पिछले कुछ वर्षो से देश की सुर्खियों में चल रहे दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली पर एक बहुत बड़ा खुलासा सामने आया है, साथ ही बहुत बड़ा सवाल देश की सुरक्षा के ऊपर भी खड़ा कर दिया है. युनिवर्सिटी में 82 विदेशी छात्र ऐसे है जिनकी राष्ट्रीयता का रिकॉर्ड प्रशासन के पास भी उपलब्ध नहीं है जबकि यह छात्र किस देश से है इसका जवाब यूनिवर्सिटी के पास नहीं है, यह छात्र यूनिवर्सिटी के 41 विभिन्न ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट, पीएचडी, एमफील आदि पाठ्यक्रमों में शिक्षा ग्रहण कर रहे है. कोटा के एक सामाजिक कार्यकर्ता सुजीत स्वामी को सूचना के अधिकार के तहत दी गयी जानकारी में यह खुलासा हुआ है.
सुजीत ने आरटीआई दायर कर यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले कुल विदेशी छात्रों की संख्या, किस कोर्स में पंजीकृत हुए है और किस देश के कितने छात्र है की सूचना मांगी थी जिसके जवाब में युनिवर्सिटी ने बताया की विदेशी छात्रों की सूची जो की वर्तमान के मानसून 2019 और शरद 2020 सत्र में दर्ज हुई है, में 301 है. यह 301 विदेशी छात्र यूनिवर्सिटी के 78 विभिन्न पाठ्यकर्मो में पढ़ रहे हैं.
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सूचना में बताया गया की इन 301 छात्रों में से 219 छात्र तो 47 अलग-अलग देशों से आये हैं जिनमे कोरिया, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, सीरिया, चीन, जर्मनी, नेपाल आदि है, लेकिन 82 छात्र ऐसे हैं जिनकी राष्ट्रीयता के नाम पर यूनिवर्सिटी प्रशासन ने रिकॉर्ड नॉट अवेलेबल बताया है, यानी राष्ट्रीयता की सूचना उपलब्ध नहीं है. यह 82 विद्यार्थी किस-किस पाठ्यक्रम में पढ़ रहे हैं, इसकी सूचना भी प्रशासन के पास है लेकिन इनकी राष्ट्रीयता का कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है. यह 82 छात्र यूनिवर्सिटी के विभिन्न 41 पाठ्यकर्मो में पढ़ रहे है जिसमें सबसे ज्यादा 9 विद्यार्थी एमए सोशियोलॉजी में पढ़ रहे है.
यूनिवर्सिटी में 301 विदेशी छात्रों के आकड़ो में सबसे ज्यादा 82 छात्र ऐसे है जिसकी राष्ट्रीयता का रिकॉर्ड नहीं है जबकि उसके बाद दूसरे नंबर पर कोरिया के छात्र है जो की संख्या में 35 है, ऐसे ही नेपाल से 25, चीन से 24, अफगानिस्तान से 21 सीरिया से 7, बांग्लादेश से 8 एवं विभिन्न देशो के छात्र अध्ययनरत है. इसके अलावा सुजीत ने यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले कुल छात्रों की संख्या प्रोग्राम अनुसार भी जाननी चाही थी जिसमे भी बड़ी बात निकल कर सामने ये आई की यूनिवर्सिटी में अंडर ग्रेजुएट प्रोग्राम में पढ़ने वाले छात्रों का प्रतिशत कुल पढ़ने वाले छात्रों के प्रतिशत से बहुत ही कम है.
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सामाजिक कार्यकर्ता सुजीत स्वामी का कहना है की उनका इस तरह के डाटा लेने के पीछे का उद्देश्य देश की प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले बाहरी विद्यार्थियों की संख्या, किस देश से कितने विद्यार्थी आये है और ग्रेजुएट कोर्स में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या जानना था, चूंकि जेएनयू में पिछले कुछ वर्षो से कश्मीर के नारे, आजादी के नारे एवं देश विरोधी गतिविधिया हो रही है जिसमे छात्रों का शामिल होना चिंताजक है, लेकिन जब यह डाटा सामने आये तो चिंता का विषय यह है की कौन है यह 82 विदेशी छात्र जो किस देश के नागरिक है, का रिकॉर्ड प्रशासन के पास उपलब्ध नहीं है?
ये कैसे और क्यों आये है किस मकसद से आये हैं? इसके अलावा अंडर ग्रेजुएट और एमफिल, पीएचडी प्रोग्राम में पढ़ने वाले विद्यार्थीयो की संख्या भी चिंताजनक है, अगर यूनिवर्सिटी में एमफिल, पीएचडी करने वालो की संख्या निश्चित कर दी जाये तो शिक्षा का वातावरण अच्छा बनेगा, अभी के समय में ऐसा प्रतीत होता है कि एमफिल, पीएचडी में दाखिला लेकर सस्ते में यह कुछ लोग अपनी राजनीती चमका रहे हैं. वहीं जेएनयू के पूर्व छात्र दूलीचंद बोरदा ने भी बताया कि यह एक बहुत बड़ा मामला है. इतनी बड़ी संख्या में छात्रों की राष्ट्रीयता का रिकॉर्ड जेएनयू प्रशासन के पास उपलब्ध नहीं है.