असम और त्रिपुरा में विरोधियों के हत्थे चढ़ा बुलडोजर
असम और त्रिपुरा में विरोधियों के हत्थे चढ़ा बुलडोजर
गुवाहाटी/अगरतला:
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की बुलडोजर राजनीति को असम और त्रिपुरा जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में न सिर्फ राजनीतिक दलों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है बल्कि इसे लेकर अदालतों की टिप्पणियां भी बड़ी सख्त हैं।केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने असम की तीन दिवसीय यात्रा के दौरान कहा कि घुसपैठियों के कब्जे से 10,700 बीघे जमीन छुड़ाई गई। असम सरकार ने भी पिछले कुछ साल के दौरान 3,800 हेक्टेयर से अधिक वनभूमि पर से अतिक्रमण हटाया है।
असम की भाजपा सरकार के इस अभियान से पहले त्रिपुरा में सत्तासीन होने के बाद भाजपा सरकार ने मार्च 2018 में पूरे राज्य में विपक्षी दलों के कार्यालयों को ध्वस्त कर दिया।
असम सरकार ने गत साल राज्य के कई जिलों को अतिक्रमण मुक्त करने का अभियान चलाया था। कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों ने भाजपा सरकार की कटु आलोचना करते हुये कहा कि वैकल्पिक आश्रय व्यवस्था किये बगैर लोगों को उनके घर से निकालना गलत है।
पिछले साल 23 सितंबर को दर्राग जिले में ऐसे ही एक अभियान के दौरान पुलिस के साथ झड़प में एक 12 साल के बच्चे समेत तीन लोग मारे गये थे और 20 अन्य घायल हो गये थे।
इस हिंसक झड़प की वीडियो वायरल हुई थी, जिसमें देखा गया कि जिला प्रशासन द्वारा नियुक्त फोटोग्राफर पुलिस की गोली का शिकार हुये व्यक्ति के शव पर चढ़कर निकल गया।
पुलिस और दर्राग जिला प्रशासन ने 4,500 बीघे सरकारी जमीन को खाली कराया। कथित रूप से इस जमीन पर बंगाली भाषा बोलने वाले सैकड़ों मुस्लिम परिवार रहते थे।
असम विधानसभा में विपक्ष के नेता देबब्रत सैकिया द्वारा इस मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुये गौहाटी हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस सुधांशु धूलिया ने इसे बड़ी त्रासदी और दुर्भाग्यपूर्ण कहा था। उन्होंने राज्य सरकार को इस मामले में विस्तृत हलफनामा दायर करने का आदेश दिया था।
चीफ जस्टिस ने कहा था कि यह बहुत बड़ी त्रासदी है और बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। जो भी लोग दोषी हैं, उन्हें सजा दी जानी चाहिये और इसमें कोई संदेह नहीं है। खून जमीन पर गिर गया है।
हाईकोर्ट ने यह भी जानना चाहा था कि राष्ट्रीय पुनर्वास नीति क्या असम में लागू है और राज्य सरकार को तीन सप्ताह के अंदर हलफनामा दायर करने के लिये कहा गया।
असम सरकार ने इस मामले की न्यायिक जांच के आदेश दिये।
असम के सरकारी अधिकारियों ने कहा कि करीब 800 बंगाली भाषी मुस्लिम परिवार करीब 4,500 बीघे सरकारी जमीन पर अवैध रूप से रह रहे थे। सरकार अतिक्रमण हटाकर उसका कृषि भूमि के रूप में इस्तेमाल करना चाहती थी।
कांग्रेस के अलावा बदरुद्दीन अजमल की अगुवाई वाली ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फंट्र, ऑल माइनॉरिटी ऑर्गेनाइजेशंस कॉर्डिनेशन कमेटी, ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन और जमात ए उलेमा आदि ने राज्य सरकार के इस अभियान का पुरजोर विरोध किया।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा ने पहले दावा किया था कि दर्राग हिंसा के लिये पीएफआई जिम्मेदार है। मुख्यमंत्री के साथ ही भाजपा नेता भी असम में बड़े भूभाग पर प्रवासी मुस्लिमों के कब्जे का आरोप लगाते रहे हैं।
असम की कुल आबादी 3.12 करोड़ है, जिसमें से 34.22 प्रतिशत मुस्लिम हैं। इनमें से चार प्रतिशत असम के मूल निवासी हैं और शेष बंगाली भाषा बोलने वाले मुस्लिम हैं।
असम की 126 विधानसभा सीटों में 30 से 35 सीट पर मुस्लिम मतदाता ही चुनाव की दिशा तय करते हैं।
असम के 34 जिलों में से 19 जिलों में 12 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है और इन्हीं 19 जिलों में से छह जिलों में मुस्लिमों की जनसंख्या 50 प्रतिशत या उससे अधिक है।
त्रिपुरा में भाजपा ने सत्ता में आने के बाद माकपा के 185 कार्यालयों तथा उनके ट्रेड यूनियन के कार्यालयों को यह कहकर ध्वस्त कर दिया कि इनका निर्माण सरकारी जमीन पर हुआ था।
भाजपा सरकार ने त्रिपुरा के विभिन्न जिलों में कांग्रेस के भी आठ कार्यालय ढाह दिये थे।
माकपा की केंद्रीय समिति के सदस्य जितेंद्र चौधरी का कहना है कि भाजपा सरकारें पूरे देश में बस एक ही पार्टी की सत्ता चाहती हैं।
उन्होंने कहा कि भाजपा सिर्फ विपक्षी दलों के बाहरी ढांचे को ही बुलडोजर से नहीं गिराई है बल्कि वह समाज, लोगों की मानसिकता, सामुदायिक सौहाद्र्र और देश के लोकतांत्रिक ढांचे को भी ध्यवस्त कर रही है। वह पार्टी और सरकार के बीच कोई भेद नहीं कर रही है।
भाजपा के राज्यसभा सदस्य माणिक साहा ने कहा कि सरकार कानून के तहत काम कर रही है।
भाजपा की त्रिपुरा इकाई के अध्यक्ष साहा ने आईएएनएस से कहा कि अगर कोई पार्टी या व्यक्ति सरकारी जमीन या प्रॉपर्टी पर कब्जा किये हुये है तो उसे खाली कराना प्रशासन का काम है। त्रिपुरा में भाजपा के भी कुछ कार्यालय हटाये गये हैं।
अगरतला नगर निगम चुनाव में भाजपा की जीत के बाद से दीपक मजूमदार की अुगवाई में राजधानी अगरतला की कई दुकानों से हॉकर्स हटाये गये।
अगरतला नगर निगम की इस कार्रवाई की सभी विपक्षी पार्टियों तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कटु आलोचना की है। उनका तर्क है कि वैकल्पिक व्यवस्था किये बगैर हॉकर्स को हटाना गलत है।
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