भविष्य के संघर्षों को सुलझाने में मदद कर सकता है ‘करतारपुर मॉडल’: मनमोहन सिंह
उपराष्ट्रपति नायडू ने भी कहा कि सिख गुरु की सीख को यदि दैनिक जीवन में आत्मसात किया जाए तो शांति तथा सतत विकास का एक नया विश्व बन सकता है.
नई दिल्ली:
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुधवार को उम्मीद जतायी कि ‘‘करतारपुर मॉडल’’ भविष्य के संघर्षों को सुलझाने में मदद कर सकता है. सिंह के साथ ही उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने भी सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव के 550वें प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में पंजाब विधानसभा के विशेष सत्र को संबोधित किया. उपराष्ट्रपति नायडू ने भी कहा कि सिख गुरु की सीख को यदि दैनिक जीवन में आत्मसात किया जाए तो शांति तथा सतत विकास का एक नया विश्व बन सकता है. पूर्व प्रधानमंत्री सिंह ने कहा, ‘‘समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करने के लिए शांति एवं सौहार्द एकमात्र रास्ता है. करतारपुर मॉडल को संघर्षों के स्थायी समाधान के लिए भविष्य में भी दोहराया जा सकता है.’’
करतारपुर गलियारा नौ नवम्बर को खुलना निर्धारित है. यह गलियारा पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब को भारत के पंजाब में गुरुदासपुर स्थित डेरा बाबा नानक से जोड़ेगा. पूर्व प्रधानमंत्री ने समतामूलक समाज सुनिश्चित करने के लिए सभी से सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव के परस्पर प्रेम एवं सम्मान के संदेश को आगे बढ़ाने की अपील की. सिंह ने सांप्रदायिक हिंसा को विश्व के सामने सबसे बड़ी चुनौती बताते हुए कहा, ‘‘गुरु नानक देव जी का एक ईश्वर, धार्मिक सहिष्णुता और शांति का शाश्वत संदेश सांप्रदायिक हिंसा को समाप्त करने का मार्ग दिखा सकता है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘पंजाब गुरु नानक देव जी की कर्म भूमि है. गुरु नानक देव की विरासत को हम कैसे बरकरार रख पाएंगे, जब उसके युवा नशे के आदी होंगे, पानी जहरीला हो रहा है और महिलाओं का अनादर हो रहा है. यह उनकी 550वीं जयंती पर सबसे अहम सवाल है.’’
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उपराष्ट्रपति नायडू ने सत्र को संबोधित करते हुए सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव को भारत के सबसे लोकतांत्रिक आध्यात्मिक नेतृत्वकर्ताओं में से एक बताया. नायडू ने कहा कि उनकी दृष्टि समय-काल से परे है और ‘‘यह आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी पांच शताब्दी पहले थी जब यह प्रतिपादित की गयी थी.’’ पंजाबी में अपना संबोधन शुरू करते हुए नायडू ने कहा, ‘‘गुरु नानक जी भारत के दूरदर्शी आध्यात्मिक नेतृत्वकर्ताओं की लंबी शानदार परंपरा से जुड़े हैं, जिन्होंने मानव अस्तित्व को रोशन किया और देश की सांस्कृतिक राजधानी को समृद्ध किया.’’ उन्होंने कहा कि सिखों के पहले गुरु के लिए जाति, पंथ, धर्म और भाषा के आधार पर मतभेद अप्रासंगिक थे. नायडू ने कहा, ‘‘गुरु नानकजी जैसे प्रबुद्ध पथप्रदर्शकों के कालातीत संदेशों से हमारा विश्व दृष्टिकोण लगातार विस्तृत हुआ है. हमें, लोकतांत्रिक नेताओं के रूप में और आम नागरिकों के रूप में इस महान व्यक्तित्व की शिक्षाओं से बहुत कुछ सीखना है.’’ उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘यदि हम इन संदेशों को हमारे दैनिक जीवन में आत्मसात करें और हमारे विचारों एवं कृत्यों को नया रूप दें तो हमें निश्चित तौर पर शांति एवं सतत विकास वाली एक नयी दुनिया मिल सकती है.’’
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उन्होंने कहा कि गुरु नानक देव की जिंदगी से महिलाओं के लिए सम्मान और लैंगिक समानता के बारे में भी महत्वपूर्ण सीख मिलती है. उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘समानता की भावना गुरु नानक देव की इस स्पष्ट स्वीकृति के बाद आयी कि एक हिंदू या मुस्लिम में कोई अंतर नहीं है. उनके लिए कोई भी देश विदेश नहीं था, न ही कोई व्यक्ति बाहरी था.’’ नायडू ने कहा कि यह ध्यान देने योग्य है कि गुरु नानक ने 16वीं शताब्दी में अंतर-धार्मिक वार्ता शुरू की थी. उन्होंने कहा, ‘‘दुनिया को ऐसे आध्यात्मिक नेतृत्वकार्ताओं की जरूरत है जो शांति, स्थिरता और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक अर्थपूर्ण वार्ता में संलग्न हो सकें.’’ नायडू ने कहा कि गुरु नानक देवजी ने व्यक्ति के कड़ी मेहनत से कमाई किये जाने पर जोर दिया था.
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नायडू ने कहा, ‘‘उन्होंने अपने अनुयायियों के बीच जो आदर्श वाक्य रखा, वह था, ‘कीरत करो, नाम जपो और वंड चखो.’ अर्थात ईमानदारी से श्रम करो, प्रभु का स्मरण करो और बांट कर खाओ.’’ पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने गुरु नानक देव के प्रकृति के संरक्षण की जरुरत के संदेश को रेखांकित किया ताकि भविष्य की पीढ़ियां पर्यावरण प्रदूषण से प्रभावित नहीं हों. उन्होंने गुरु के इस विचार को याद किया कि पवन गुरु, पानी पिता और धरती माता है. उन्होंने प्रकृति और मानवता के बीच स्वाभाविक संबंध को रेखांकित किया. सिंह ने सभी से अपील की कि वे गुरु के दर्शन के अनुरूप पंजाब को स्वच्छ, हरित और प्रदूषण मुक्त बनायें. उन्होंने इसके लिए कम पानी इस्तेमाल होने वाली फसलें लगाने, पराली जलाने पर रोक लगाने और केमिकल उर्वरक के इस्तेमाल पर लगाम लगाने की जरूरत पर बल दिया. इससे पहले सत्र में पंजाब और हरियाणा के विधायक एवं सांसद शामिल हुए.
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हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला, पंजाब एवं हरियाणा के राज्यपालों क्रमश: वी पी सिंह बदनौर और सत्यदेव नारायण आर्य भी इस विशेष सत्र में शामिल हुए. 1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा राज्य बनने के बाद ऐसा पहली बार हुआ जब दोनों राज्यों के विधायक इस विशेष सत्र में पंजाब विधानसभा में बैठे. सदन ने स्वयं को ‘‘गुरु नानक देव की विरासत के प्रति समर्पित किया और उनके आदर्शों और मूल्यों को स्वीकार किया.’’ प्रस्ताव में कहा गया, ‘‘धर्म, जाति, राष्ट्र और समुदाय के बंधनों के पार जाते हुए, श्री गुरु नानक देव जी ने पूरी मानवता को एकता, समानता, सच्चाई और प्रेम का अपना सम्यक संदेश दिया.’’
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इसमें कहा गया, ‘‘वायु को गुरु, पानी को पिता, और धरती को माता बताकर उन्होंने मानवता और प्रकृति के बीच गहरे और शाश्वत संबंध को प्रकट किया.’’ पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल से राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर सिख गुरु का प्रकाशपर्व एक साझा मंच पर मनाने का आग्रह किया. बादल ने भी विशेष सत्र आयोजित करने के लिए राज्य सरकार की प्रशंसा की और कहा कि पंजाब और हरियाणा के विधायकों की संयुक्त भागीदारी एक अनुकर्णीय संकेत था. उन्होंने सभी दलों से अपने आचरण में सुलहकारी रुख अपनाने का आग्रह किया.
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