प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल ही में संपन्न दो दिवसीय केरल दौरे में उन्होंने कई कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। इनमें युवाओं के लिए युवम आउटरीच कार्यक्रम, केरल में पहली वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाना और देश तथा राज्य में पहली वाटर मेट्रो को हरी झंडी दिखाना प्रमुख हैं। साथ ही उन्होंने केरल में भारतीय रेलवे की कई परियोजनाओं की घोषणा की।
इनमें एक बैठक सबसे अलग थी। उन्होंने कोच्चि के एक होटल में राज्य के कई चचरें के प्रमुखों के साथ राजनीतिक बैठक थी। बैठक में सीरियन कैथोलिक चर्च के सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली चर्च प्रमुखों में से एक कार्डिनल जॉर्ज एलनचेरी और सिरो-मलंकारा कैथोलिक चर्च के कार्डिनल सिरिल मार बेसेलियोस क्लेमिस भी शामिल हुए। उनके अलावा चर्च के अन्य संप्रदायों के प्रमुखों ने भी भाग लिया।
यहां ध्यान देने वाली बात है कि कार्डिनल्स के पास पोप के चुनाव के लिए मतदान की शक्ति है और कार्डिनल जॉर्ज एलेनचेरी और मार बेसेलियोस क्लीमिस दोनों ही अपनी-अपनी जगह बहुत शक्तिशाली और प्रभावशाली हैं।
हालांकि बंद कमरे में चर्च प्रमुखों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की क्या बात हुई इसका खुलासा नहीं किया गया है, लेकिन भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन, जो स्वयं बैठक में मौजूद थे, ने मीडिया को बताया कि बैठक बेहद सफल रही।
केरल के चुनावी अखाड़े में भाजपा का भविष्य इस बात से तय होगा कि ईसाई समुदाय के साथ उसका बेहतरीन तालमेल किस तरह वोटों में तब्दील होता है। हालांकि भाजपा के पास जॉर्ज कुरियन जैसे वरिष्ठ नेता हैं, जो युवा मोर्चा (भाजपा की युवा इकाई) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे और वर्तमान में पार्टी के राज्य महासचिव हैं, लेकिन पार्टी चाहती है कि हर क्षेत्र से जुड़े ईसाई भाजपा में शामिल हों।
हाल के दिनों में भाजपा यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयासरत दिखी है कि पार्टी के वोट किसी अन्य पार्टी को न चला जाए (पुराने समय में भाजपा पर आरोप लगते थे कि सीपीआई-एम को हराने के लिए वह अपना वोट कांग्रेस को स्थानांतरित कर देती थी।
भाजपा की इस रणनीति का स्थानीय स्तर के कई पार्टी नेताओं और यहां तक कि आरएसएस के कई कट्टर कार्यकतार्ओं ने विरोध किया, क्योंकि वे केरल में सीपीआई-एम और वामपंथी राजनीति की वापसी देखना चाहते थे। अगर भाजपा-आरएसएस ने कुछ वोट कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ को स्थानांतरित कर दिया तो यूडीएफ आसानी से जीत जाएगा।
हालांकि, 2016 और 2021 के विधानसभा चुनावों में लगातार हार के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ कमजोर स्थिति में है और इससे भाजपा को राज्य में जमीन तैयार करने में मदद मिली है।
एक कमजोर कांग्रेस निश्चित रूप से असंतुष्ट समर्थकों को भाजपा को अपना समर्थन देने के लिए प्रेरित करेगी क्योंकि सीपीआई-एम केरल में कांग्रेस का समर्थन करने वालों में से कई के लिए अछूत है, और यह निश्चित रूप से भाजपा के लिए फायदेमंद होगा।
पिछले चुनाव में ईसाई प्रभाव वाले पतनमथिट्टा लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के उम्मीदवार इसके प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन थे। वह 2,97,396 मतों के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे। विजेता कांग्रेस के एंटो एंटनी को 3,80,927 मत मिले थे जबकि दूसरे स्थान पर वर्तमान मंत्री और सीपीआई-एम नेता वीना जॉर्ज थीं, जिन्हें 3,36,884 वोट मिले थे।
यदि चर्च का साथ मिल जाए तो भाजपा के लिए पठानमथिट्टा में जीत हासिल करना आसान होगा। कोच्चि में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चर्च के प्रमुखों के बीच बैठक में इस तरह का समझौता हो गया लगता है।
थालास्सेरी के आर्कबिशप मार जोसेफ पाम्लानी ने खुलेआम कहा कि यदि रबर कीे कीमत 300 रुपये प्रति किलोग्राम तक बढ़ा दी जाती है तो चर्च यह सुनिश्चित करने की कोशिश करेगा कि भाजपा को केरल से सांसद मिलें क्योंकि अधिकांश किसान रबर की कीमतों पर निर्भर हैं।
पठानमथिट्टा एक विशाल ईसाई आबादी वाला निर्वाचन क्षेत्र है जहां लोग रबर पर निर्भर हैं और भाजपा उम्मीदवार के लिए मुश्किल से 50,000 वोट अधिक होने का मतलब है कि वह सीट जीत सकते हैं।
भाजपा द्वारा के. सुरेंद्रन को फिर से पठानमथिट्टा से मैदान में उतारने की संभावना है। पार्टी ईसाई संप्रदायों से पूरे दिल से समर्थन की उम्मीद कर रही है और अगर समर्थन वोटों में स्थानांतरित हो जाता है, तो केरल में भाजपा जीत सकती है।
केरल में नेश्नल पीपुल्स पार्टी के नाम से एक नई पार्टी का गठन हुआ है जिसके अध्यक्ष राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व सदस्य वी.वी. ऑगस्टीन केरल कांग्रेस के पूर्व विधायक जॉनी नेल्लोर नई पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हैं जबकि एक अन्य पूर्व विधायक, मैथ्यू स्टीफन पार्टी के उपाध्यक्ष हैं।
ऐसी खबरें हैं कि नई पार्टी का गठन विभिन्न चर्च संप्रदायों के समर्थन और आशीर्वाद से हुआ है और इसके माध्यम से भाजपा उन ईसाइयों को जोड़ने की कोशिश कर रही है जो सीधे राजग का समर्थन नहीं कर सकते।
केरल में पैर जमाने के लिए भाजपा के चौतरफा प्रयासों के बीच यह देखना होगा कि ईसाई संप्रदाय में पहुंच बनाने से पार्टी को क्या फायदा होगा। इसकी पहली परीक्षा2024 का लोकसभा चुनाव में होगी।
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Source : IANS