Joshimath के धंसने का गायब हुए तालाबों से है कनेक्शन, और भी इमारतों में आई दरारें
1960 के दशक तक हम उन हिस्सों में घूमने जाते थे और इन्हीं तालाबों से पानी लेते थे, लेकिन अब इन सभी पर कोई न कोई निर्माण हो चुका है. हमें लगता है कि पानी अभी भी नीचे है और बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है संभवतः इसीलिए इमारतों में दरारें पड़ रही हैं.
highlights
- जोशीमठ के कम से कम पांच तालाब सूख गए या उन पर हो गया निर्माण
- इन्हीं का पानी बना होगा इमारतों में दरार का कारण, जो बाहर रिस भी रहा
- जोशीमठ में दरार वाली 863 इमारतों की हुई पहचान, 181 बेहद असुरक्षित
देहरादून:
जोशीमठ (Joshimath) के निवासियों का कहना है कि कुछ दशक पहले इस क्षेत्र और आसपास आंखों के सामने नजर आने वाले कम से कम पांच तालाब (Ponds) या तो सूख गए हैं या उन पर निर्माण करा दिया गया है. इन तालाबों का पानी घरों और अन्य संरचनाओं में आई दरारों (Cracks) और क्षरण का एक बड़ा कारण हो सकता है. पुराने समय के लोग याद करते हैं कि कैसे शहर कभी इन तालाबों सहित कई जल स्रोतों से अटा हुआ था. वे कहते हैं कि कई निर्माण गतिविधियों की शुरुआत ने जल निकायों के सिकुड़ने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. इस बीच जोशीमठ में स्थानीय प्रसासन ने 863 इमारतों की पहचान की है, जिनमें भूधंसाव (subsidence) के कारण दरारें आई हैं. इनमें से 181 इमारतों को असुरक्षित करार दिया गया है.
गायब तालाबों का पानी बाहर निकलने की कोशिश में डाल रहा दरारें
पुराने दौर को याद करते हुए कस्बे की निवासी रामेश्वरी सती बताती हैं, 'आज जहां आईटीबीपी क्षेत्र या अन्य लोगों की रिहायश है, वहां कभी सुनील कुंड और सवी क्षेत्र था जिसमें तीन कुंड थे. 1960 के दशक तक हम उन हिस्सों में घूमने जाते थे और इन्हीं तालाबों से पानी लेते थे, लेकिन अब इन सभी पर कोई न कोई निर्माण हो चुका है. हमें लगता है कि पानी अभी भी नीचे है और बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है संभवतः इसीलिए इमारतों में दरारें पड़ रही हैं.' एक अन्य पुराने दौर की शांति चौहान ने कहा, 'एक के बाद एक तीन तालाब थे, जिनका नाम तिरचुली था. वे अब गायब हो गए हैं. इनके बाद फिर चतरा कुंड था, जो गौंख गदेरा तक जाता था जो अब लुप्त हो गया है. सुनील कुंड और उनील ताल भी गायब हो चुके हैं.'
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भूविज्ञानियों की भी है ऐसी ही राय
स्थानीय निवासियों से मिली जानकारी के मुताबिक औली और जोशीमठ के बीच ऊंचाई पर सुनील कुंड था. आज कुंड वाले इलाके के घरों में दरारें दिखाई पड़ रही हैं. इसके बाद यही स्थिति मनोहर बाग और अन्य बुरी तरह से प्रभावित क्षेत्रों की है. भूविज्ञानी एमपीएस बिष्ट ने बताया, 'ये प्राकृतिक जल स्रोत आपस में जुड़े हुए हैं. घास के मैदानों के पास स्थित क्षेत्रों के रिचार्ज हो जाने पर ही निश्चित तौर पर पानी निश्चित अन्य क्षेत्रों से बाहर निकलेगा. जोशीमठ की सतह के नीचे एक जटिल जल प्रणाली है और इनकी राह में जर्बदस्त बाधा आने के कारण ही वे इमारतों में दरार पैदा कर वहां से पानी बाहर निकल रहा है.'
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