कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार पर कई सवाल खड़े किए जा रहे हैं। जिसमें सबसे अहम मुद्दा लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा दिए जाने का था।
चुनाव की तारीखों की घोषणा से ठीक पहले लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देकर राज्य के 17 फीसदी आबादी को कांग्रेस ने साधने की कोशिश की थी लेकिन राज्य चुनाव का परिणाम बता रहे हैं कि कांग्रेस का यह दांव उल्टा पड़ गया है।
कर्नाटक चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। उम्मीद है कि कांग्रेस हार के बावजूद जनता दल (सेक्युलर) (जेडीएस) के साथ मिलकर सरकार बना ले। इसके लिए बकायदा तैयारी भी शुरू हो गई है।
बता दें कि कर्नाटक के 224 विधानसभा में करीब 100 सीटों पर लिंगायत समुदाय का प्रभाव है। चुनाव से पहले भी कांग्रेस के इस समुदाय को अलग धर्म का दर्जा दिए जाने को लोगों ने खारिज किया है।
लिंगायतों के एक समूह वीरशैव ने कांग्रेस के लिंगायत और वीरशैव के बीच मतभेद पैदा करने की कोशिश बताई थी। वीरशैव समुदाय ने कहा था कि कांग्रेस चुनाव को ध्यान में रखते हुए अलगाववाद की राजनीति कर रही है।
बीजेपी ने भी पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के इस फैसले की आलोचना कर फायदा लेती रही। बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार और लिंगायत नेता बी एस येदियुरप्पा ने लोगों को साधने में सफल रहे।
बता दें कि राज्य के लिंगायत प्रभाव वाले अधिकतर क्षेत्र में बीजेपी को जीत मिली है। वहीं 2013 के चुनाव में येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री पद से हटने के कारण इन क्षेत्रों में बीजेपी को बहुत कम सीटें मिली थी।
2013 में कांग्रेस ने लिंगायत समुदाय के प्रभाव वाले क्षेत्रों में 67 फीसदी सीटें जीती थीं। वहीं बीजेपी ने उत्तर-मध्य कर्नाटक के 62 लिंगायत बहुल क्षेत्रों में 29 सीटों में जीत दर्ज की थी जिसकी संख्या 2018 में 40 के करीब जा रही है।
चुनाव से पहले बीजेपी ने कांग्रेस पर लिंगायत को लेकर कहा था कि राज्य सरकार लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देकर वोटों का ध्रुवीकरण कर रही है।
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HIGHLIGHTS
- कांग्रेस ने चुनाव से पहले लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा दिया था
- 224 विधानसभा में करीब 100 सीटों पर लिंगायत समुदाय का प्रभाव है
- 2013 में कांग्रेस ने लिंगायत समुदाय के प्रभाव वाले क्षेत्रों में 67 फीसदी सीटें जीती थीं
Source : News Nation Bureau