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JNU हिंसा का क्रमवार घटनाक्रम, टीचर फेडरेशन ने की शैक्षणिक माहौल वापस लाने की अपील

संगठन का कहना है कि पहले की बातों को भुला कर एक बार फिर परस्पर बातचीत से मसलों को सुलझाया जा सकता है.

Updated on: 10 Jan 2020, 05:26 PM

नई दिल्ली:

जेएनयू हिंसा का मसला धीरे-धीरे दो खेमों में बंटता नजर आ रहा है. ऐसे में जेएनयू के एक शिक्षक संगठन JNUTF ने अपने ट्विटर हैंडल पर परिसर में हिंसक वारदातों का क्रमवार विवरण पेश कर दोषियों के खिलाफ यथोचित कार्रवाई करने की अपील की है. इसके साथ ही संगठन ने छात्रों और शिक्षकों से यह आह्वान भी किया है कि परिसर में शैक्षणिक वातावरण बनाने में अपना योगदान दें. संगठन का कहना है कि पहले की बातों को भुला कर एक बार फिर परस्पर बातचीत से मसलों को सुलझाया जा सकता है. इसके साथ ही JNUTF ने विरोध के अधिकार को मानते हुए यह चेतावनी भी दी है कि इसका मतलब यह कतई नहीं है कि प्रतिरोध का अधिकार भी बंधक बना लिया गया है. 28 अक्टूबर 2019 से 5 जनवरी 2020 तक जेएनयू में हुई हिंसात्मक घटनाओं का क्रमवार विवरण कुछ इस तरह से है...

28 अक्टूबर
सुबह 10 बजेः जेएनयू के कन्वेंशन हॉल में इंटर हॉल एडमिनिस्ट्रेशन (आईएचए) की बैठक चल रही थी. अचानक नारेबाजी करते हुए उपद्रवी वहां दाखिल हुए. कुछ छात्र नेताओं की नुमाइंदगी में उन्होंने बैठक में मौजूद छात्रों-टीचरों संग मारपीट की.
दोपहर 12 बजेः डीन ऑफ स्टूडेंट्स (डीओएस) की तबियत बिगड़ी. विश्वविद्यालय के हेल्थ सेंटर के ऑन ड्यूटी डॉक्टर ने उन्हें इंडियन इंस्टीट्यूट ऑप स्पाइनल इंजरी में तुरंत भर्ती कराने की सलाह दी. इस बीच उन्हें देखने जेएनयू आए विजिटिंग डॉक्टर से अभद्रता की और उन्हें ईलाज करने से रोका. आंदोलनरत छात्रों ने एंबुलेंस को घेर लिया और शाम 6 बजकर 20 मिनट तक उसे वहां से जाने नहीं दिया. इतिल्ला पर पीसीआर वैन आई और चली गई.
29 अक्टूबर
छात्रों के हिंसक बर्ताव की डीओएस ने विधिवत पुलिस में शिकायत की. इस बीच जेएनयू के तमाम प्रवेश द्वारों पर आंदोलनरत छात्रों ने ताला जड़ दिया.
30 अक्टूबर
लोहित और कोयना वार्डन का देर रात उनके घर के बाहर घेराव किया गया. इनमें से एक वार्डन गर्भवती थी, तो दूसरी के भी छोटे-छोटे बच्चे थे. छात्रों के हो-हल्ले और उपद्रवी रवैये से सभी को गहरे मानसिक संताप से गुजरना पड़ा. वार्डन ने जेएनयू सिक्योरिटी और पुलिस से फोन पर मदद मांगी, लेकिन उन्हें सहयोग नहीं मिला.
31 अक्टूबर
नर्मदा, शिप्रा और साबरमती के वार्डन को उनके घरों पर देर रात घेराव किया गया. एक बार फिर सभी के परिवारों को जान से मारने की धमकी दी गई. पीसीआर को फोन करने के बावजूद सिक्योरिटी-पुलिस मौके पर उनके बचाव में नहीं पहुंची.
31 अक्टूबर
डीओएस की पत्नी को सोशल मीडिया पर निजी हमले और ट्रोलिंग झेलनी पड़ी. डीओएस पर दबाव बनाने के लिए छात्रों का यह एक सुनियोजित मानसिक हमला था. इसका मकसद डीओएस को अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन करने से भी रोकना था.
1 नवंबर
प्रदर्शनकारियों ने अवैध तरीके से आईएचए के कार्यालय पर ताला जड़ा. कार्यालय में उपस्थित अधिकारियों-कर्मचारियों को गंभीर नतीजे भुगतने की धमकी दी गई. इसके साथ बलप्रयोग कर उन्हें ऑफिस से जाने को मजबूर किया गया.
चंद्रभागा और माही-मांडवी होस्टल के वार्डन का देर रात घर पर घेराव किया गया. माही-मांडवी के वार्डन अल्पसंख्यक तबके से ताल्लुक रखते हैं. ऐसे में उनेक खिलाफ 'गद्दार' जैसे नारे भी लगाए गए. सुरक्षा को लेकर की गई तमाम कॉल के बावजूद सिक्योरिटी-पुलिस से मदद नहीं मिली.
2 नवंबर
ताप्ती होस्टल के वार्डन के घर का घेराव कर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई.
3 नवंबर
नर्मदा, पेरियार, कावेरी और झेलम होस्टल के वार्डनों का उनके परिवार समेत घेराव किया गया. जान से मारने की धमकी दी गई. पीसीआर को फोन किया गया. वह आई औऱ बगैर कोई कार्रवाई करे चली गई.
5 नवंबर
जेएनयू के सभी प्रोवोस्ट का उनके-उनके घरों पर घेराव किया गया. हिंसक प्रदर्शनकारियों ने उन्हें तरह-तरह की धमकी दी.
6 नवंबर
अपने-अपने खंड के वरिष्ठ वार्डन समेत सभी प्रोवोस्ट का सुबह 10 बजे से शाम 3 बजे तक घेराव किया गया. प्रदर्शनकारी छात्रों ने पहले से लाए विभिन्न दस्तावेजों, मीटिंग के मिनट्स, इस्तीफों पर जबरन हस्ताक्षर कराए.
7 नवंबर
पेरियार होस्टल के वार्डन का उनके घर पर घेराव किया गया. पुलिस या जेएनयू सिक्योरिटी उनकी मदद को नहीं पहुंची.
8 नवंबर
स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टेडीज की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ वंदना मिश्रा को इमारत में 29 घंटे तक बंधक बना कर रखा गया. उन्हें शारीरिक हमलों समेत मानसिक उत्पीड़न के गहरे अवसाद और डर के माहौल से गुजरना पड़ा. दिल्ली पुलिस से लगातार किए गए फोन के बाद कुछ पुलिस अधिकारी सादी वर्दी में पहुंचे. उन्होंने प्रदर्शनकारी छात्रों पर उचित कार्रवाई करने के बजाय अजीब तरीके से व्यवहार किया. उन्होंने डॉ मिश्रा से छात्रों की बात मानते हुए हस्ताक्षर करने को कहा. काफी प्रयासों के बाद डॉ मिश्रा को छुड़ाया जा सके.
11 नवंबर
छात्रों ने जेएनयू की कन्वोकेशन सेरेमनी का घेराव किया. इसके साथ ही छात्रों ने डर का माहौल पैदा कर जेएनयू के भीतर कानून-व्यवस्था की स्थिति को बिगाड़ा. इस कारण एचआरडी मंत्री और अन्य गणमान्य अतिथियों को उग्र छात्रों के समक्ष बंधक की स्थिति से गुजरना पड़ा.
13 नवंबर
वीसी ऑफिस, प्रशासकीय इमारत और स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा को उग्र छात्रों ने नुकसान पहुंचाया. इसके साथ ही जेएनयू के संपूर्ण परिसर को क्षुद्र नारों और उकसावेपूर्ण बयानों से रंग-पोत दिया गया. परिसर के अधिसंख्य शैक्षणिक इमारतों में प्रदर्शनकारी छात्रों ने अवैध रूप से ताला जड़ दिया. इसके साथ ही अन्य छात्रों, शिक्षकों और स्टाफ सदस्यों को काम नहीं करने की धमकी दी गई. जेएनयू के शैक्षणिक माहौल को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया गया. प्रस्तावित परीक्षाओं को कराना भी मुमकिन नहीं था. सेमेस्टर पर खतरा तक मंडराने लगा.
16 नवंबर
प्रशासकीय इमारत में अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को अंजाम दे रही महिला सिक्योरिटी के कुछ सदस्यों को बेरहमी से मारा-पीटा गया. यह सब आंदोलनरत छात्रों ने किया.
9 दिसंबर
प्रोफेसर अतुल कुमार जौहरी के साथ धक्का-मुक्की और छीना-झपटी की गई. उन्हें दौड़ाया गया, पीछा किया गया और मारा गया.
10 दिसंबर
हिंसक आंदोलनकारियों ने इंजीनियरिंग स्टूडेंट की एसपीएस में हो रही परीक्षाओं में व्यवधान पैदा किया. प्रयोगशाला में तोड़-फोड़ की. इसके साथ ही आंदोलनकारी छात्रों ने परीक्षार्थियों, परीक्षकों, इनविजिलेटर्स को धमकी दी और आंसर शीट फाड़ने की कोशिश की.
हिंसक आंदोलनकारियों ने भाषा इंडोनेशिया की परीक्षा में व्यवधान पैदा करने की कोशिश की. यह परीक्षा स्कूल ऑफ संस्कृत और इंडिक स्टेडीज में प्रस्तावित थी.
11 दिसंबर
हिंसक आंदोलनकारियों ने इंजीनियरिंग स्टूडेंट की एसपीएस में हो रही परीक्षाओं में व्यवधान पैदा किया. प्रयोगशाला में तोड़-फोड़ की. इसके साथ ही आंदोलनकारी छात्रों ने परीक्षार्थियों, परीक्षकों, इनविजिलेटर्स को धमकी दी और आंसर शीट फाड़ने की कोशिश की.
प्रोफेसर उमेश अशोक कदम का कन्वेंशन सेंटर में घेराव कर उनके साथ धक्का-मुक्की की गई.
11 दिसंबर
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में दिल्ली पुलिस को जेएनयू के अधिकारियों-कर्मचारियों को सुरक्षा मुहैया कराने को कहा. इसके साथ ही प्रशासकीय और अन्य शैक्षणिक इमारतें खाली कराने को कहा.
14 दिसंबर
12 दिसंबर से सादी वर्दी में परिसर में तैनात दिल्ली पुलिस की मौजूदगी के बावजूद वाइस चांसलर और उनके साथ अन्य अधिकारियों पर 40 के आसपास उपद्रवियों ने हमला कर दिया. वीसी का ऑफिस तहस-नहस कर दिया गया और पुलिस यह सब मूक दर्शक बने देखती रही.
3 जनवरी
पूर्व जेएनयूएसयू अध्यक्ष के नेतृत्व में नकाबपोश उपद्रवियों ने सीआईएस के सर्वर को जबरन बंद करवा दिया. यह सब रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को बाधित करने के उद्देश्य से किया गया. सर्वर अगले दिन यानी 4 जनवरी सुबह शुरू हो सका.
4 जनवरी
एक बार फिर नकाबपोश उपद्रवियों ने सर्वर सेंटर पर धावा बोल वहां भारी तोड़-फोड़ की. इस कारण एक बार फिर रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया और इंटरनेट सेवा ध्वस्त हो गई.
5 जनवरी
रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया के बॉयकॉट करने की चेतावनी को नजरअंदाज कर प्रक्रिया में भाग लेने आए छात्रों पर फिर नकाबपोश छात्रों ने हमला किया.
पेरियार होस्टल में घुसकर नकाबपोश छात्रों ने वहां रह रहे छात्रों को बेरहमी से मारा-पीटा.
नकाबपोश उपद्रवी साबरमती होस्टल में घुस गए और वहां छात्रों को मारा. दो वार्डन को भी मारा और धमकाया. कई शिक्षक और छात्र इस हमले में घायल हो गए.