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जानिए कैसे मोदी सरकार ने ट्रिपल तलाक का मुद्दा रखा गरम, सियासत से अदालत तक का सफर

2016 के मार्च महीने में उत्तराखंड की महिला शायरा बानो ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर तीन तलाक, बहु-विवाह और निकाह हलाला को गैर-कानूनी घोषित किए जाने की मांग की, जो पर्सनल लॉ के तहत आती हैं।

Updated on: 22 Aug 2017, 01:21 PM

नई दिल्ली:

2016 के मार्च महीने में उत्तराखंड की महिला शायरा बानो ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर तीन तलाक, बहु-विवाह और निकाह हलाला को गैर-कानूनी घोषित किए जाने की मांग की, जो पर्सनल लॉ के तहत आती हैं।

तीन तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचने वाली शायरा बानो पहली मुस्लिम महिला नहीं थी लेकिन जिस समय यह याचिका दायर की गई, वह अहम था।

केंद्र में स्पष्ट बहुमत के साथ नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में प्रधानमंत्री की सरकार बन चुकी थी और पार्टी बिहार में महागठबंधन के हाथों मात खाने के बाद उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए कमर कस रही थी। पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर के चुनाव बेशक बीजेपी के लिए अहम थे, लेकिन उत्तर प्रदेश से ज्यादा नहीं।

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2014 के लोकसभा चुनाव में 80 में से 73 सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए उत्तर प्रदेश में इतिहास बनाने का मौका था और वह इसे हाथ से नहीं देना चाहती थी। पार्टी ने प्रदेश चुनाव के लिए नरेंद्र मोदी को चेहरा बनाया और मोदी ने तीन तलाक के साथ अन्य मुद्दों को उठाते हुए चुनाव की दिशा तय कर दी।

24 अक्टूबर 2016 को उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक पिछड़े इलाके बुंदेलखंड में 'महापरिवर्तन रैली' की शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी ने समाजवादी पार्टी (एसपी) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के विकास विरोधी एजेंडे के साथ की, लेकिन थोड़ी ही देर बाद वह मुद्दे पर लौट आए।

बुंदेलखंड की यह रैली इस लिहाज से भी अहम रही कि इसमें मोदी ने तीन तलाक का मुद्दा उठाते हुए पार्टी के चुनाव प्रचार की दिशा तय कर दी।

मोदी ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की बात करते हुए ट्रिपल तलाक के मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं किए जाने की अपील की।

उन्होंने हिंदू धर्म में कन्या भ्रूण हत्या के मुद्दे को सामने रखते हुए कहा, 'गर्भ में अगर कोई बेटी को मार देगा तो उसे जेल की सलाखों के पीछे जाना होगा। वैसे ही मेरी मुसलमान बहन, उसका क्या गुनाह, कोई उसे फोन पर तीन तलाक बोल दे और उसकी जिंदगी तबाह हो जाए।'

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मोदी ने मुस्लिम महिलाओं के समानता के अधिकार का जिक्र करते हुए कहा कि कुछ मुस्लिम बहनों ने अदालत में अपने हकों की लड़ाई लड़ी, जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हमारी राय मांगी। 'हमने कहा कि माताओं और बहनों के साथ संप्रदाय के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए।'

इस दौरान उन्होंने नाम लिए बिना विपक्षी दलों पर निशाना साधा। मोदी ने कहा कि कुछ दल राजनीति के लिए मुस्लिम औतों के साथ अन्याय करने पर तुले हुए हैं। साफ तौर पर मोदी का निशाना कांग्रेस की तरफ था, जिस पर वह तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप लगाते रहे हैं।

मोदी के इस भाषण से करीब 6 महीने पहले शायरा बानो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुकी थीं और सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने 11 से 18 मई के दौरान इस मामले की सुनवाई करते हुए अपने फैसले को सुरक्षित रख लिया था।

लेकिन यह महज संयोग नहीं था, जब ट्रिपल तलाक के मामले में कानूनी दखल दिए जाने की विरोध कर रही ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB)की तरफ से यूपीए में कानून मंत्री रहे कपिल सिब्बल ने इसका जोरदार बचाव किया।

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सिब्बल ने ट्रिपल तलाक को आस्था का मामला बताते हुए इसकी तुलना अयोध्या में राम के जन्म से कर डाली। सिब्बल ने कहा, 'केंद्र सरकार आखिर क्यों मुसलमानों की 1,400 साल पुरानी आस्था पर आधारित ट्रिपल तलाक की संवैधानिकता पर संदेह कर रही है। अगर राम का अयोध्या में जन्म होना, आस्था का विषय हो सकता है तो तीन तलाक का मुद्दा क्यों नहीं।'

सिब्बल ने कहा कि समाज में बहुत कुछ प्रथा की आड़ में किया जा रहा है। अदालत यहां यह तय करने के लिए नहीं बैठी है कि दुनिया में क्या पाप है, बल्कि हम कानून के शासन की बात कर रहे हैं।

सिब्बल ने हालांकि एक वकील की हैसियत से इस मामले में अपने क्लाइंट का पक्ष रखा था लेकिन कांग्रेस को इस बेहद संवेदनशील मसले पर सिब्बल की दलील पसंद नहीं आई।

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विपक्ष पहले की ही तरह कुछ निश्चित कारणों से इस मुद्दे को छूना नहीं चाहती थी। लेकिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे को चुनावी एजेंडा बनाया, तब मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के सीताराम येचुरी ने कहा, 'लोग यूपी चुनाव के बाद प्रधानमंत्री मोदी को ट्रिपल तलाक दे देंगे।'

हालांकि ऐसा नहीं हुआ। बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में ऐतिहासिक जीत के साथ अन्य चार राज्यों में भी सरकार बनाई। जबकि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में नोटबंदी भी एक बड़ा मुद्दा था।

शायरा बानो ने सुप्रीम कोर्ट में ट्रिपल तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला के मुद्दे को चुनौती दी थी लेकिन कोर्ट ने समय की कमी के कारण केवल ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर सुनवाई की।

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कोर्ट ने हालांकि यह जरूर कहा कि भविष्य में वह बहुविवाह और हलाला के मुद्दे पर सुनवाई करेगी। वहीं केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अगर वह ट्रिपल तलाक के सभी तरीकों को निरस्तर कर देती है तो मुस्लिम समाज में शादी और तलाक के लिए वह कानून बनाएगी।

इससे पहले भी अदालतें पर्सनल लॉ को लेकर सवाल उठाती रही है। 1951 में बॉम्बे हाई हाई कोर्ट ने नारसू अप्पा माली बनाम बॉम्बे मामले में कहा था कि पर्सनल लॉ संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत कानून नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के इस फैसले ने यह साफ कर दिया है कि पर्सनल लॉ, कानून के ऊपर नहीं है और इसे अनुच्छेद 13 के तहत लाया जा सकता है जो अप्रासंगिक और बुनियादी अधिकारों के खिलाफ जाने वाले सुप्रीम कोर्ट को समीक्षा का अधिकार देता है।

ऐसे में ट्रिपल तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने न केवल इन दोनों मुद्दों पर अदालती हस्तक्षेप की संभावनाओं को पुख्ता किया है बल्कि राजनीतिक मायनों में इसने यूनिफॉर्म सिविल कोड की दिशा में आगे बढ़ने की जमीन तैयार कर दी है।⁠⁠⁠⁠

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