झारखंड विधानसभा में ध्वनिमत से पारित चार महत्वपूर्ण विधेयकोंका भविष्य भाषाई लोचा के चलते अधर में लटक गया है। विधेयकों की ड्राफ्टिंग में अंग्रेजी-हिंदी की भाषाई विसंगतियों-त्रुटियों के चलते राज्यपाल रमेश बैस ने इन्हें एक-एक कर सरकार को लौटा दिया है। अब सरकार को इन विधेयकों को दुबारा विधानसभा से पारित कराना होगा, तभी ये कानून का रूप ले पायेंगे।
सवाल उठ रहा है कि विधेयकों का ड्राफ्ट तैयार करने वाले राज्य सरकार के संबंधित विभागों में सबसे ऊंचे ओहदों पर बैठे अफसर भाषाई विसंगतियों को कैसे नजरअंदाज कर रहे हैं? हैरत की बात यह कि राजभवन की ओर से एक-एक कर चार विधेयकों की भाषाई विसंगतियां चिह्न्ति कर लौटाये जाने के बावजूद इस मसले पर अब तक राज्य सरकार का कोई स्टैंड सामने नहीं आया है। हालांकि विभागों के उच्चाधिकारियों का कहना है कि जो विसंगतियां चिह्न्ति की गयी हैं, उनका अध्ययन कर उन्हें दूर कर लिया जायेगा।
राज्यपाल रमेश बैस ने मंगलवार को झारखंड राज्य कृषि उपज और पशुधन विपणन (संवर्धन और सुविधा) विधेयक-2022 सरकार को लौटाया। इसमें उन्होंने भाषाई विसंगतियों के दस बिंदुओं पर आपत्ति जताते हुए इनमें सुधार करने और विधेयक को फिर से विधानसभा से पारित कराकर भेजने को कहा है। इस विधेयक में राज्य सरकार ने मंडियों में बिक्री के लिए लाये जाने वाले कृषि उत्पादों पर 2 प्रतिशत का अतिरिक्त कर लगाने का प्रावधान किया है। राजभवन से विधेयक लौटने के बाद सरकार का फैसला फिलहाल अधर में लटक गया है।
इसके पहले अप्रैल महीने में राजभवन ने भारतीय मुद्रांक शुल्क अधिनियम में संशोधन विधेयक 2021 को सरकार को लौटा दिया था। राजभवन ने सरकार को लिखे पत्र में बताया था कि विधेयक के हिंदी और अंग्रेजी ड्राफ्ट में समानता नहीं है। इससे विधेयक के प्रावधानों को लेकर भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
झारखंड सरकार ने विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान 21 दिसंबर 2021 को भीड़ हिंसा रोकथाम और मॉब लिंचिंग विधेयक- 2021 पारित किया गया था। सरकार की ओर से कहा गया कि भीड़ की हिंसा को रोकने के लिए यह विधेयक लाया गया। विधेयक के कानून बनते ही मॉबलिंचिंग के अभियुक्तों को उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। यह विधेयक जब राज्यपाल के पास उनकी मंजूरी के लिए भेजा गया तो राज्यपाल ने हिन्दी और अंग्रेजी प्रारूप में कई गड़बडियों के साथ-साथ भीड़ की परिभाषा पर आपत्ति जताते हुए राज्य सरकार को लौटा दिया। यह विधेयक भी अब कानून का रूप तभी ले पायेगा, जब इसे विधानसभा से दोबारा पारित किये जाने के बाद राज्यपाल की मंजूरी मिलेगी। इसी तरह बीते फरवरी माह में राजभवन ने राज्य में ट्राइबल यूनिवर्सिटी की स्थापना से संबंधित बिल को भी ऐसी ही विसंगतियों के चलते वापस किया था।
कृषि उत्पादों पर मंडी कर लगाने से जुड़े विधेयक को लौटाये जाने के संबंध में पूछे जाने पर कृषि विभाग की निदेशक निशा सिंहमार कहती हैं कि उन्हें भी इस बात की जानकारी मिली है कि बिल के हिंदी और अंग्रेजी ड्राफ्ट में अंतर होने के चलते विधेयक लौटाया गया है। लौटाया गया विधेयक अभी विभाग के पास नहीं आया है। इसलिए उनके पास इस संबंध में विशेष जानकारी नहीं है, लेकिन निश्चित रूप से ड्राफ्टिंग में अगर कोई अंतर है तो उसे ठीक कर लिया जायेगा।
राज्य की कार्मिक सचिव वंदना डाडेल ने कहा कि विधेयक को लौटाये जाने और उसमें भाषाई विसंगतियों के बारे में उन्हेंमीडिया से जानकारी मिली है, इसलिए इसपर कोई टिप्पणी नहीं कर पायेंगी। उन्होंने कहा कि जिन विभागों में विधेयक के ड्राफ्ट को अंतिम रूप दिया जाता है, उन्हें भाषाई बिंदु पर गंभीरता दिखानी चाहिए। इससे संबंधित जरूरी निर्देश भी जारी किये जायेंगे।
दरअसल, सच यह है कि राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में सक्षम अनुवादकों की भारी कमी है। राज्य सरकार के सचिवालय में अनुवादक सहित विभिन्न स्तर पर बड़ी संख्या में पद रिक्त हैं। राज्य सरकार मेंसेक्शन ऑफिसर के 657 पद स्वीकृत हैं, लेकिन इनमें से 600 पद खाली पड़े हैं। सहायक प्रशाखा पदाधिकारी के 1313 पद स्वीकृत हैं। इसमें 708 सहायक प्रशाखा पदाधिकारी ही कार्यरत हैं। इसी तरह से अवर सचिव के 58, उपसचिव के 10 पद और संयुक्त सचिव के 10 पद रिक्त हैं। जाहिर है, इन रिक्तियों की वजह से सरकार का काम विभिन्न स्तरों पर प्रभावित हो रहा है।
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Source : IANS