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चौथी बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने BS येदियुरप्पा का सियासी सफर, जानें क्लर्क से CM पद तक Journey

कर्नाटक में सियासी खींचतान के बीच बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा ने चौथी बार मुख्यमंत्री पद के लिए शपथ ग्रहण की.

Updated on: 26 Jul 2019, 08:21 PM

नई दिल्ली:

कर्नाटक में सियासी खींचतान के बीच बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा ने चौथी बार मुख्यमंत्री पद के लिए शपथ ग्रहण की. मुख्यमंत्री पद पर काबिज येदियुरप्पा का राजनीतिक सफर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है. चावल की मील में काम करने वाला एक शख्स मुख्यमंत्री की कुर्सी तक कैसे पहुंचा, उनके बारे में जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे.

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बीएस येदियुरप्पा का जन्म 27 फरवरी 1943 में मांड्या जिले के बुकानाकेरे में लिगांयत परिवार में हुआ था. 1965 में सामाजिक कल्याण विभाग में क्लर्क के रूप में नियुक्त येदियुरप्पा नौकरी छोड़कर शिकारीपुरा चले गए, जहां उन्होंने वीरभद्र शास्त्री की शंकर चावल मिल में एक क्लर्क के रूप में काम किया. उन्होंने 1970 में सार्वजनिक सेवाएं शुरू की, जिसके बाद उन्हें 1972 में शिकारीपुर तालुक जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया.

1977 में जनता पार्टी का सचिव बनने के बाद वह पूर्णरूप से राजनीति में सक्रिय हो गए. साल 1983 में वह पहली बार विधानसभा पहुंचे. बीएस येदियुरप्पा कॉलेज के दिनों में आरएसएस का हिस्सा भी रह चुके हैं. 2007 में कर्नाटक की राजनीति में उलटफेर हुआ. इसके बाद प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. ऐसे में जेडीएस और बीजेपी ने अपने मतभेद दूर किए और मिलकर सरकार बनाई. बीएस येदियुरप्पा के लिए यह लकी साबित हुआ और 12 नवंबर 2007 को वह राज्य के मुख्यमंत्री बने.

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येदियुरप्पा बीजेपी के ऐसे नेता हैं, जिनकी बदौलत बीजेपी ने दक्षिण भारत में न सिर्फ जीत का स्वाद चखा, बल्कि सत्ता पर शासन भी किया. हालांकि, वह ज्यादा दिन तक इस कुर्सी पर बने नहीं रह पाए और जेडीएस से मंत्रालयों के प्रभार को लेकर हुए विवाद के बाद 19 नवंबर 2007 को ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. साल 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने वहां अच्छा प्रदर्शन करते हुए सरकार बनाई और इस बार फिर येदियुरप्पा बीजेपी के चेहरे के तौर पर सीएम बने, लेकिन तीन साल दो महीने का उनका कार्यकाल काफी विवादों में रहा.

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कथित भूमि घोटाले से लेकर खनन घोटाले तक में उनका नाम आता रहा. इस दौरान लोकायुक्त की रिपोर्ट आने के बाद उनकी कुर्सी चली गई. कुर्सी जाने के बाद येदियुरप्पा ने खुद को बीजेपी से अलग कर दिया. इसके बाद लगा कि वो लिंगायत फैक्टर के साथ अपने बल पर राजनीति करेंगे, लेकिन बीजेपी को यह समझते देर नहीं लगी कि येदियुरप्पा के बिना राज्य में उसका कोई जनाधार नहीं रह जाएगा. ऐसे में 2018 में भी बीजेपी ने उन्हें अपना सीएम पद का उम्मीदवार बनाया और बीजेपी का ये दांव काम कर गया.