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तीन प्वाइंट्स में समझें तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

ट्रिपल तलाक को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए अवैध और असंवैधानिक घोषित कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक कुरान की मूल भावना के खिलाफ है।

Updated on: 23 Aug 2017, 07:39 AM

highlights

  • ट्रिपल तलाक को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 'अवैध' और 'असंवैधानिक' घोषित कर दिया है
  • पीठ में शामिल तीन जजों ने बहुमत के साथ तीन तलाक को 'असंवैधानिक' घोषित कर दिया

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को 'अवैध' और 'असंवैधानिक' घोषित कर दिया है। कोर्ट ने तीन तलाक को कुरान की मूल भावना के खिलाफ बताते हुए इसे 'असंवैधानिक' घोषित कर दिया।

तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को इन तीन अहम प्वाइंट्स से समझा जा सकता है।

1. पांच जजों की संवैधानिक पीठ में शामिल चीफ जस्टिस जे एस खेहर और जस्टिस एस अब्दुल नजीर छह महीनों के लिए ट्रिपल तलाक को प्रतिबंधित किए जाने के साथ इस मामले में केंद्र सरकार को कानून बनाए जाने के निर्देश देने के पक्ष में थे।

लेकिन पीठ में शामिल तीन अन्य जजों, जस्टिस कुरियन जोसेफ, आर एफ नरीमन और यू यू ललित ने बहुमत से तीन तलाक को 'असंवैधानिक' घोषित कर दिया।

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पीठ ने बहुमत के साथ कहा ट्रिपल तलाक कुरान की मूल भावना के खिलाफ है।

2. वहीं पीठ में शामिल दो जज, चीफ जस्टिस जे एस खेहर और जस्टिस नजीर ट्रिपल तलाक को छह महीने तक प्रतिबंधिक किए जाने के पक्ष में थे। उनका मानना था कि छह महीनों के भीतर केंद्र सरकार को इस मामले में कानून लाना चाहिए।

दोनों जजों का मानना था कि अगर केंद्र सरकार छह महीने में कानून लाने में विफल रहती है तो यह व्यवस्था फिर से लागू हो जाएगी।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से पक्ष रखते हुए तत्कालीन अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा था कि अगर कोर्ट इस व्यवस्था को खत्म करता है तो केंद्र सरकार इस मामले में कानून लाने के लिए तैयार है।

3. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला केंद्र सरकार के रुख पर मुहर लगाता है, जो ट्रिपल तलाक को मुस्लिम महिलाओं के बुनियादी अधिकारों का हनन बताती रही है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के साथ ही भारत उन देशों की कतार में शामिल हो गया है, जहां तीन तलाक प्रतिबंधित है।

पाकिस्तान समेत अन्य इस्लामी देशों में तीन तलाक पर बैन है। भारत में दुनिया की दूसरी बड़ी मुस्लिम आबादी रहती है।

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के इस फैसले ने यह साफ कर दिया है कि पर्सनल लॉ, कानून के ऊपर नहीं है और इसे अनुच्छेद 13 के तहत लाया जा सकता है जो अप्रासंगिक और बुनियादी अधिकारों के खिलाफ जाने वाले पर्सनल लॉ के मामलों में सुप्रीम कोर्ट को समीक्षा का अधिकार देता है।

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