logo-image

ED Powers: क्या ईडी बिना किसी वारंट के भी कर सकती है गिरफ्तार! जानें प्रवर्तन निदेशालय की शक्तियां

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट(FERA) को 1947 में लागू किया गया था.

Updated on: 23 Mar 2024, 07:09 PM

नई दिल्ली:

ED Powers: प्रवर्तन निदेशालय का एक्शन पूरे देश में जारी है. ईडी ने पहले झारखंड से जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरने को अरेस्ट किया. उसके बाद अब ईडी का शिकंजा दिल्ली के वर्तमान सीएम अरविंद केजरीवाल पर चला है. आपको बता दें कि केंद्रीय एजेंसी ने ये दोनों एक्शन पिछले 50 दिनों के भीतर लिया है. वहीं, दोनों ही मामले मनी लॉड्रिंग से संबंधित हैं. फिलहाल झारखंड के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन को जेल में डाल दिया गया है. वहीं, कोर्ट ने सीएम केजरीवाल की 28 मार्च की रिमांड मंजूर कर ली है.

गौरतलब है कि ईडी की गिरफ्तारी से ठीक पहले हेमंत सोरेन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. वहीं, जब अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी हुई उस वक्त वो अपने पद पर बने हुए थे. ऐसे में कहा जा सकता है कि अरविंद केजरीवाल पहले मुख्यमंत्री है जिन्हें अरेस्ट किया गया है. एक ओर जहां अरविंद केजरीवाल पर ईडी ने कथित शराब स्कैम का आरोप लगाया है. इसके साथ ही हेमंत सोरेन पर रांची में सेना की जमीन के मामले में घोटाला करने का आरोप है. 

प्रवर्तन निदेशालय का इतिहास

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट(FERA) को 1947 में लागू किया गया था. इसी को ध्यान में रखते हुए प्रवर्तन निदेशालय का गठन 1 मई 1956 को किया गया था. आपको बता दें कि ईडी को पहले इंफोर्समेंट यूनिट के नाम से जाना जाता था. बाद में इसका नाम प्रवर्तन निदेशालय कर दिया गया. हालांकि शुरुआत में इसके पास सीमित पावर थे. लेकिन बाद में इसकी शक्ति को बढ़ाया गया और इसमें फेमा, पीएमएलए, फीईओए जैसे लॉ को जोड़ा गया. 

ED की शक्तियां

आपको बता दें कि साल 2019 में केंद सरकार ने पीएमएलए लॉ में एमेंडमेंट किया. संसोधन के बाद केंद्र ने इसमें आर्टिकल 17(1) और 18 में बदलाव कर दिया. इसके बाद से ही ईडी किसी के घर पर छापेमारी, सर्च ऑपरेशन और अरेस्ट कर सकती है. इसके बाद इसमें एक और बदलाव किए गए और आर्टिकल 45 जोड़ा गया. ये आर्टिकल प्रवर्तन निदेशालय को ये शक्ति प्रदान करता है कि वो बिना किसी वारंट के किसी को भी अरेस्ट कर सकती है. इसके साथ ही ईडी अगर किसी को नोटिस जारी करती है तो उसे जानकारी देने की जरूरत नहीं है कि किस सिलसिले में बुलाया गया है. इसके साथ ही अगर ईडी किसी पर आरोप लगाती है तो आरोपी  को निर्दोष साबित करना होता है. इसके साथ ही ईडी को दिया गया बयान सबूत के तौर कोर्ट स्वीकार करती है. वहीं, बाकी के केस में मजिस्ट्रेट के सामने बयान देने पर ही सबूत माना जाता है.