हमारे देश में प्रतिभाशालियों की कमी नहीं है. लेकिन सुविधाओं के अभाव में और हमारी सरकारों की अनदेखी के चलते तमाम ऐसे लोग जो देश-विदेश में जाकर अपने भारत देश का झंडा बुलंद कर सकते हैं मानव जाति को नई दिशा में ले जा सकते हैं खुद अपने रोजमर्रा की चुनौतियों से जूझने पर मजबूर हो जाते हैं. आइए आज आपको एक ऐसे ही शख्स की कहानी से रुबरू करवाते हैं जिसने बिहार से निकल कर अमेरिका तक में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था.
जी हां हम बात कर रहे हैं जाने माने गणितज्ञ डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह की, जिनका गुरुवार को पटना के पीएमसीएच में निधन हो गया. वशिष्ठ नारायण सिंह पटना के कुल्हरिया काम्पलेक्स में अपने परिवार के साथ रहते थे. पिछले कुछ दिनों से वह बीमार थे और तबीयत खराब होने के बाद परिजन उन्हें पीएमसीएच लेकर गए, लेकिन डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया. वहीं परिजनों का आरोप है कि उनके मृत्यु के 2 घंटे के बाद एम्बुलेंस उपलब्ध कराया गया.
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जब लोगों ने पहचाना वशिष्ठ नारायण को
वशिष्ठ नारायण सिंह का बिहार के भोजपुर जिले के वसंतपुर गांव से शुरू हुआ सफर नासा तक पहुंचा जहां उन्होंने अलबर्ट आइंस्टीन के सिद्धांत को एक बार चुनौती दे अपनी योग्यता का डंका बजवाया. वशिष्ठ ने आइंस्टीन के सापेक्षता सिद्धांत E=MC2 को चैलेंज किया था. साथ ही, गौस की थ्योरी पर भी सवाल उठाए थे. यहीं से उनकी प्रतिभा का लोहा दुनिया ने मानना शुरू किया था.
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने प्रतिभा को पहचाना
डॉ. वशिष्ठ ने नेतरहाट विद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा पास की. वह संयुक्त बिहार में टॉपर रहे थे. वशिष्ठ जब पटना साइंस कॉलेज में पढ़ते थे, तब कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जॉन कैली की नजर उन पर पड़ी. कैली ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और 1965 में वशिष्ठ को अपने साथ अमेरिका ले गए. 1969 में उन्होंने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की और वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर बने. इसी दौरान उन्होंने नासा में भी काम किया.
नासा के अपोलो मिशन में जब बंद हो गए थे 30 कंप्यूटर
वशिष्ठ नारायण के जीवन से जुड़ा एक किस्सा बहुत मशहूर है कि नासा में काम करते वक्त, नासा के बहुचर्चित अपोलो मिशन में लॉचिंग के समय वहां के 30 कंप्यूटर ने अचानक काम करना बंद कर दिया था. ये देख वहां बैठे लोगों में हड़कंप मच गया. तब देश के इस लाल ने अपने पैन से एक सादा कागज पर उस वक्त की जरूरी कैलकुलेशन की और बाद में जब सभी कंप्यूटरों ने काम करना शुरू किया तो दोनों की कैलकुलेशन एक समान थी. ये देख वहां बैठे लोग अचंभित रह गए. इन सब के बाद डॉ. वशिष्ठ का परदेश में मन नहीं लगा और 1971 में भारत लौट आए. इसके बाद उन्होंने आईआईटी कानपुर, आईआईटी मुंबई और आईएसआई कोलकाता में काम किया.
मानसिक बीमारी से जूझ रहे थे वशिष्ठ नारायण
डॉ. वशिष्ठ 44 साल से स्कित्जोफ्रेनिया (भूलने की बीमारी) से जूझ रहे थे. जब वे नासा में काम करते थे, तब अपोलो (अंतरिक्ष यान) की लॉन्चिंग से पहले 31 कम्प्यूटर कुछ समय के लिए बंद हो गए. इस दौरान उन्होंने कागज पर ही कैलकुलेशन करना शुरू कर दिया. जब कम्प्यूटर ठीक हुए तो उनका और कम्प्यूटर्स का कैलकुलेशन बराबर था.
शादी के बाद बीमारी के बारे में चला पता
1973 में वशिष्ठ नारायण की शादी वंदना रानी सिंह से हुई थी. तब उनके असामान्य व्यवहार के बारे में लोगों को पता चला. छोटी-छोटी बातों पर काफी गुस्सा करना, कमरा बंद कर दिनभर पढ़ते रहना, रातभर जागना, उनके व्यवहार में शामिल था. इसी बर्ताव के चलते उनकी पत्नी ने जल्द ही उनसे तलाक ले लिया. 1974 में उन्हें पहला दिल का दौरा पड़ा था. 1987 में वशिष्ठ नारायण अपने गांव लौट गए थे.
1989 में हो गए गायब
अगस्त 1989 को रांची में इलाज कराकर उनके भाई उन्हें बेंगलुरु ले जा रहे थे. रास्ते में खंडवा स्टेशन पर उतर गए और भीड़ में कहीं खो गए. करीब 5 साल तक गुमनाम रहने के बाद उनके गांव के लोगों को वे छपरा में मिले. इसके बाद राज्य सरकार ने उनकी सुध ली. उन्हें विमहांस बेंगलुरु इलाज के लिए भेजा गया. जहां मार्च 1993 से जून 1997 तक इलाज चला. इसके बाद से वे गांव में ही रह रहे थे.
तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री शत्रुध्न सिन्हा ने इस बीच उनकी सुध ली थी. स्थिति ठीक नहीं होने पर उन्हे 4 सितंबर 2002 को मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान में भर्ती कराया गया. करीब एक साल दो महीने उनका इलाज चला. स्वास्थ्य में लाभ देखते हुए उन्हें यहां से छुट्टी दे दी गई थी.
यहां हमें समझना होगा कि अगर हमारी केंद्र और राज्य सरकारें देश के प्रतिभाशालियों की मदद को आगे नहीं आएंगे तो हम कल को अपना गूगल, अपना ऐप्पल और फेसबुक जैसे जाने माने सोशल मीडिया प्लेटफार्म कैसे तैयार कर सकेंगे.
Source : News Nation Bureau