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जानिए कौन हैं वीर सावरकर जिनके नाम पर छिड़ी सियासी 'जंग'

विनायक सावरकर का जन्म महाराष्ट्र (उस समय, 'बॉम्बे प्रेसिडेन्सी') में नासिक के निकट भागुर गांव में हुआ था. उनकी माता का नाम राधाबाई और पिता का नाम दामोदर पन्त सावरकर था. इनके दो भाई गणेश (बाबाराव) और नारायण दामोदर सावरकर और एक बहन नैनाबाई थीं.

Updated on: 20 Jan 2021, 03:38 PM

नई दिल्ली:

वीर सावरकर को लेकर बीजेपी (BJP) और कांग्रेस (Congress) एक बार फिर आमने-सामने आ गए हैं. इस बार उनके आने की वजह है. उत्तर प्रदेश विधान परिषद में नवसृजित चित्र वीथिका में सावरकर का चित्र. दरअसल, उत्तर प्रदेश विधान परिषद का सुंदरीकरण कराने के साथ वहां एक फोटो गैलरी भी लगाई गगई है. इसमें तमाम स्वतंत्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों के चित्र लगाए गए हैं. कई महापुरूषों के साथ ही इसमें वीर सावरकर की तस्वीर भी शामिल है. जिस पर कांग्रेस बिफर पड़ी है. वह सावरकर को देशद्रोही बताया रही है. चलिए आपको बताते हैं कौन थे वीर सावरकर जिनका नाम आते ही कांग्रेस बिफर जाती है.

वीर सावरकर पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar ) भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे. उन्हें स्वातंत्र्यवीर , वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित किया जाता है. हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा (हिन्दुत्व) को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय सावरकर को जाता है. वह एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार भी थे. उन्होंने परिवर्तित हिंदुओं के हिंदू धर्म को वापस लौटाने के प्रयास किये एवं इसके लिए आन्दोलन चलाये. उन्होंने भारत की एक सामूहिक "हिंदू" पहचान बनाने के लिए हिंदुत्व का शब्द गढ़ा.  उनके राजनीतिक दर्शन में उपयोगितावाद, तर्कवाद, प्रत्यक्षवाद (positivism), मानवतावाद, सार्वभौमिकता, व्यावहारिकता और यथार्थवाद के तत्व थे. सावरकर एक कट्टर तर्कबुद्धिवादी व्यक्ति थे जो सभी धर्मों के रूढ़िवादी विश्वासों का विरोध करते थे. सावरकर गाय को पूजनीय नहीं मानते थे, कहते थे सिर्फ एक उपयोगी पशु है. इनका जन्म 28 मई 1883 और मृत्यु 26 फ़रवरी 1966 को हुआ था.


वीर सावरकर की प्रारंभिक जीवन
विनायक सावरकर का जन्म महाराष्ट्र (उस समय, 'बॉम्बे प्रेसिडेन्सी') में नासिक के निकट भागुर गांव में हुआ था. उनकी माता का नाम राधाबाई और पिता का नाम दामोदर पन्त सावरकर था. इनके दो भाई गणेश (बाबाराव) और नारायण दामोदर सावरकर और एक बहन नैनाबाई थीं. जब वे केवल नौ वर्ष के थे तभी हैजे की महामारी में उनकी माता जी का देहान्त हो गया. इसके सात साल बाद सन् 1899 में प्लेग की महामारी में उनके पिता भी स्वर्ग सिधारे. इसके बाद विनायक के बड़े भाई गणेश ने परिवार के पालन-पोषण का कार्य संभाला. दुःख और कठिनाई की इस घड़ी में गणेश के व्यक्तित्व का विनायक पर गहरा प्रभाव पड़ा. विनायक ने शिवाजी हाईस्कूल नासिक से 1901 में मैट्रिक की परीक्षा पास की. बचपन से ही वे पढ़ाकू तो थे. उन दिनों उन्होंने कुछ कविताएं भी लिखी थीं. आर्थिक संकट के बावजूद बाबाराव ने विनायक की उच्च शिक्षा की इच्छा का समर्थन किया. सन् 1901में रामचन्द्र त्रयम्बक चिपलूणकर की पुत्री यमुनाबाई के साथ उनका विवाह हुआ. उनके ससुर ने उनकी विश्वविद्यालय की शिक्षा का भार उठाया. 1902 में मैट्रिक की पढाई पूरी करके उन्होने पुणे के फर्ग्युसन कालेज से बीए किया. इनके पुत्र विश्वास सावरकर और पुत्री प्रभात चिपलूनकर थी.

लन्दन प्रवास
1904 में उन्होंने अभिनव भारत नामक एक क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना की. 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद उन्होने पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई. फर्ग्युसन कॉलेज, पुणे में भी वे राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत ओजस्वी भाषण देते थे. बाल गंगाधर तिलक के अनुमोदन पर 1906 में उन्हें श्यामजी कृष्ण वर्मा छात्रवृत्ति मिली. इंडियन सोशियोलाजिस्ट और तलवार नामक पत्रिकाओं में उनके अनेक लेख प्रकाशित हुए , जो बाद में कलकत्ता के युगान्तर पत्र में भी छपे. सावरकर रूसी क्रान्तिकारियों से ज्यादा प्रभावित थे.10 मई, 1907 को इन्होंने इंडिया हाउस, लन्दन में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की स्वर्ण जयन्ती मनाई. इस अवसर पर विनायक सावरकर ने अपने ओजस्वी भाषण में प्रमाणों सहित 1857 के संग्राम को गदर नहीं अपितु भारत के स्वातन्त्र्य का प्रथम संग्राम सिद्ध किया. 

जून, 1908 में इनकी पुस्तक द इण्डियन वार ऑफ इण्डिपेण्डेंस : 1857 तैयार हो गयी परन्त्तु इसके मुद्रण की समस्या आयी. इसके लिये लन्दन से लेकर पेरिस और जर्मनी तक प्रयास किये गये किन्तु वे सभी प्रयास असफल रहे. बाद में यह पुस्तक किसी प्रकार गुप्त रूप से हॉलैंड से प्रकाशित हुई और इसकी प्रतियाँ फ्रांस पहुँचायी गयीं. इस पुस्तक में सावरकर ने 1857 के सिपाही विद्रोह को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ स्वतन्त्रता की पहली लड़ाई बताया. मई 1909 में इन्होंने लन्दन से बार एट ला (वकालत) की परीक्षा उत्तीर्ण की परन्तु उन्हें वहाँ वकालत करने की अनुमति नहीं मिली.इस पुस्तक को सावरकार जी ने पीक वीक पेपर्स व स्काउट्स पेपर्स के नाम से भारत पहुचाई थी.

इण्डिया हाउस की गतिविधियां
सावरकर ने लंदन के ग्रेज इन्न लॉ कॉलेज में प्रवेश लेने के बाद इंडिया हाउस में रहना शुरू कर दिया था. इंडिया हाउस उस समय राजनितिक गतिविधियों का केंद्र था जिसे श्याम प्रसाद मुखर्जी चला रहे थे. सावरकर ने 'फ्री इण्डिया सोसायटी' का निर्माण किया जिससे वो अपने साथी भारतीय छात्रों को स्वतंत्रता के लिए लड़ने को प्रेरित करते थे. सावरकर ने 1857 की क्रांति पर आधारित पुस्तकें पढ़ी और "द हिस्ट्री ऑफ द वार ऑफ इंडियन इन्डिपेन्डेन्स" (The History of the War of Indian Independence) नामक किताब लिखी. उन्होंने 1857 की क्रांति के बारे में गहन अध्ययन किया कि किस तरह अंग्रेजों को जड़ से उखाड़ा जा सकता है.

लन्दन और मार्सिले में गिरफ्तारी
लन्दन में रहते हुये उनकी मुलाकात लाला हरदयाल से हुई जो उन दिनों इण्डिया हाउस की देखरेख करते थे. 1 जुलाई 1909 को मदनलाल ढींगरा द्वारा विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दिये जाने के बाद उन्होंने लन्दन टाइम्स में एक लेख भी लिखा था. 13 मई 1910 को पैरिस से लन्दन पहुँचने पर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया परन्तु 8 जुलाई 1910 को एसएस मोरिया नामक जहाज से भारत ले जाते हुए सीवर होल के रास्ते ये भाग निकले. २4 दिसम्बर 1910 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी. इसके बाद 31 जनवरी 1911 को इन्हें दोबारा आजीवन कारावास दिया गया. इस प्रकार सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने क्रान्ति कार्यों के लिए दो-दो आजन्म कारावास की सजा दी, जो विश्व के इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी.