जब पूरी दुनिया पानी की समस्या से जूझ रही है तो ऐसे में एक व्यक्ति ऐसा भी है जिसने पिछले 50 साल से भी ज्यादा समय से लोगों तक साफ पानी पहुंचाने का बीड़ा उठाया हुआ है. बता दें कि 67 साल के कुंजंबु (Kunjambu) केरल के कासरगोड जिले के एक गांव कुंडमजुझी के ग्रामीणों को 50 साल से अधिक समय से पानी मुहैया करा रहे हैं. कुंजंबु ने उत्तरी केरल और कर्नाटक के क्षेत्रों में पाए जाने वाले सबसे पुराने जल संचयन प्रणालियों में से एक 'सुरंग' (suranga) गुफा कुओं की खुदाई के जरिए इस मुकाम को हासिल किया है.
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14 साल की उम्र में शुरू कर दी सुरंग की खुदाई
कुंजंबु ने 14 साल की उम्र से पानी के लिए सुरंग की खुदाई शुरू कर दी थी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक देश में सुरंग की खुदाई करने वालों में से कुंजंबु एक हैं. ऐसा दावा है कि उन्होंने अभी तक 1 हजार से अधिक गुफाओं वाले कुओं को खोदा है.
सुरंग क्या हैं?
कन्नड़ में 'सुरंग' या मलयालम में 'थुरंगम' पहाड़ियों के पार्श्व पक्षों में खोदी गई एक संकीर्ण गुफा जैसी संरचना है. लगभग 2.5 फीट चौड़ी ये अनोखी गुफा कुएं 300 मीटर तक खोदी जा सकती हैं जब तक कि पानी का झरना नहीं मिलता है. इन गुफा कुओं को स्थायी जल संचयन प्रणाली में से एक माना जाता है. सुरंग में बहने वाले पानी को सुरंग के पास बनाए गए जलाशय में डाल दिया जाता है. एक बार झरनों से पानी स्वतंत्र रूप से बहना शुरू हो जाता है तो बगैर मोटर या पंप के उपयोग के जरिए ताजे पानी की सप्लाई होती रहती है. ऐसा माना जाता है कि इस पद्धति की शुरुआत ईरान में हुई है. हालांकि मौजूदा समय में बोरवेल संस्कृति इन स्थायी जल संचयन प्रणाली के ऊपर हावी हो चुकी है.
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खुदाई के समय होती है काफी समस्या
कुंजंबु का कहना है कि इस काम के लिए बहुत ताकत और दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है. उन्होंने कहा कि वह एक कुदाल और मोमबत्ती के साथ इन गुफाओं में एक बार में पूरी खुदाई करने के उद्देश्य के साथ जाते हैं. उन्होंने कहा कि जब आप 300 मीटर गुफा की खुदाई कर रहे होते हैं तो वहां पर ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है और वे इस दम घोटने वाली स्थिति से बचने के लिए एक माचिस और एक मोमबत्ती भी साथ ले जाते हैं. उन्होंने कहा कि अगर मैं माचिस को जलाने में दिक्कत महसूस कर रहा हूं तो इसका मतलब यह होता है कि वहां पर आक्सीजन का स्तर काफी कम है और ऐसी स्थिति में मुझे वहां से तुरंत बाहर निकलना होगा.
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कुंजंबु कहते हैं कि जब उन्होंने इसकी शुरुआत की थी तब सुरंग हमारी संस्कृति का एक अनिवार्य हिस्सा था. खासकर कृषि उद्देश्यों के लिए पानी की आवश्यकता के कारण यह अभिन्न अंग था, लेकिन समय के साथ बोरवेल पंप आने लग गए और उन्होंने इस संस्कृति के ऊपर अपना आधिपत्य जमा लिया. साथ ही धीरे-धीरे हमारे यह काम कम होता गया.