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लॅा कमिशन ने यूनिफॅार्म सिविल कोड पर मोदी सरकार को दिया करारा झटका, जानें क्यों

लॅा कमिशन ने कहा फिलहाल देश में यूनिफॅार्म सिविल कोड की जरूरत नहीं है।

Updated on: 31 Aug 2018, 09:52 PM

नई दिल्ली:

मोदी सरकार की यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) या समान नागरिक संहिता को लॅा कमीशन ( विधि आयोग) ने करारा झटका दिया है। उन्होंने कहा है कि फिलहाल देश में यूनिफॅार्म सिविल कोड की जरूरत नहीं है। हालांकि कमीशन ने इस पर पूरी परिचर्चा करने के बाद जारी किए कंसल्टेशन पेपर में विभिन्न धर्म, मतों और आस्था के अनुयायियों के पर्सनल लॉ को संहिताबद्ध करने और उन पर अमल की आवश्यकता बताई है।

यूनिफॉर्म सिविल कोड, पर्सनल लॉ को लेकर लॉ कमीशन की रिपोर्ट की मुख्य बातें-

1. इस स्टेज पर यूनिफॉर्म सिविल कोड की ज़रूरत नहीं है।

2. मौजूदा पर्सनल कानूनों में सुधार की ज़रूरत है। धार्मिक परम्पराओं और मूल अधिकारों के बीच सामंजस्य बनाने की ज़रूरत है।

3. ट्रिपल तलाक़ पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही फैसला दे चुका है। रिपोर्ट ट्रिपल तलाक को लेकर किसी कानून का जिक्र नहीं करती, लेकिन इसमें ट्रिपल तलाक़ की तुलना सती , देवदासी, दहेज प्रथा जैसी परम्पराओं से की है। कहा गया है कि ट्रिपल तलाक़ न तो धार्मिक परम्पराओं और न ही मूल अधिकारों से जुड़ा है। कमीशन के मुताबिक एकतरफा तलाक की स्थिति में घरेलू हिंसा रोकथाम कानून और IPC 498 के तहत सजा मिलनी चाहिए।

बहुविवाह

- मुस्लिम में बहुविवाह करने वाले लोगों की संख्या नगण्य है। ऐसे लोगों की तादाद ज़्यादा है, जिन्होंने कई शादी करने के लिए मुस्लिम धर्म अपनाया। कई मुस्लिम देशों में दो विवाह को लेकर सख्त कानून है।

पाकिस्तान में दूसरा विवाह करने के लिए पहली पत्नी की मंजूरी ज़रूरी है। पहली पत्नी की मर्ज़ी के बिना दूसरी शादी करना अपराध है इसलिए ये बेहतर होगा कि निकाहनामे में जिक्र होना चाहिये कि बहुविवाह करना अपराध होगा।

हालांकि कमीशन ने कहा कि वो फिलहाल इसकी सिफारिश नहीं कर रहा क्योंकि मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है।

- मुस्लिम समाज में प्रचलित कॉन्ट्रैक्ट मैरिज महिलाओं के लिए फायदेमंद है, अगर कांट्रेक्ट की शर्तों पर सही तरह से मशविरा कर आपसी सहमति बने।

- रिपोर्ट में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मॉडल निकाहनामा पर विचार करने के लिए कहा गया।

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- लॉ कमीशन ने सभी धर्मो के illegitimate बच्चों के लिए स्पेशल कानून बनाने की सिफारिश की है। कहा गया है कि इन बच्चों को अपने माता-पिता की सम्पति में बराबर हक़ मिलना चाहिए।

- लॉ कमीशन ने स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 में बदलाव की बात की है। अभी शादी को कानूनी मान्यता देने से पहले परिवार वालों को 30 दिन का नोटिस पीरियड दिया जाता है , लॉ कमीशन ने कहा कि ये पीरियड ख़त्म होना चाहिए और कपल को सुरक्षा दी जानी चाहिए।

- कमीशन का मानना है कि इस पीरियड को अंतर्जातीय शादी का विरोध करने वाले परिवार वाले ग़लत इस्तेमाल करते है, साथ ही ये महज शादी के लिए धर्मांतरण को बढ़ावा देता है।