रोस्टर मामले पर जस्टिस चेलमेश्वर का सुनवाई से इनकार, कहा- क्या फायदा पलट दिया जाएगा फ़ैसला
जस्टिस चेलमेश्वर ने याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि मेरे लिए कहा जा रहा है कि मैं किसी ऑफिस को हथियाने के लिए ये सब कर रहा हूं। अगर किसी को चिंता नहीं है तो मैं भी चिंता नहीं करूंगा।
नई दिल्ली:
चीफ़ जस्टिस ऑफ इंडिया के मास्टर ऑफ रोस्टर के मुद्दे पर दायर की गई शांति भूषण की याचिका पर गुरुवार को सुनवाई के दौरान एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में मनमुटाव का मामला सामने आया। जस्टिस चेलमेश्वर ने इस याचिका पर सुनवाई करने से ही इनकार कर दिया।
चेलमेश्वर ने आगे कहा कि वह नहीं चाहते हैं कि 24 घंटे के अंदर ही उनका आदेश पलट दिया जाए। उन्होंनेने कहा, 'मैं दो महीने बाद रिटायर हो रहा हूं, आगे देश खुद ही फैसला कर लेगा।'
जस्टिस चेलमेश्वर ने याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि मेरे लिए कहा जा रहा है कि मैं किसी ऑफिस को हथियाने के लिए ये सब कर रहा हूं। अगर किसी को चिंता नहीं है तो मैं भी चिंता नहीं करूंगा। देश के इतिहास को देखते हुए मैं ज़ाहिर तौर पर इस मामले को नहीं सुनूंगा।
जस्टिस चेलमेश्वर सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के बाद सबसे सीनियर जज हैं।
बता दें कि वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने जस्टिस चेलमेश्वर के सामने शांति भूषण की याचिका का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने चीफ जस्टिस के मास्टर ऑफ रोस्टर को चुनौती दी है।
याचिका में कहा गया है कि केसों के आवंटन का काम कॉलेजियम के जजों को करना चाहिए लेकिन सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री का डायरी नंबर नहीं दे रही है। इसलिए वरिष्ठ जजों को चाहिए कि वो इस मामले की सुनवाई करे।
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SC के एक अन्य जज ने कॉलेजियम सिस्टम में सरकार के दख़ल पर CJI को लिखा ख़त
केंद्र सरकार द्वारा दो जजों की नियुक्ति में हो रही देरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के एक शीर्ष जज ने कॉलेजियम सिस्टम में सरकार के दख़ल के ख़िलाफ़ चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को एक ख़त लिखा है।
उन्होंने ख़त में सरकारी हस्तक्षेप को लेकर आपत्ति ज़ाहिर करते हुए लिखा कि इस फ़ैसले की वजह से आज सुप्रीम कोर्ट का अस्तित्व और प्रसांगिकता ख़तरे में है।
जस्टिस कुरियन जोसेफ ने चिट्ठी में लिखा, 'इतिहास हमें माफ़ नहीं करेगा यदि सरकार इस अभूतपूर्व कानून के तहत कॉलेजियम सिस्टम में घुसकर जजों और वरिष्ठ वकीलों के पदोन्नति संबंधी अहम फ़ैसले लेगी और कोर्ट चुपचाप तमाशा देखता रहेगा।'
बता दें कि यह चिट्ठी 9 अप्रैल को लिखी गई है साथ ही इसे चीफ़ जस्टिस के अलावा 22 अन्य जजों को भी भेजा गया है।
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क्या है मामला
दरअसल 10 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में शीर्ष जजों के एक समूह ने वरिष्ठ अधिवक्ता इंदु मल्होत्रा, जस्टिस केएम जोसेफ़ और उत्तराखंड हाई कोर्ट के चीाफ़ जस्टिस को सुप्रीम कोर्ट के लिएअनुशंसा की थी। तीन महीने के बाद भी केंद्र सरकार ने अब तक इस फैसले पर अपनी सहमति नहीं दी है इसलिए अब तक इन सब की अनुशंसा रुकी हुई है।
जिसके बाद जस्टिस कुरियन जोसेफ़ ने सुप्रीम कोर्ट को सुझाव दिया है कि 'इस मामले में अदालत तत्काल प्रभाव से 7 जजों की एक बेंच बनाए और लंबित नियुक्ति को ख़त्म करने के लिए एक आदेश पास करे।'
जोसेफ़ ने कहा, 'यह पहली बार हुआ है जब अनुशंसा के तीन महीने बाद भी कोर्ट को यह नहीं पता है कि आगे क्या होगा।'
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