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जानें कौन हैं अमर जवान कैप्टन विक्रम बत्रा, जिन्हे बाबा रामदेव ने किया नमन

बिक्रम बत्रा की शाहदत को याद करते हुए योग गुरू रामदेव ने ट्वीट कर लिखा कि-

Updated on: 07 Jul 2020, 09:12 AM

नई दिल्ली:

वैसे तो भारत देश के सम्मान में अपनी जान हस्ते-हस्ते निछावर करने वाले देश के वीर सपूतों के बलिदान की कहानियां बहुत हैं. जिन्होंने भारत मां के लिए अपने लहू को बहाने में तनिक भी न सोचा, लेकिन आज यानी 7 जुलाई को हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसे ही देश के हीरो के बारे में जिनकी बहादुरी को आज भी लोग न सिर्फ नमन करते हैं बल्कि इसके लिए उन्हें सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा भी गया है. जी हां हम बात कर रहे हैं अमर वीर जवान कैप्टन विक्रम बत्रा के बारे में. बिक्रम बत्रा की शाहदत को याद करते हुए योग गुरू बाबा रामदेव ने ट्वीट कर लिखा कि-"तिरंगा लहराकर आऊंगा या तिरंगे में लिपटकर आऊंगा,लेकिन आऊंगा जरूर". कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना को परास्त करने वाले अद्भुत वीर और साहसी परमवीर चक्र विजेता, मात्र 24 साल की उम्र में शहादत देने वाले भारत के अमर सपूत विक्रमबत्रा जी के बलिदानदिवस पर नमन, तो आइए अब जानते हैं कैप्‍टन विक्रम बत्रा के शहादत की पूरी कहानी.

कैप्‍टन विक्रम बत्रा का जन्‍म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था. उन्‍होंने अपने सैन्‍य जीवन की शुरुआत 6 दिसंबर 1997 को भारतीय सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स से की थी. घटना उन दिनों की है जब भारतीय सेना और आतंकियों के भेष में आए पाकिस्‍तानी सेना के जवानों के बीच कारगिल का युद्ध जारी था. कमांडो ट्रेनिंग खत्‍म होते ही लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा की तैनाती कारगिल युद्ध क्षेत्र में कर दी गई थी. 1 जून, 1999 को अपनी यूनिट के साथ लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा ने दुश्‍मन सेना के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया था.

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हम्‍प और रॉक नाब चोटियों पर किया कब्‍जा

प्रारंभिक तैनाती के साथ लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा ने हम्प व रॉक नाब की चोटियों पर कब्‍जा जमाकर दुश्‍मन सेना को मार गिराया था. लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा की इस सफलता के ईनाम के तौर पर सेना मुख्‍यालय ने उनकी पदोन्‍नति करके कैप्‍टन बना दिया था. पदोन्‍नति के बाद कैप्‍टन विक्रम बत्रा को श्रीनगर-लेह मार्ग के बेहद करीब स्थिति 5140 प्‍वाइंट को दुश्‍मन सेना से मुक्‍त करवाकर भारतीय ध्‍वज फहराने की जिम्‍मेदारी दी गई. कैप्‍टन विक्रम बत्रा ने अपने अद्भुत युद्ध कौशल और बहादुरी का परिचय देते हुए 20 जून 1999 की सुबह करीब 3:30 बजे इस प्‍वाइंट पर कब्‍जा जमा लिया था.

प्‍वाइंट 5140 पर जीत के बाद 4875 पर मिला तिरंगा फहराने का लक्ष्‍य

5140 प्‍वाइंट पर तिरंगा फहराने के बाद कैप्‍टन विक्रम बत्रा द्वारा अपने वरिष्‍ठ अधिकारियों को भेजे गए संदेश ने उन्‍हें देश में नई पहचान दिलाई थी. यह संदेश था 'ये दिल मांगे मोर'. प्‍वाइंट 5140 पर जीत हासिल करने के बाद कैप्‍टन विक्रम बत्रा को 4875 प्‍वाइंट पर भारतीय ध्‍वज फहराने का लक्ष्‍य दिया गया. कैप्‍टन विक्रम बत्रा लेफ्टिनेंट अनुज नैय्यर और लेफ्टिनेंट नवीन सहित अन्‍य साथियों के साथ अपना अगला लक्ष्‍य हासिल करने के लिए निकल पड़े.

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लेफ्टिनेंट नवीन की जान बचाने के लिए कुर्बान कर दी अपनी जिंदगी

आतंकियों के भेष में मौजूद पाकिस्‍तानी सेना से आमने-सामने की लड़ाई जारी थी. दोनों तरफ से लगातार गोलियों की बौछार जारी थी. इसी दौरान लेफ्टिनेंट नवीन के पैर में गो‍ली लग चुकी थी. दुश्‍मन ने लेफ्टिनेंट नवीन को निशाना बनाते हुए लगातार फायरिंग शुरू कर दी थी. अपने साथी की जान बचाने के लिए कैप्‍टन विक्रम बत्रा दौड़ पड़े. वो लेफ्टिनेंट नवीन को खींच कर ला ही रहे थे तभी दुश्‍मन की एक गोली उनके सीने में आ लगी. उन्‍होंने 'जय माता दी' का उद्घोष किया और वीरगति को प्राप्‍त हो गए.

कैप्‍टन विक्रम बत्रा के अदम्य साहस और पराक्रम के लिए 15 अगस्त 1999 को उन्‍हें वीरता के सर्वोच्‍च सम्‍मान परमवीर चक्र से सम्‍मानित किया गया