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15 साल लंबे इंतजार के बाद कांग्रेस (Congress) को सत्‍ता मिली और मात्र 460 दिनों में ही धड़ाम हो गई

मध्‍य प्रदेश में 15 साल लंबे इंतजार के बाद कांग्रेस को सत्‍ता मिली थी. 17 दिसंबर 2018 को कमलनाथ मुख्‍यमंत्री बने थे. हालांकि कांग्रेस की जीत बहुत बड़ी नहीं थी, लेकिन इस जीत का प्रतीकात्‍मक महत्‍व था.

Updated on: 20 Mar 2020, 02:42 PM

नई दिल्‍ली:

मध्‍य प्रदेश में 15 साल लंबे इंतजार के बाद कांग्रेस को सत्‍ता मिली थी. 17 दिसंबर 2018 को कमलनाथ (Kamalnath) मुख्‍यमंत्री बने थे. हालांकि कांग्रेस (Congress) की जीत बहुत बड़ी नहीं थी, लेकिन इस जीत का प्रतीकात्‍मक महत्‍व था. नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के बाद बीजेपी के सबसे सफल मुख्‍यमंत्रियों में शुमार किए जा रहे शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) का किला ध्‍वस्‍त हुआ था. कमलनाथ मुख्‍यमंत्री के साथ-साथ प्रदेशाध्‍यक्ष भी बने रहे. यही बात उनकी सरकार जाने का सबसे बड़ा कारण साबित हुई. अगर प्रदेशाध्‍यक्ष पद ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) को मिल जाता तो वे अलग नहीं होते और विधायकों को तोड़कर नहीं ले जाते और कमलनाथ (Kamalnath) की सरकार नहीं गिरती. इसलिए यह भी कहा जा सकता है कि कमलनाथ की सरकार खुद उनकी महत्‍वाकांक्षा के चलते गिरी.

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कमलनाथ की सरकार बनने से पहले कांग्रेस के तत्‍कालीन अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने एक फोटो पोस्‍ट किया था, जिसमें उन्‍होंने कमलनाथ और ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को वारियर्स बताया था. कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि उस समय राहुल गांधी ने आपसी संबंधों के चलते किसी तरह ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को शांत कर लिया था, लेकिन जब कमलनाथ को कुर्सी हासिल हो गई तो उन्‍होंने ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को दरकिनार करना शुरू कर दिया. उनके कोटे के विधायकों की पार्टी में सुनवाई बंद हो गई. उन विधायकों के क्षेत्र में सरकार ध्‍यान नहीं दे रही थी. उन विधायकों की अधिकारी भी नहीं सुन रहे थे. यही बात उन्‍हें अखरती चली गई.

पिछले साल लोकसभा चुनाव से पहले तत्‍कालीन कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने एक बार फिर प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को एक नई जिम्‍मेदारी सौंपी. प्रियंका गांधी वाड्रा पूर्वी उत्‍तर प्रदेश तो ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव बनाया गया. तब इसे राहुल गांधी का मास्‍टर स्‍ट्रोक माना गया था, लेकिन इसका रिजल्‍ट 0 साबित हुआ और राहुल गांधी खुद अपनी अमेठी सीट से हार गए. तब जानकारों ने यह बताया कि कमलनाथ के कहने पर ही ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को मध्‍य प्रदेश से बाहर करने के लिए उन्‍हें पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश की जिम्‍मेदारी सौंपी गई थी. ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के लिए यह टफ टास्‍क था. पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश में कांग्रेस की हालत सालों से खराब थी और कोई चमत्‍कार ही कांग्रेस में जान फूंक सकती थी. इसलिए ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को फेल करने के लिए ही पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश में पार्टी की कायाकल्‍प का जिम्‍मा उन्‍हें सौंपा गया था.

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उत्‍तर प्रदेश में तो कांग्रेस का कुछ भी नहीं हुआ, लेकिन ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को देर से ही सही यह बात समझ में आ गई. उसके बाद उन्‍होंने मध्‍य प्रदेश पर फोकस करना प्रारंभ किया. वचनपत्र में उल्‍लिखित बातों को लागू कराने को लेकर उन्‍होंने छोटी-छोटी सभाएं करनी प्रारंभ कर दीं. इसी तरह की एक सभा में उन्‍होंने किसानों के लिए सड़क पर उतरने की बात कही तो कमलनाथ ने कह दिया- ''उन्‍हें सड़क पर उतरना है तो उतर जाएं.'' यही बात ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को चुभ गई और उसके बाद से वो सरकार गिराने की रणनीति पर काम करने लगे. इस बीच में बड़ोदरा की महारानी का साथ मिला और भाजपा प्रवक्‍ता जफर इस्‍लाम के माध्‍यम से उनकी बात पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह तक पहुंची.

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सूत्रों के अनुसार बीजेपी ने पहले ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के नाम पर ना-नुकुर की, लेकिन बाद में कमलनाथ सरकार गिराने की शर्त पर ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के मिशन को हरी झंडी मिल गई. पिछले साल के अंत से शुरू हुआ कमलनाथ सरकार को गिराने का खेल होली आते-आते पूरा हो गया. पूरा देश जहां होली खेल रहा था, वहीं ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया अपने साथी वारियर कमलनाथ की होली खराब कर रहे थे. पीएम नरेंद्र मोदी से मिलने के बाद ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया ने सोनिया गांधी को अपना इस्‍तीफा भेज दिया. इससे पहले खबर आई थी कि ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को सोनिया गांधी और राहुल गांधी समय नहीं दे रहे थे. थक-हारकर ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया ने कांग्रेस को बाय-बाय बोल दिया.