सड़क पर शेरों ने किया खुलेआम शिकार, देखने वाले रह गए हैरान
देश को गिर के जंगल पर गर्व है. गिर के जंगल एशियाई शेरों का घर हैं. देश में सबसे ज़्यादा आम पैदा करने वाला जूनागढ़ इसी इलाके में पड़ता है. जूनागढ़ की सड़कों पर कभी-कभी शेरों के दर्शन हो जाते हैं.
नई दिल्ली:
देश को गिर के जंगल पर गर्व है. गिर के जंगल एशियाई शेरों का घर हैं. देश में सबसे ज़्यादा आम पैदा करने वाला जूनागढ़ इसी इलाके में पड़ता है. जूनागढ़ की सड़कों पर कभी-कभी शेरों के दर्शन हो जाते हैं. कुछ दिनों पहले भी यहां शेर दिखे. लेकिन इस बार जिसने भी उन शेरों को सड़क पर देखा वो सकते में आ गया. दरअसल, खाना और घर बुनियादी ज़रूरतें हैं. हर इंसान की बुनियादी ज़रूरतें हैं. बल्कि यूं कहें कि हर जीव की बुनियादी ज़रूरतें हैं. उन जीवों की भी जो बोल नहीं सकते, या जिनकी भाषा इंसानों की समझ से परे है. लालच भी इंसान की फितरत है. कमोबेश हर इंसान की फितरत. बुनियादी ज़रूरतों को लालच के तराजू पर तौलें तो हर वो जीव भारी पड़ा है, जो ज़्यादा ताकतवर है. और धरती पर अपनी बुद्धिमानी की बदौलत सबसे ताकतवर जीव इंसान है. बात कड़वी है, लेकिन पूरी तरह सच्ची। और जब कड़वी सच्चाई सामने आती है, तो सवाल खड़े होते हैं, कि ऐसा क्यों हो रहा है. लेकिन सामूहिक सरोकारों से जुड़े सवालों में भी लालच की हिस्सेदारी नज़रंदाज़ कर दी जाती है.
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जूनागढ़ की सड़क पर सितम्बर के सुहाने महीने की शुरुआत इस दृश्य के साथ हुई. सड़क पर शेरों को भटकते तो पहले भी देखा गया था. लेकिन इंसानों की बस्ती के बीच पहुंचकर शेरों को शिकार करते किसी ने नहीं देखा था. जिसने भी जंगल में दिखने वाला शेरों का अंदाज़ सड़कों पर देखा, डर गया, भौंचक्का रह गया. मुंबई में संजय गांधी उद्यान से लगी कॉलोनी में तो अक्सर तेंदुए कैमरे में कैद होते हैं. उनके अंदाज़ कुछ ऐसे होते हैं, मानो वो कुछ खोज रहे हों. असम में तो इंसानी बस्ती में जंगली हाथियों का घुसना आम बात है. डरे हुए लोग वन विभाग से बचाव की गुहार लगाते हैं। लेकिन ये सोचने की जहमत नहीं उठाते कि आखिर जंगल के मालिक शहरों का रुख क्यों कर रहे हैं.
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सोचने की बारी आती है, तो सिर्फ यही सोचा जाता है, कि जंगलों तक शहरों का विस्तार कैसे हो. सच्चाई ये है कि इंसानी बस्ती में जंगली जानवरों की मौजूदगी इंसानी लालच का नतीजा है. जंगलों से जानवरों का घर छीनने का नतीजा है, जानवरों का खाना छीनने का नतीजा है. घर-आहार जैसी बुनियादी ज़रूरतों से इंसान खुद समझौता नहीं कर सकता तो उनसे उम्मीद क्यों की जाती है, जो पर्यावरण का अभिन्न अंग हैं, जो पारिस्थितिकी का हिस्सा हैं और जिनके विलुप्त होने के बुरे नतीजे पर्यावरण में भारी असंतुलन के रूप में सामने आ रहे हैं. बेहतर होगा कि पर्यावरण में हर तरह का प्रदूषण फैलाने वाले और फिर वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी पर चिन्ता करने वाले लालच और ज़रूरत के फ़र्क को समझें. धरती के सबसे शक्तिशाली जीव होने के नाते सभी जीवों और प्रकृति के सभी तत्वों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को समझें. तभी सुकून की ज़िंदगी जीने की राह मज़बूत होगी.
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