अंग्रेजों से लोहा लेने रण में कूदी थी महान वीरांगना 'झलकारी बाई', झांसी की रानी से मिलती थी शक्ल
महारानी लक्ष्मीबाई की विश्वासपात्र सिपाही झलकारीबाई का जन्म 22 नवंबर को बुंदेलखंड के एक गांव में हुआ था।
नई दिल्ली:
महारानी लक्ष्मीबाई की विश्वासपात्र सिपाही झलकारीबाई का जन्म 22 नवंबर को बुंदेलखंड के एक गांव में हुआ था। झलकारी के पिता सदोवा मराठा सैनिक थे। इस योद्धा को बचपन से ही हथियारों का बेहद शौक था।
एक बार जब डकैतों के एक गिरोह ने गांव के एक व्यवसायी पर हमला किया तब झलकारी ने अपनी बहादुरी से उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया था।
उनकी बहादुरी से खुश होकर गांव वालों ने उसका विवाह रानी लक्ष्मीबाई की सेना के एक सैनिक पूरन कोरी से करवा दिया था।
पूरन भी बहुत बहादुर था और पूरी सेना उसकी बहादुरी का लोहा मानती थी।
राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्ता ने झलकारी बाई के बारे में ये लिखा था...
जाकर रण में ललकारी थी,
वह तो झांसी की झलकारी थी,
गोरों से लड़ना सिखा गई,
है इतिहास में झलक रही,
वह भारत की ही नारी थी
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में झलकारी बाई महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थी। वे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं इस कारण शत्रु को धोखा देने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध करती थीं।
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उन्होंने प्रथम स्वाधीनता संग्राम में झांसी की रानी के साथ ब्रिटिश सेना के विरुद्ध अद्भुत वीरता से लड़ते हुए ब्रिटिश सेना के कई हमलों को विफल किया था।
अपने अंतिम समय में भी वे रानी के वेश में युद्ध करते हुए वे अंग्रेज़ों के हाथों पकड़ी गईं और रानी को किले से भाग निकलने का अवसर मिल गया। रानी लक्ष्मीबाई की सेना की महत्वपूर्ण योद्धा झलकारीबाई थी।
वो रानी लक्ष्मीबाई के साथ दुश्मनों के खिलाफ लड़ी थीं। युद्ध के दौरान एक गोला झलकारी को भी लगा और 'जय भवानी' कहती हुई वह जमीन पर गिर गईं थी। झलकारी बाई एक महान वीरांगना थीं। 28 वर्ष की उम्र में उन्हें फांसी पर लटका दिया था।
झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है। भारत सरकार ने 22 जुलाई 2001 में झलकारी बाई के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था।
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