करगिल युद्ध के नायकों के बेटे अपने पिता की रेजीमेंट में शामिल होने में पीछे नहीं हटे
साल 1999 में करगिल युद्ध में शहीद हुए तीन सैनिकों के बेटे अपनी मां से पिता की वीरगाथाएं सुन कर बड़े हुये और वे अब सेना की उसी रेजीमेंट में शामिल हुए हैं.
नई दिल्ली:
साल 1999 में करगिल युद्ध में शहीद हुए तीन सैनिकों के बेटे अपनी मां से पिता की वीरगाथाएं सुन कर बड़े हुये और वे अब सेना की उसी रेजीमेंट में शामिल हुए हैं, जिनका संबंध उनके पिता से था. सिपाही अमरप्रीत सिंह, सिपाही बख्तावर सिंह और लेफि्टनेंट हितेश कुमार, शहीद हुए क्रमश: नायक सूबेदार सुरजीत सिंह, नायक सूबेदार रावल सिंह और नायक बचन कुमार के पुत्र हैं और सेना में शामिल होने के फैसले को उनकी मां ने समर्थन दिया है.
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भारतीय सेना ने 1999 में मई महीने में करगिल में आपरेशन विजय चलाया था. इसका मकसद कई पहाड़ियों की चोटियों पर कब्जा किए बैठे पाकिस्तानी घुसैपैठियों से खाली कराना था. इस चोटियों से श्रीनगर-लेह राजमार्ग पर आसानी से नजर रखी जा सकती है. अमरप्रीत, बख्तावर और हितेश के पिता उन 527 सैनिकों में शामिल हैं जिन्होंने दो महीने तक हाड़ कंपा देने वाली सर्दी के मौसम में चले इस युद्ध में देश की रक्षा करते हुये अपने प्राण न्यौछावर कर दिये थे.
इस युद्ध से जुड़ी विभिन्न घटनाओं में 1,363 सैनिक घायल हुये थे. पंजाब के मावा गांव के निवासी अमरप्रीत, उस समय केवल 10 साल के थे जब उन्होंने इस युद्ध में अपने पिता को खो दिया था. उसकी मां अमरजीत कौर ने कहा कि वह हमेशा सेना में शामिल होना चाहता था. उन्होंने बताया कि जब उनके पति ने 1999 में मीडियम आर्टिलरी रेजिमेंट में द्रास सेक्टर में लड़ते हुए अपनी शहादत दी, तो मेरा बेटा सिर्फ 10 साल का था. शुरुआत से ही वह सेना में शामिल होने का इच्छुक था। मैंने उनका समर्थन किया और मुझे उसके फैसले पर गर्व है.
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अमरप्रीत मई 2018 में अपने पिता की रेजिमेंट में शामिल हुये और वर्तमान में लेह में तैनात है. सिपाही बख्तावर की मां सुरिंदर कौर अलग नहीं हैं. उन्होंने कहा कि अपने बेटे के सेना में शामिल होने के फैसले का हमेशा समर्थन किया. जम्मू के माखनपुर गाँव के रहने वाले बख्तावर उस समय केवल नौ साल के थे, जब उनके पिता नायक सूबेदार रावल सिंह, टाइगर हिल में दुश्मन से लड़ते हुए शहीद हो गए.
करगिल में सेवा दे चुके बख्तावर को परिवार के अन्य सदस्यों ने भी सेना में भर्ती होने के लिए प्रोत्साहित किया. उन्होंने याद करते हुये बताया कि उनके चाचा, जो कारगिल युद्ध में भी लड़े थे, ने भी अपनी बहादुरी के किस्से सुनाकर मुझे प्रोत्साहित किया. लेफ्टिनेंट हितेश कुमार के पिता, राजपूताना राइफल्स की दूसरी बटालियन में लांस नायक बचन सिंह, 12 जून 1999 को तोलोलिंग में लड़ते हुए शहीद हुए.
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उनकी मां कमलेश बाला ने बताया कि हितेश तब केवल छह साल के थे. उन्होंने भी अपने पिता की मृत्यु के बाद सेना में शामिल होने का फैसला किया. सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने युवा सैनिकों को अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने के लिए उनकी प्रशंसा की. उन्होंने कहा, "बहुत सी महिलाएं अपने बच्चों का इस तरह के कैरियर का चयन का समर्थन करने में पर्याप्त बहादुर नहीं होती हैं, जो एक बार उनके पति को उनसे हमेशा के लिए दूर कर चुका है।
करगिल युद्ध को 26 जुलाई 1999 को उस समय समाप्त घोषित कर दिया गया था, जब भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी सैनिकों को पीछे धकेल दिया था. इस दिन को भारत की जीत के उपलक्ष्य में 'करगिल विजय दिवस' के रूप में मनाया जाता है. रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि युद्ध की 20 वीं वर्षगांठ 25 से 27 जुलाई तक दिल्ली और द्रास में मनाई जाएगी और जुलाई के पहले सप्ताह से पूरे देश में कई कार्यक्रम की योजना है.
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