किसान मुक्ति मार्च : क्या खुल पाएंगे संसद के दरवाजे, जानिए दिल्ली पहुंचे हजारों किसानों की क्या है मांग

दिसंबर 2016 में जारी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार 2015 में किसान आत्महत्या की दर 42 फीसदी बढ़ गई थी.

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saketanand gyan
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किसान मुक्ति मार्च : क्या खुल पाएंगे संसद के दरवाजे, जानिए दिल्ली पहुंचे हजारों किसानों की क्या है मांग

इस साल मार्च में किसानों ने महाराष्ट्र में निकाला था मार्च (फाइल फोटो : IANS)

देशभर के हजारों किसान 29 और 30 नवंबर को केंद्र सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक बार फिर इकट्ठा उठे हुए हैं. किसानों के प्रदर्शन का उद्देश्य सरकार पर फसलों की ऊंची कीमत और कृषि कर्ज माफी के लिए दवाब बनाना है. इस प्रदर्शन में देश भर के 200 किसान संगठन अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSCC) के बैनर तले जुटे हैं. किसान संगठनों और सिविल सोसायटी की एक अहम मांग है कि सरकार देश में व्याप्त कृषि संकट से निपटने के लिए संसद का 21 दिनों का एक विशेष सत्र बुलाए और कृषि व उससे जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की जाए. इससे पहले सितंबर महीने में भी ऑल इंडिया किसान सभा (एआईकेएस) के बैनर तले दिल्ली में किसानों ने अपना विरोध प्रदर्शन किया था.

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हजारों किसानों का समूह 29 नवंबर की सुबह दिल्ली के बिजवासन से 26 किलोमीटर पैदल मार्च करते हुए शाम करीब पांच बजे रामलीला मैदान पहुंचेंगे. गुरुवार शाम को किसानों के लिए रामलीला मैदान में कई कार्यक्रम होंगे. वहीं 30 नवंबर को किसान संसद की ओर मार्च करेंगे. उम्मीद जताई जा रही है कि किसानों के इस मार्च में मध्यम वर्ग का समर्थन मिलने की संभावना है.

कर्ज माफी के अलावा फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप करने, भूमि सुधार, कृषि श्रमिकों की पेंशन योजना में बढ़ोतरी, जल संकट और कृषि जगत से जुड़ी कई चीजों पर चर्चा के लिए सरकार से संसद का एक विशेष सत्र बुलाए जाने की मांग की जा रही है.

अभी हाल ही में एक बार फिर हजारों किसानों ने इन्ही मांगों के लिए ठाणे से मुंबई के लिए कूच किया था. हालांकि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी एक बार भी आश्वासन देकर किसानों को वापस भेज दिया था. वरिष्ठ पत्रकार और कृषि मामलों के जानकार पी साईनाथ किसानों से जुड़ी समस्याओं के लिए लंबे समय से संसद के संयुक्त सत्र की मांग कर रहे हैं.

साईनाथ ने इसके लिए 21 दिनों के विशेष सत्र में विभिन्न समस्याओं के चर्चा को सूचीबद्ध भी किया था. उन्होंने विशेष सत्र के लिए जो सुझाव दिए हैं उनकी लिस्ट यहां है.

3 दिन: स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट पर चर्चा. 12 साल पहले दिसंबर 2004 से लेकर अक्टबूर 2006 के बीच इस आयोग ने कृषि समस्याओं के समाधान के लिए 5 रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी थी जिस पर आज तक चर्चा नहीं हो पाया है. इसमें एमएसपी के अलावा उत्पादकता, मुनाफाकारिता, सूखे जमीन पर खेती, स्थिरता जैसे कई बिंदु थे. जिस पर चर्चा किए जाने चाहिए.

3 दिन: लोगों की गवाही- पी साईनाथ का कहना है कि संसद के सेंट्रल हॉल में इस संकट से पीड़ित लोगों को बोलने दिया जाय ताकि वे देश को बता सकें कि यह संकट किस तरह का है और लाखों लोगों के साथ क्या हो रहा है.

3 दिन: कर्ज संकट- देश में हजारों किसानों के आत्महत्या का मुख्य कारण कर्ज से लदा होना है. उनकी जमीनें खत्म हो गईं. संस्थागत कर्ज पर बनी नीतियों ने सूदखोरों के लिए रास्ता बनाने का काम किया है. इस पर संसद में बहस होनी चाहिए.

3 दिन: देश का बड़ा जल संकट- साईनाथ बताते हैं कि यह सिर्फ सूखे से ज्यादा बड़ा संकट है. हमें पानी पीने के अधिकार को मौलिक मानवाधिकार में शामिल करना होगा. इस क्षेत्र में हो रहे निजीकरण पर रोक लगाने की जरूरत है.

3 दिन: महिला किसानों का अधिकार- कृषि संकट को तब तक नहीं सुलझाया जा सकता है जब तक स्वामित्व और जो खेतों में सबसे ज्यादा काम करते हैं उन्हें इसमें जोड़ा जाय. प्रो स्वामीनाथन ने महिला किसान अधिकार विधेयक, 2011 पेश किया था जो 2013 में लैप्स हो गया था.

3 दिन: भूमिहीन मजदूरों के अधिकार (महिला और पुरुष दोनों)- कई दिशाओं में पलायन के कारण यह संकट सिर्फ ग्रामीण नहीं रह गया है. इसलिए इस पर व्यापक चर्चा की जरूरत है.

3 दिन: कृषि पर चर्चा- अभी से अगले 20 सालों के लिए हम किस तरह की खेती चाहते हैं? कॉरपोरेट के मुनाफे पर आधारित या जिन समुदायों और परिवारों पर आधारित जिनका जीवन इसी पर आधारित है.

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बता दें कि देश में व्याप्त भारी कृषि संकट को देखते हुए वाकई इस तरीके के संसद सत्र की जरूरत है. क्योंकि किसानों और कृषक मजदूरों की संकट आम लोगों के संकट से सीधे तौर पर जुड़ी हुई है. देश के हर राज्य में किसान आंदोलनरत हैं. पिछले 2 सालों में किसानों का आक्रोश बढ़ चुका है. तमिलनाडु किसानों का दिल्ली में विरोध प्रदर्शन हो या फिर मध्य प्रदेश के मंदसौर में किसानों का प्रदर्शन, उनकी समस्याओं के विस्तार को दिखाता है.

दिसंबर 2016 में जारी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार 2015 में किसान आत्महत्या की दर 42 फीसदी बढ़ गई थी. किसानों और खेती से जुड़े कृषक मजदूरों की कुल आत्महत्या साल 2015 में 12,602 थी. जिसमें सबसे ज्यादा आत्महत्या महाराष्ट्र के किसानों (4,291) ने की थी.

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इससे पहले इसी साल मार्च महीने में पूर्ण कर्ज माफी और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करवाने के लिए 30,000 से अधिक किसान नासिक से पैदल मार्च करते हुए मुंबई पहुंचे थे. उस वक्त भी देवेंद्र फडणवीस ने किसानों के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात कर उनकी अधिकतर मांगों को मान लिया था. हालांकि वह लागू नहीं हो सका.

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Source : News Nation Bureau

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