अमरीका में अपने भाषण से छाई सुनंदा वशिष्ठ का कश्मीर से है गहरा रिश्ता, जानें उनके बारे में सबकुछ
पत्रकार सुनंदा वशिष्ठ वैसे तो किसी पहचान की मोहताज नहीं है, लेकिन अमेरिकी कांग्रेस में कश्मीर मुद्दे पर चल रही सुनवाई के दौरान उन्होंने जिस तरह का भाषण दिया उनकी ख्याति और बढ़ गई है.
नई दिल्ली:
पत्रकार सुनंदा वशिष्ठ (sunanda vashisht) वैसे तो किसी पहचान की मोहताज नहीं है, लेकिन अमेरिकी कांग्रेस (america congress) में कश्मीर मुद्दे पर चल रही सुनवाई के दौरान उन्होंने जिस तरह का भाषण दिया उनकी ख्याति और बढ़ गई है. कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा ढाए गए जुल्म की कहानी को सुनकर लोग सन्न रह गए. जिस तरह से उन्होंने कश्मीर के दर्द को बयां किया वैसा कोई वहां का ही इंसान ही कर सकता है, जो उस दर्द से गुजरा हो.
सुनंदा वशिष्ठ कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवाद को झेल चुकी हैं. नई दिल्ली के साथ-साथ ह्यूस्टन में रहने वाली सुनंदा वशिष्ठ कभी कश्मीर में रहती थीं. आज भी उन्हें कश्मीर से दूर रहने का गम बहुत है. स्तंभकार सुनंदा वशिष्ठ के माता-पिता कश्मीरी हिंदू हैं. कश्मीर स्थित उनके घर पर आज भी किसी और का अवैध कब्जा है.
इसे भी पढ़ें:मल्लिकार्जुन खड़गे बोले- कांग्रेस अकेले फैसला नहीं ले सकती, शरद पवार से मिलने के बाद ही लिया जाएगा निर्णय
वॉशिंगटन में टॉम लैंटोस एचआर कमीशन द्वारा आयोजित मानवाधिकार पर सुनवाई के दौरान स्तंभकार सुनंदा वशिष्ठ ने कहा, 'मेरे पिता एक कश्मीर हैं, मेरी मां कश्मीरी हिंदू हैं और मैं भी एक कश्मीरी हूं, लेकिन उनका घर और उनकी जिंदगी आतंकवाद के कारण बर्बाद हो गई.'
दुनिया आज आईएस का खौफ देख रही है, लेकिन हमने 30 साल पहले आईएस के जैसा खौफ और क्रूरता देखी है. तब दुनिया ने चुप्पी साधी हुई थी. मेरे परिवार और वहां रहने वाले हर शख्स ने अपनी आजीविका खो दी, अपना घर खो दिया. उन्हें बेमौत मारा गया. लेकिन तब किसी ने कुछ नहीं किया.
और पढ़ें:केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने खोया आपा, प्रदर्शनकारियों पर भड़के, कही ये बड़ी बात
सुनंदा वशिष्ठ की आवाज में वो दर्द महसूस किया जा सकता है. 30 साल बाद भी वो कश्मीर अपने घर नहीं जा सकती. उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस में उस बात का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि आज 30 साल बाद भी कश्मीर के मेरे घर में मेरा स्वागत नहीं किया जाता. मुझे घाटी में मेरे धर्म का पालन करने की इजाजत नहीं. कश्मीर में मेरे घर पर किसी और ने अवैध कब्जा कर लिया है.
सुनंदा वशिष्ठ बताती है कि आतंकवादी इस तरह से जुल्म ढाहते थे कि एक बार मेरे दादाजी उनकी क्रूरता से मुझे बचाने के लिए मारने को भी तैयार हो गए थे. वो मुझे मारना चाहते थे, ताकि मैं आतंकवादियों के हाथ ना आ सकूं.
सुनंदा का मानना है कि आतंकवाद मानवाधिकार का सबसे बड़ा दुश्मन है. आजादी और जीने के अधिकार की बात करने वालों को उस कट्टरपंथ से डरने की जरूरत है, जिससे आतंकवाद को बढ़ावा मिलता है.
और पढ़ें:आयकर ट्रिब्यूनल ने गांधी परिवार को दिया झटका, यंग इंडिया को चैरिटेबल ट्रस्ट बनाने की अर्जी खारिज
सुनंदा वशिष्ठ एक बेहतरीन स्तंभकार हैं. जम्मू-कश्मीर में जब पीडीपी और बीजेपी की सरकार बनी थी तब भी उन्होंने सवाल उठाया था. सुनंदा ने इसे अप्राकृतिक गठबंधन बताया था. उन्होंने तब कहा था कि दोनों पार्टियों की जबतक गठबंधन रहेगा, संघर्ष और अस्थिरता मौजूद रहेगी.
वीडियो
IPL 2024
मनोरंजन
धर्म-कर्म
-
Chanakya Niti: चाणक्य नीति क्या है, ग्रंथ में लिखी ये बातें गांठ बांध लें, कभी नहीं होंगे परेशान
-
Budhwar Ganesh Puja: नौकरी में आ रही है परेशानी, तो बुधवार के दिन इस तरह करें गणेश जी की पूजा
-
Sapne Mein Golgappe Khana: क्या आप सपने में खा रहे थे गोलगप्पे, इसका मतलब जानकर हो जाएंगे हैरान
-
Budhwar Ke Upay: बुधवार के दिन जरूर करें लाल किताब के ये टोटके, हर बाधा होगी दूर