'नेता या तो भगवान से डरते थे या फिर पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन (TN Seshan) से'

90 के दशक में जब चुनावों के दौरान नेता गलत तरीकों से चुनाव जीत जाते थे उस समय टीएन शेषन ने चुनावों को निष्पक्षता पूर्वक करवाने के लिए सख्ती से काम किया.

90 के दशक में जब चुनावों के दौरान नेता गलत तरीकों से चुनाव जीत जाते थे उस समय टीएन शेषन ने चुनावों को निष्पक्षता पूर्वक करवाने के लिए सख्ती से काम किया.

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Ravindra Singh
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'नेता या तो भगवान से डरते थे या फिर पूर्व चुनाव आयुक्त टीएन शेषन (TN Seshan) से'

टीएन शेषन( Photo Credit : फाइल)

चुनाव आयोग की ताकत बताने वाला टीएन शेषन नहीं रहे. भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन के बारे में कहा जाता था कि नेता या तो भगवान से डरते हैं या फिर टीएन शेषन से. यह कहावत उनके लिए यूं ही नहीं कही जाती थी क्योंकि ये ऐसे मुख्य चुनाव आयुक्त साबित हुए जिन्होंने पीवी नरसिम्हा राव से लेकर लालू यादव तक को पानी पिलाया था. 1992 में बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान उन्होंने चार बार चुनाव की तारीखें बदलीं जो अपने आप में एक इतिहास है. यही नहीं उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में चुनाव आयोग ने ऐसी सख्ती की करीब 50 हजार अवांछनीय तत्वों को जेल में डलवा दिया.

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टीएन शेषन का पूरा नाम तिरुनेलै नारायण अय्यर शेषन है. उन्हें भारत के सबसे कड़े चुनाव आयुक्त के रूप में जाना जाता है. 90 के दशक में जब चुनावों के दौरान नेता गलत तरीकों से चुनाव जीत जाते थे उस समय टीएन शेषन ने चुनावों को निष्पक्षता पूर्वक करवाने के लिए सख्ती से काम किया. शेषन ने देश के 10वें चुनाव आयुक्त के रूप में कार्यभार संभाला था. उनके कार्यकाल में चुनाव आयोग काफी ज्यादा शक्तिशाली हो गया था. टीएन शेषन के कार्यकाल में आचार संहिता का सख्ती से पालन होना शुरू हुआ. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने भारतीय नेताओं को चुनाव आयोग की ताकत और उसकी भूमिका से अवगत करवाया. टीएन शेषन ने ही चुनाव में राज्य मशीनरी का दुरुपयोग रोकने के लिए केंद्रीय बलों की तैनाती को मजबूत करवाया उनके इस कदम के बाद स्थानीय दबंग नेताओं की दबंगई कम हुई और निष्पक्ष चुनाव हुए.

टीएन शेषन के कार्यकाल से पहले तक चुनावों के दौरान उम्मीदवार जमकर पैसा खर्च करते थे. पार्टी और प्रत्याशी इन पैसों का हिसाब भी नहीं देते थे, शेषन ने इन सब पर रोक लगाने के लिए आचार संहिता को पहले से ज्यादा सख्त बनाया. उनके इस कदम से कई नेता जिनके पास ज्यादा पैसे नहीं होते थे उन्हें चुनावों में काफी राहत मिली थी वहीं कई नेता टीएन शेषन के नाम से भी भय खाते थे, जिनमें से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव भी एक थे. आपको बता दें कि मौजूदा चुनावों में राजनीतिक दल और नेता अगर आचार संहिता के उल्लंघन की हिमाकत नहीं करते तो यह टीएन शेषन की ही देन है. चुनावों के दौरान शराब बांटने की प्रथा पर टीएन शेषन ने ही रोक लगाई थी. चुनाव के दौरान धार्मिक और जातीय हिंसा पर भी रोक लगी थी.

टीएन शेषन ने लड़ा था राष्ट्रपति पद का चुनाव
टीएन शेषन तमिलनाडु कार्डर के 1985 बैच के आईएएस अधिकारी थे. चुनाव आयुक्त की जिम्मेदारी निभाने से पहले वह सिविल सेवा में थे. वह स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे कम वक्त तक सेवा देने वाले कैबिनेट सचिव बने थे 1989 में वह सिर्फ आठ महीने के लिए कैबिनेट सचिव बने. वह योजना आयोग के सदस्य भी रहे. उनके आलोचक उन्हें सनकी कहते थे, लेकिन भ्रष्टाचार मिटाने के लिए वह किसी के भी खिलाफ जाने का साहस रखते थे. देश के हर वाजिब वोटर के लिए मतदाता पहचान पत्र उन्हीं की पहल का नतीजा था. पद से मुक्त होने के बाद उन्होंने देशभक्त ट्रस्ट बनाया. वर्ष 1997 में उन्होंने राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा, लेकिन के आर नारायणन से हार गए। उसके दो वर्ष बाद कांग्रेस के टिकट पर उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन उसमें भी पराजित हुए.

Source : रवींद्र प्रताप सिंह

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