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जम्मू-कश्मीर विधानसभा (फाइल फोटो)
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से जैसी अपेक्षा थी वैसा ही उन्होंने दमखम दिखाया है. शाह के एजेंडे में जम्मू-कश्मीर में लंबित चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन दोबारा करने समेत कई अहम मसले शामिल हैं. कलह से प्रभावित प्रदेश में इस समय राष्ट्रपति शासन है. शाह पहले ही राज्यपाल सत्यपाल मलिक के साथ बंद कमरे में बैठक कर चुके हैं. वह खुफिया ब्यूरो के निदेशक राजीव जैन और गृह सचिव राजीव गौबा से भी मिले. इस बीच माना जाता है कि गृह मंत्रालय में जम्मू-कश्मीर संभाग को बड़े पैमाने पर नया रूप दिया जा सकता है.
प्रदेश में 18 दिसंबर 2018 से राष्ट्रपति शासन लागू है. संभावना है कि तीन जुलाई के बाद राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाई जा सकती है. सुरक्षा बल इलाके से आतंकियों का सफाया करने में जुटा है और इस साल अब तक 100 आतंकियों को ढेर किया जा चुका है. आगामी योजनाओं में निर्वाचन क्षेत्रों का नए सिरे से परिसीमन और परिसीमन आयोग की नियुक्ति शामिल है. परिसीमन के तहत विधानसभा क्षेत्रों का दोबारा स्वरूप और आकार तय किया जा सकता है. साथ ही, अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीटें तय की जा सकती हैं.
इसका मुख्य मकसद जम्मू-कश्मीर प्रांत में काफी समय से व्याप्त क्षेत्रीय असमानता को दूर करना है. साथ ही, प्रदेश विधानसभा में सभी आरक्षित वर्गो को प्रतिनिधित्व प्रदान करना है. एक और वर्ग का मानना है कि कश्मीर घाटी में कोई अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति नहीं है, जबकि गुर्जर, बकरवाल, गड्डी और सिप्पी को 1991 में अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया. प्रदेश की आबादी में इनका 11 फीसदी योगदान है, लेकिन कोई राजनीतिक आरक्षण नहीं है.
सोचने वाली बात यह है कि जम्मू-कश्मीर के महाराजा के 1939 के संविधान पर जम्मू-कश्मीर का संविधान 1957 में लागू हुआ जो अभी तक लागू है. भारत में शामिल होने के बाद प्रदेश संविधान सभा का गठन 1939 के संविधान के तहत हुआ, लेकिन शेख अब्दुल्ला के प्रशासन ने मनमाने ढंग से जम्मू के लिए 30 सीटें और कश्मीर क्षेत्र के लिए 43 सीटें और लद्दाख के लिए दो सीटें बनाईं. उसके बाद से यह क्षेत्रीय असमानता की मोर्चाबंदी हुई और कश्मीर में 46, जम्मू में 37 और लद्दाख में चार सीटें हो गईं.
मौजूदा समय में जम्मू क्षेत्र से ज्यादा विधायक कश्मीर क्षेत्र से चुनकर आते हैं. जम्मू क्षेत्र कश्मीर से बड़ा है और इसे देखते हुए इस क्षेत्र में ज्यादा सीटें होनी चाहिए लेकिन पिछले समय में हुए परिसीमन में यहां की जनसंख्या एवं क्षेत्र को नजरंदाज किया गया है, जिसकी वजह से जम्मू क्षेत्र की न्यायसंगत नुमाइंदगी विधानसभा में नहीं हो पाई है. जम्मू क्षेत्र के लोग पिछले काफी समय से इस असमानता को दूर करने की मांग करते आए हैं. मौजूदा समय जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू है ऐसे में नए सिरे से परिसीमन के लिए जम्मू-कश्मीर विधानसभा की अनुमति की जरूरत नहीं होगी. राज्यपाल की अनुशंसा पर राज्य में नए सिरे से परिसीमन का काम शुरू हो सकता है. 2002 में तत्कालीन फारूक अब्दुल्ला सरकार ने राज्य में परिसीमन के काम पर रोक लगा दी थी.
जानिए क्या है परिसीमन आयोग
भारत के उच्चतम न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में 12 जुलाई 2002 को परिसीमन आयोग का गठन किया गया. यह आयोग साल 2001 की जनगणना के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन के लिए बनाया गया. दिसंबर 2007 में इस आयोग ने नये परिसीमन की संस्तिुति भारत सरकार को सौंप दी, लेकिन सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया. इस पर उच्चतम न्यायलय ने, एक दाखिल की गई रिट याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया. जिसके फलस्वरूप कैबिनेट की राजनीतिक समिति ने 4 जनवरी 2008 को इस आयोग की संस्तुतियों को लागू करने का निश्चय किया और 19 फरवरी 2008 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने इस परिसीमन आयोग को लागू करने की स्वीकृति प्रदान की.
2026 तक बना रहेगा नया परिसीमन
मौजूदा आयोग ने चुनाव क्षेत्रों का जो निर्धारण किया है वह 2026 में प्रस्तावित जनगणना तक यथावत रहेगा. परिसीमन आयोग का मुख्य कार्य नई जनगणना के आधार पर लोकसभा व विधानसभा क्षेत्रों की सीमा का निर्धारण करना है. परिसीमन किसी भी राज्य के प्रतिनिधित्व का निर्धारित स्वरूप नहीं बदलता, पर अनूसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित सीटों की संख्या में नई जनगणना के आधार पर बदलाव किए जाते हैं. परिसीमन आयोग एक सशक्त संस्था है जिसके आदेशों को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है. परिसीमन आयोग की सिफारिशें लोकसभा और विधानसभाओं के समक्ष पेश की जाती हैं लेकिन उनमें किसी तरह के संशोधन की अनुमति नहीं होती है. परिसीमन पर उसकी सिफारिशें राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद लागू हो जाती हैं. नए परिसीमन को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने 19 फरवरी 2008 को मंजूरी दी थी.
घाटी में किसी भी सीट पर नहीं है आरक्षण
मीडिया में आईं खबरों के मुताबिक केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर में एससी-एसटी समुदाय के लिए सीटों की आरक्षण व्यवस्था को लेकर परिसीमन पर जोर दे रही है ताकी घाटी में एससी-एसटी समुदाय के लिए सीटों की नई व्यवस्था लागू की जा सके. घाटी की किसी भी सीट पर आरक्षण नहीं है, लेकिन यहां 11 फीसदी गुर्जर बकरवाल और गद्दी जनजाति समुदाय के लोगों की आबादी है. जम्मू संभाग में 7 सीटें एससी के लिए रिजर्व हैं, इन सीटों का भी कभी रोटेशन नहीं हुआ है. ऐसे में नए सिरे से परिसीमन से जम्मू कश्मीर के सामाजिक समीकरणों पर भी प्रभाव पड़ने की संभावना है.
HIGHLIGHTS
- जम्मू-कश्मीर में केंद्र सरकार का नया दांव
- नए परिसीमन की तैयारी में जम्मू-कश्मीर
- परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर को मिल सकता है हिन्दू सीएम
Source : Ravindra Pratap Singh