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JNU रिसर्च का दावा- संस्कारों से दूर होगा तनाव, दवाईयों से नहीं

रिसर्च में कहा गया है कि बचपन या उम्र के शुरुआती दौर में 'भजन' और 'कीर्तन' सुनने से तनाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

Updated on: 31 Oct 2017, 08:59 AM

highlights

  • मेडिकल इलाज से सिर्फ और सिर्फ शारीरिक समस्याओं को निपटा सकता है, न कि मासिक मुद्दों को
  • रिसर्च में कहा गया है कि बचपन और शुरुआती दौर में 'भजन' और 'कीर्तन' सुनने से तनाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है

नई दिल्ली:

दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) के संस्कृत शिक्षा केन्द्र में एक रिसर्च में दावा किया गया है कि नैतिक मूल्यों और संस्कारों को अपनाकर मानसिक बीमारी से निपटा जा सकता है, जबकि इसके लिए मनोचिकित्सक और दवाईयां रोगियों की सेहत को सिर्फ बिगाड़ने का काम करते हैं।

रिसर्च में कहा गया है कि बचपन या उम्र के शुरुआती दौर में 'भजन' और 'कीर्तन' सुनने से तनाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

जेएनयू में वैदिक साहित्य के एक प्रोफेसर सुधीर कुमार आर्या ने कहा कि संस्कृत केन्द्र में आयोजित इस तरह का यह पहला रिसर्च है।

यह रिसर्च भागवत पुराण और अग्नि पुराण पर आधारित है, जो दावा करता है कि युवावस्था में नैतिक मूल्यों को पढ़ाए जाने से तनाव, व्यग्रता और अन्य मानसिक मुद्दों का सामना नहीं करना पड़ता है।

रिसर्च के अनुसार, योगा भी इससे निपटने में बहुत शानदार तरीके से काम करता है। साथ ही बताया गया है कि एकल परिवार और इकलौते बच्चे भी बड़े होकर युवाओं के बीच तनाव और चिंता का शिकार होते हैं।

रिसर्च कहता है कि मेडिकल इलाज से सिर्फ और सिर्फ शारीरिक समस्याओं को निपटा सकता है, न कि मानसिक मुद्दों को।

इसी शोध के एक सहायक रिसर्चर के अनुसार, कई सारे छात्र स्वास्थ्य मुद्दों पर इलाज ढूंढ़ने के लिए योगा, उपासना और नैतिक शिक्षा पर और अधिक रिसर्च कर रहे हैं।

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