बिहार के विशेष राज्य का दर्जा देने की यहां के राजनीतिक दलों की काफी पुरानी मांग है। वैसे, राजनीतिक दल इसे सुविधानुसार उठाते रहे हैं और समय समय पर इसे ठंडे बस्ते में भी डालते रहे हैं। वैसे, प्रत्येक केंद्रीय आम बजट के पेश होने के पहले और बाद में यह मुद्दा जरूर गर्म होता है।
केंद्र सरकार से बाहर रहे राजनीतिक दल इसी मांग को मुद्दा बनाते हुए बजट की आलोचना करते रहे हैं।
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा संसद में पेश आम बजट के बाद बिहार के कई राजनीतिक दलों ने इस मांग को फिर से ठंडे बस्ते से निकाला है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी एनडीए से अलग होने बाद विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर मुखर दिख रहे। मोदी सरकार द्वारा पेश आम बजट को निराशाजनक बताया है।
उन्होंने कहा कि बिहार को इस बजट से निराशा हाथ लगी है और एक बार फिर विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग की अनदेखी की गयी है। समावेशी विकास का सपना बिहार जैसे राज्यों को आगे बढ़ाये बिना संभव नहीं है।
गौरतलब है कि नीतीश कुमार की पार्टी जब भी केंद्र सरकार में सहयोगी रही, इस मुद्दे को लेकर मुखर नहीं होती।
इधर, बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी कहते हैं कि जब से केंद्र में भाजपा की सरकार बनी है बिहार को ठगने का काम किया जा रहा है।
इस बीच हालांकि भाजपा के नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने साफ लहजे में कहा कि जब लालू प्रसाद और नीतीश कुमार केंद्र में ताकतवर मंत्री थे, तब बिहार को विशेष राज्य का दर्जा क्यों नहीं दिला पाये?
उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार की पहल पर तत्कालीन वित्त मंत्री चिदम्बरम ने विशेष राज्य के मुद्दे पर इंटर मिनिस्ट्रियल ग्रुप बनाया था और रघुराम राजन कमेटी ने भी इस पर विचार किया था। ग्रुप और कमेटी, दोनों ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग स्वीकार नहीं की।
सुशील मोदी ने कहा कि 14 वें और 15 वें वित्त आयोग की रिपोर्ट ने तो विशेष राज्य की अवधारण को ही खारिज कर दिया।
वैसे इसमें कोई शक नहीं की बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर सियासत होती रही है।
औद्योगिकीकरण, सामाजिक एवं भौतिक आधारभूत संरचना के मामले में भी प्रदेश बहुत पिछड़ा है। इसके मद्देनजर पिछले कई सालों से राजनीतिक दल बिहार को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग करते रहे हैं।
यह मांग संपूर्ण बिहार की चाहत उस समय बनी जब मई, 2010 में नीतीश कुमार ने हस्ताक्षर अभियान चलाया था। करीब 1.25 करोड़ बिहारवासियों के हस्ताक्षर हासिल किए गए और इन्हें राष्ट्रपति को सौंपा गया।
इसके बाद 4 नवंबर, 2012 को गांधी मैदान में अधिकार रैली आयोजित कर नीतीश कुमार ने इस मुद्दे को उठाया। विशेष दर्जा को उन्होंने बिहार का अधिकार बता सभी पिछड़े राज्यों को इस श्रेणी में शामिल करने की मांग की थी।
वैसे, एनडीए से बाहर होने के बाद नीतीश कुमार एक बार फिर से इस मुद्दे को हवा देने में जुटे हैं।
वे हालांकि यह भी कहते रहे हैं कि इस मांग को उन्होंने कभी छोड़ा नहीं है और वह इसकी निरंतर मांग करते रहे हैं, इसके लिए अभियान तक चलाया है और सरकार के स्तर से भी मांग की गई है।
उन्होंने कहा कि बिहार अपने बल पर विकास कर रहा है। बिहार को अगर विशेष राज्य का दर्जा मिल गया होता तो और तेजी से विकास करता।
इन दिनों नीतीश कुमार अपनी समाधान यात्रा पर हैं। उन्होंने गुरुवार को कहा कि हमलोग काफी पहले से विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रहे हैं लेकिन वे लोग सुन ही नहीं रहे हैं। विशेष राज्य का दर्जा मिलने से बिहार जैसे दूसरे अन्य पिछड़े राज्य भी आगे आगे बढ़ जाते। पिछड़े राज्यों का विकास होने से देश का ही विकास होता।
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Source : IANS