पहले जाकिया जाफरी को रिपोर्ट दिखाने से इनकार कर दिया था।
15 फरवरी 2012 - मेट्रोपोलिटियन कोर्ट के मजिस्ट्रेट ने एसआईटी को अपनी पूरी रिपोर्ट (केस पेपर, गवाह और गवाहों की पूरी जानकारी) कोर्ट में सौंपने का आदेश दिया।
15 मार्च 2012 - एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट और केस पेपर्स को कोर्ट में जमा करा दिया।
10 अप्रैल 2012 - मजिस्ट्रेट कोर्ट ने एसआईटी की रिपोर्ट को देखा जिसमें केस को बंद करने की मांग की गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि जिसे मामले में मोदी को आरोपी बनाया गया है उसके खिलाफ कोई भी सबूत नहीं मिला है। स्थानीय अदालत ने एक महीने के भीतर एसआईटी को जाकिया जाफरी को रिपोर्ट की कॉपी उपलब्ध कराने का आदेश दिया।
अप्रैल 2013 - जाकिया जाफरी ने एसआईटी की रिपोर्ट को चुनौती देते हुए फैसले के खिलाफ महनगरीय अदालत में याचिका दाखिल कर दी।
दिसम्बर 2013 - महानगरीय अदालत ने जाफरी की मोदी और अन्य के खिलाफ आपराधिक साजिश के तहत मामला दर्ज करने वाली याचिका को खारिज कर दिया था। जिसके बाद जाकिया जाफरी ने 2014 में गुजरात हाई कोर्ट का रुख किया था।
हाई कोर्ट में इस मामले पर 3 जुलाई को सुनवाई पूरी हो चुकी है। न्यायालय ने जाफरी और सिटिजन फॉर जस्टिस एंड पीस एनजीओ की कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की आपराधिक पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई की है।
इस मामले पर फैसले 9 अगस्त को ही आने वाला था, लेकिन जस्टिस सोनिया गोकानी ने इसे 21 अगस्त तक बढ़ा दिया, जो मामले की सुनवाई कर रही थी।
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