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जस्टिस दीपक मिश्रा ने 45वें सीजेआई के रूप में ली शपथ

दीपक मिश्रा ने चीफ़ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर की जगह ली है जो 27 अगस्त को रिटायर हो चुके हैं।

Updated on: 28 Aug 2017, 01:34 PM

highlights

  • जस्टिस दीपक मिश्रा ने देश के 45वें चीफ़ जस्टिस के रूप में शपथ ली
  • राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने उन्हें चीफ़ जस्टिस पद की शपथ दिलाई
  • दीपक मिश्रा ने चीफ़ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर की जगह ली है

नई दिल्ली:

सोमवार को जस्टिस दीपक मिश्रा ने देश के 45वें चीफ़ जस्टिस के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने उन्हें चीफ़ जस्टिस पद की शपथ दिलाई। बता दें कि दीपक मिश्रा ने चीफ़ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर की जगह ली है जो 27 अगस्त को रिटायर हो चुके हैं।

न्यायमूर्ति खेहर ने चीफ़ जस्टिस पद पर अपने उत्तराधिकारी के रूप में न्यायमूर्ति मिश्रा के नाम की सिफारिश की थी। न्यायमूर्ति मिश्रा 13 महीने और 6 दिनों तक प्रधान न्यायाधीश पद पर रहेंगे, क्योंकि दो अक्टूबर, 2018 को वह सेवानिवृत्त हो जाएंगे।

न्यायमूर्ति मिश्रा देश के प्रधान न्यायाधीश बनने वाले ओडिशा के तीसरे व्यक्ति हैं। उनसे पहले ओडिशा से न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रंगनाथ मिश्रा और न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) जी. बी. पटनायक प्रधान न्यायाधीश रह चुके हैं।

न्यायमूर्ति मिश्रा मुंबई श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों के दोषी याकूब मेमन की मृत्युदंड पर रोक लगाने की याचिका खारिज करने वाली पीठ और निर्भया सामूहिक दुष्कर्म मामले में दोषियों की मौत की सजा बरकरार रखने वाली पीठ के अध्यक्ष रहे हैं।

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तीन अक्टूबर, 1953 को जन्मे न्यायमूर्ति मिश्रा ने 14 फरवरी, 1977 को न्याय व्यवस्था में बतौर वकील प्रवेश किया और उन्होंने ओडिशा उच्च न्यायालय एवं सेवा न्यायाधिकरण में संवैधानिक, नागरिक, आपराधिक, राजस्व, सेवा एवं बिक्री कर मामलों के विशेषज्ञ वकील के तौर पर अपनी सेवाएं दीं।

उन्हें 17 जनवरी, 1996 को ओडिशा उच्च न्यायालय का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया, जहां से उनका तबादला तीन मार्च, 1997 को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में हो गया और उसी वर्ष 19 दिसंबर को वह स्थायी तौर पर न्यायाधीश नियुक्त कर दिए गए।

न्यायमूर्ति मिश्रा को 23 दिसंबर, 2009 को पटना उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया और 24 मई, 2010 को वह दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने।

वह 10 अक्टूबर, 2011 से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश हैं।

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उनसे जुड़ी खास बातें और ऐतिहासिक फैसले

  • जस्टिस दीपक मिश्रा के नाम 192 शब्दों का एक वाक्य बोलने का ज्यूडिशियल हिस्ट्री में रिकॉर्ड है। यह वाक्य उन्होंने प्रियंका श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के एक मामले में अपना फैसला सुनाते समय बोला था। इस फैसले की लाइनें खास थीं, इसमें शेक्सपियर और प्राचीन ग्रंथों के उदाहरण थे।
  • अगस्त 2015 में जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली बेंच ने गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट से लिंग परीक्षण से संबंधित विज्ञापनों को बैन करने को कहा गया था।
  • 2015 में जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने मुंबई ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन को फांसी की सजा सुनाई थी। इस मामले की सुनवाई के लिए आजादी के बाद ऐसा पहली बार रात के 1 बजे कोर्ट खुली थी। दोनों पक्षों की दलील के बाद याकूब की अर्जी खारिज की गई थी और फिर तड़के उसे फांसी दी गई थी।
  • मई 2016 में जस्टिस मिश्रा ने केंद्र की दलीलों को ठुकराते हुए उत्तराखंड विधानसभा में फ्लोर टेस्ट करवाया। हरीश रावत सरकार को दोबारा बहाल किया।
  • मई 2016 में जस्टिस मिश्रा ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए पूरे देश के सिनेमा घरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान चलाए जाने का आदेश दिया था और इस दौरान सिनेमा हॉल में मौजूद लोगों को राष्ट्रगान के सम्मान में खड़ा होना भी अनिवार्य कहा गया।
  • 2017 में जस्टिस दीपक मिश्रा, आर बानुमति और अशोक भूषण की पीठ ने निर्भया बलात्कार कांड के दोषियों की फांसी की सजा को बरकरार रखा था। अपने एक ऐतिहासिक फैसले में पुलिस से कहा था कि वह एफआईआऱ दर्ज करने के 24 घंटे बाद उसे वेबसाइट पर अपलो़ड करें।

जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई में स्पेशल बेंच बनी है जो अयोध्या मामले की सुनवाई करे। इसके अलावा बीसीसीआई रिफार्म, सहारा सेबी मामला भी जस्टिस मिश्रा की बेंच सुन रही है।

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