प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में पढ़ा इस शायर का शेर, यहां पढ़ें पूरी गजल
दिल्ली के शाहीनबाग में CAA के विरोध में आंदोलन को लेकर प्रधानमंत्री ने तीखी टिप्पणी की. मोदी ने इस दौरान एक शेर भी पढ़ा और कहा कि उस शायर ने अपनी बात सही तरीके से रखी. साथ ही उन्होंने कहा कि शायर ने अपनी बात उस वक्त कही थी.
New Delhi:
प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी आज लोकसभा में अपना भाषण दे रहे हैं. इस दौरान प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर तीखे हमले किए. मोदी ने इस दौरान अपने अब तक किए गए कामों के बारे में भी बताया. लेकिन दिल्ली के शाहीनबाग में CAA के विरोध में आंदोलन को लेकर प्रधानमंत्री ने तीखी टिप्पणी की. मोदी ने इस दौरान एक शेर भी पढ़ा और कहा कि उस शायर ने अपनी बात सही तरीके से रखी. साथ ही उन्होंने कहा कि शायर ने अपनी बात उस वक्त कही थी, लेकिन अब जाकर वह बात सही साबित हो रही है. लेकिन प्रधानमंत्री ने दो ही लाइनें कहीं और यह भी नहीं बताया कि यह शेर आखिर था किस शायर का. लेकिन हम आपको उस शायर के बारे में बारे में तो बताएंगे ही, साथ ही यह भी बताएंगे कि पूरी गजल आखिर है क्या.
प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में नवाब मिर्जा खां दाग का शेर पढ़ा था. उर्दू अदब के लोग उन्हें दाग देहलवी के नाम से भी जानते हैं. दाग देहलवी दिल्ली के ही रहने वाले थे और कई सालों तक दिल्ली के चांदनी चौक में रहे. दाग देहलवी 25 मई 1831 को दाग इस दुनिया में आए. वे महज चार पांच साल के ही रहे होंगे, तभी उनके पिता ने इस दुनिया को छोड़कर चले गए. इसके बाद उनकी मां ने बहादुर शाह जफर के बेटे मिर्जा फखरू से दूसरी शादी कर ली. उसके बाद दाग दिल्ली में लाल किले में रहने लगे. इसके बाद दाग ने हर तरह की तालीम ली. इसी दौरान वे शायरी करने लगे और बाद में अब जब वे नहीं हैं तो उनके शेर प्रधानमंत्री पढ़ रहे हैं और पूरी दुनिया उनके शेर के बारे में जान रही है. दाग का ज्यादातर जीवन दिल्ली में ही बीता. इसी वजह से उनकी शायरी में दिल्ली की तहजीब भी साफ तौर पर नजर आती है. इससे पहले कि हम आपको बताएं कि पूरी गजल आखिर है क्या, यह जान लीजिए कि प्रधानमंत्री ने जहां शाहीन बाग मामले में छिपे हुए लोगों पर तंज करते हुए यह शेर कहा. लेकिन दाग देहलवी ने यह शेर अपने महबूब के लिए कहा था. जब आप इसे पढ़ेंगे तो समझ जाएंगे कि दाग की मंशा क्या थी और उन्होंने ये शेर क्यों कहा होगा.
ये रही पूरी गजल
उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं
बाएसे तर्के मुलाकात, बताते भी नहीं
खूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं
साफ छिपते भी नहीं, सामने आते भी नहीं
देख के मुझको महफिल में ये इरशाद हुआ
कौन बैठा है इसे लोग उठाते भी नहीं
जीस्त से तंग हो दाग तो जीते क्युं हो
जान प्यारी भी नहीं जान से जाते भी नहीं
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