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कर्नाटक में धर्मांतरण विरोधी विधेयक मंजूर, बैकफुट पर रही कांग्रेस

विधेयक पर चर्चा के दौरान विपक्षी कांग्रेस बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली सरकार के सामने बैकफुट पर नजर आई.

Updated on: 24 Dec 2021, 10:41 AM

highlights

  • कांग्रेस ने बताया संविधान-गरीब विरोधी और अमानवीय
  • कांग्रेस की सलाह पर ही हुई थी मसौदे की शुरुआत
  • कानून के तहत कठोर सजा और मुआवजे का प्रावधान

बेंगलुरु:

कर्नाटक विधानसभा ने विपक्ष के हंगामे के बीच कर्नाटक धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का संरक्षण विधेयक, 2021 पारित कर दिया. विधेयक पास होने के बाद कर्नाटक सरकार के मंत्री अश्वत नारायण ने कहा कि यह एक बहुप्रतीक्षित विधेयक है जो समाज में सद्भाव पैदा करेगा. उन्होंने कहा, 'यह विधेयक पारदर्शिता और जवाबदेही की सुविधा प्रदान करेगा. यह एक दूरंदेशी विधेयक है जो वर्तमान में सामना की जा रही कई चुनौतियों का समाधान करेगा.' विधेयक पर चर्चा के दौरान विपक्षी कांग्रेस बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली सरकार के सामने बैकफुट पर नजर आई. 

बैकफुट पर कांग्रेस 
विधेयक पर चर्चा के दौरान विपक्षी कांग्रेस बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली सरकार के सामने बैकफुट पर नजर आई. बसवराज बोम्मई सरकार ने दावा किया कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जब सिद्धारमैया बैठे तभी कांग्रेस पार्टी द्वारा इस कानून को लाने की शुरुआत की गई थी. सत्तारूढ़ खेमे ने सदन के समक्ष अपने दावे का समर्थन करने के लिए दस्तावेज भी रखे. इसके बाद कांग्रेस रक्षात्मक मुद्रा में दिखी. अब नेता प्रतिपक्ष सिद्धरमैया ने सत्तापक्ष के दावे का खंडन किया. हालांकि बाद में विधानसभाध्यक्ष कार्यालय में रिकार्ड देखने के बाद उन्होंने स्वीकार किया कि मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने सिर्फ मसौदा विधेयक को कैबिनेट के सामने रखने के लिए कहा था, लेकिन कोई निर्णय नहीं लिया गया था. उन्होंने कहा कि इस प्रकार इसे उनकी सरकार की मंशा के रूप में नहीं देखा जा सकता है.

सिद्धरमैया ने रखा अपना पक्ष
सिद्धरमैया ने यह भी कहा कि कांग्रेस ने इस विधेयक को 'जनविरोधी, अमानवीय, संविधान विरोधी, गरीब विरोधी और कठोर' बताते हुए पुरजोर विरोध किया. उन्होंने आग्रह किया कि इसे किसी भी वजह से पारित नहीं किया जाना चाहिए और सरकार द्वारा इसे वापस ले लेना चाहिए। विधेयक का जिक्र करते हुए कानून और संसदीय मामलों के मंत्री जेसी मधुस्वामी ने कहा कि विधेयक की शुरुआत कुछ बदलावों के साथ कर्नाटक के विधि आयोग द्वारा 2016 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार की सलाह के तहत शुरू की गई थी.