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Greater Noida से है रावण (Ravan) का कनेक्शन, सच जानकर रह जाएंगे हैरान

पूर्व में जब भी ग्रामीणों ने रावण (Ravan) के पुतले का दहन किया तो अपशकुन हो जाता था.

Updated on: 08 Oct 2019, 02:16 PM

highlights

  • आज पूरा देश विजयदशमी का त्यौहार मना रहा है.
  • पूर्व में जब भी ग्रामीणों ने रावण के पुतले का दहन किया तो अपशकुन हो जाता था. 
  • चर्चित तांत्रिक चंद्रास्वामी ने 1984 में मंदिर की खुदाई कराई थी.

नई दिल्ली:

Mystry of Ravan: आज पूरा देश विजयदशमी (Vijayadashmi) का त्यौहार मना रहा है. आज असत्य पर सत्य की जीत के प्रतीक के तौर पर रावण (Ravan) दहन करते हैं. लेकिन आज हम आपको कुछ अलग ही बात बताने जा रहे हैं. क्या आपको पता है कि ग्रेटर नोएडा (Greater Noida) से रावण का संबंध है. जी हां, आपको जानकर हैरानी होगी कि ग्रेटर नोएडा वेस्ट (Greater Noida) के बिसरख गांव को लंकापति रावण की जन्मस्थली (Birth place of Ravan) माना जाता है और आज भी कभी रावण के पुतले को नहीं जलाया जाता है.

अब एक और बात आपको बताते हैं जिसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे. पूर्व में जब भी ग्रामीणों ने रावण के पुतले का दहन किया तो अपशकुन हो जाता था. इसी वजह से यहां रामलीला (Ramleela) का मंचन नहीं हुआ. पहले विजयादशमी के दिन गांव में मातम का माहौल रहता था. हालांकि समय के साथ अब लोगों की सोच में बदलाव आ चुका है. लोगों को न तो अब रामलीला के मंचन से परहेज हैं और न रावण दहन से. अब यहां पर भी विजयदशमी का त्योहार भी लोग धूमधाम से मनाने लगे हैं.

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आज इस गांव में लोग भगवान राम को अपना आदर्श मानकर उनकी पूजा करते हैं, लेकिन वे रावण को गलत नहीं मानते थे. यही कारण था कि बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक विजयदशमी का त्योहार भी गांव में हर्षोल्लास से नहीं मनाया जाता था.

मान्यता है कि गांव में अष्टभुजाधारी शिवलिंग की स्थापना रावण के पिता ऋषि विश्रवा ने की थी. इस बात का उल्लेख हमारे पुराणों में भी मिलता है. इसी शिवलिंग के पास बैठकर उन्होंने घोर तपस्या की थी. इस तपस्या के फलस्वरूप ही बाद ऋषि विश्रवा को रावण का जन्म हुआ जिसकी बुद्धिमत्ता का कोई सानी नहीं. ऋषि विश्रवा के नाम पर ही इस गांव का नाम बिसरख पड़ा. मंदिर के पुजारी का दावा है कि यहां ऋषि विश्रवा के द्वारा स्थापित शिवलिंग हरिद्वार तक किसी मंदिर में नहीं है.

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करवाई गई थी खुदाई, मिला ये
चर्चित तांत्रिक चंद्रास्वामी ने 1984 में मंदिर की खुदाई कराई थी. बीस फीट तक खुदाई के बाद भी शिवलिंग का छोर नहीं मिला था. खुदाई के दौरान चंद्रास्वामी को 24 मुख का शंख मिला था. हालांकि मंदिर के पास ही चंद्रास्वामी को एक सुरंग मिली थी, जो थोड़ी दूर खंडरों में जाकर समाप्त हो गई. अब भी यह सुरंग मंदिर के पास बनी हुई है. मान्यता है कि जो भी व्यक्ति मंदिर पर पूजा अर्चना करता है, उसकी मनोकामना पूरी हो जाती है. आपको बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी एक बार शिव मंदिर पर आकर पूजा कर चुके हैं.